📖 - अय्यूब (योब) का ग्रन्थ

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अध्याय 08

1) इसके उत्तर में शूही बिलदद ने कहाः

2) तुम कब तक ऐसी बातें करते रहोगे? तुम्हारे शब्द प्रचण्ड वायु-जैसे हैं।

3) क्या ईश्वर न्याय भ्रष्ट करता है? क्या सर्वशक्तिमान् अन्याय करता है?

4) तुम्हारे पुत्रों ने उसके विरुद्ध पाप किया और उसने उन्हें पाप का दण्ड दिया।

5) यदि तुम ईश्वर की शरण जाओगे, यदि तुम सर्वशाक्तिमान् से प्रार्थना करोगे,

6) और यदि तुम निर्दोष और निष्कपट हो, तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा और तुम्हें न्याय दिलायेगा।

7) तुम्हारा भविष्य इतना उज्ज्वल होगा कि तुम्हारी पिछली दशा बहुत साधारण लगेगी।

8) पुरानी पीढ़ियों से पूछो, पूर्वजों के अनुभव पर ध्यान दो।

9) हम तो कल के हैं और कुछ नहीं जानते। हमारा जीवन पृथ्वी पर छाया की तरह बीतता है।

10) किंतु वे तुम्हें शिक्षा देंगे और समझायेगे; वे अपने अनुभव की चर्चा करेंगे।

11) क्या पटेर कछार के बिना उग सकती है? क्या सरकण्डा पानी के बिना पनप सकता है?

12) हरा सरकण्डा कट जाने से पहले भी अन्य घासों की अपेक्षा जल्दी सूख जाता है।

13) यही हाल उन सब का होता है, जो ईश्वर को भूल जाते है। इसी प्रकार विधर्मी की आशा नष्ट हो जाती है।

14) उसका भरोसा तन्तु की तरह है और उसकी आशा मकड़ी के जाले की तरह।

15) वह अपने घर का भरोसा रखता, किंतु टिक नहीं पाता। वह उस पर हाथ रखता, किंतु वह ढह जाता है।

16) वह पौधे की तरह धूप में हरा-भरा है, उसकी टहनियाँ पूरी वाटिका में फैली हैं,

17) उसकी जड़े पत्थरों से भी चिपकती हैं। वह चट्टानों के बीच भी पनपता है,

18) किंतु जब वह उखाड़ा जाता, तो उनका पुराना स्थान उसे अस्वीकार कर देता है।

19) देखो, उसका भाग्य यही है, उसके स्थान पर दूसरे पौधे उग जाते हैं।

20) देखो, ईश्वर न तो निर्दोष व्यक्ति का परित्याग करता और न विधर्मी को सहारा देता है।

21) तुम्हारे चेहरे पर फिर हँसी खिल उठेगी और तुम्हारे होंठ आनंद के गीत गायेंगे।

22) तुम्हारे शत्रु लज्जित होंगे और दुष्टों के तम्बू उखड़ जायेंगे।



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