1) उसे वश में करने की आशा व्यर्थ है। उसे देखते ही मनुष्य के हाथ-पैर फूल जाते हैं।
2) उसे छेड़ने का साहस कौन करेगा? उसके सामने कौन टिक सकता है?
3) आकाश के नीचे ऐसा कोई मनुष्य नहीं, उसका सामना करने के बाद कोई भी सुरक्षित नहीं रहा।
4) मैंने अब तक उसके अंगो के विषय में कुछ नहीं कहा और न उसके शरीर की रचना और उसकी शक्ति के विषय में।
5) कौन उसका चमडा उतार सकता, कौन उसके शरीर का दोहरा कवच भेद सकता है?
6) कौन उसके जबडे खोलने का साहस करेगा? उसके डरावने दाँत आतंकित करते हैं।
7) उसकी पीठ पर ढालो-जैसे शल्क हैं, जो एक-दूसरे से सटे हुए हैं।
8) वे इस प्रकार एक-दूसरे से जुडे हुए हैं कि हवा भी उनके बीच से हो कर नहीं जा सकती।
9) वे एक-दूसरे से इस प्रकार चिपक गये हैं कि उन्हें कोई भी अलग नहीं कर सकता।
10) उसके छींकने पर ज्योति फूट निकलती है और उसकी आँखे प्रभात की पुतलियों जैसी हैं।
11) उसके मुँह से बिजली चमकती है और आग की चिनगारियाँ छूटती हैं।
12) जलते अंगारों पर उबलती हुए हाँडी की तरह उसके नथनों से धुँआ निकलता है।
13) उसकी साँस लड़की जला देती है और उसके मुँह से ज्वालाएँ निकलती हैं।
14) उसकी ताकत उसकी गरदन में बसती है उसके चारों ओर आतंक छाया रहता है।
15) उसके मांस की भारी परतें सुदृढ़़ है; वे उसके शरीर पर ढाली जान पडती हैं।
16) उसका हृदय पत्थर-जैसा है, चक्की के पाट की तरह कठोर।
17) उसके खडे़ हो जाने पर देवता आतंकित हो कर उसके सामने से हड़बड़ा कर हट जाते हैं।
18) न तो तलवार, न भाला, न बरछी और न बाण उस पर कोई असर कर पाता है।
19) वह लोहे को तिनका और काँसे को सड़ी लकड़ी समझता है।
20) वह बाण के सामने से नहीं भागता और गोफन के चलाये हुए पत्थर को भूसा समझता है।
21) गदा उसे पुआल-जैसी लगती है; वह बरछी के वार पर हँसता है।
22) उसके पेट का निचला भाग ठीकरों के समूह-जैसा है, जो कीचड पर मानो हेंगा फेरता है।
23) वह गहराइयों में बरतन-जैसा उबाल पैदा करता है; वह समुद्र को उबलती हुई हांडी में बदल देता है।
24) वह अपने पीछे एक चमकीली लीक छोड जाता है, ऐसा लगता है कि गहराई के बाल पक गये हैं।
25) पृथ्वी पर उसकी बराबरी करने वाला कोई नहीं। वह नितांत निर्भीक है।
26) वह बड़े-से बड़े प्राणियेों का सामना करता है। वह सभी जंगली पशुओं का राजा है!