📖 - यूदीत का ग्रन्थ

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अध्याय 13

1) काफ़ी देर बाद उसके सेवक उठ कर चले गये और बगोआस ने बाहर से तम्बू को बन्द कर दिया और होलोफ़ेरनिस के अंगरक्षकों को विदा किया। सब जा कर अपनी-अपनी शय्या पर लेट गये, क्योंकि वे भोज में अधिक पीने के कारण थक गये थे।

2) यूदीत तम्बू में अकेली रह गयी। होलोफे़रनिस मद्यपान से बिलकुल बेहोश हो कर अपनी शय्या पर पड़ा था।

3) यूदीत ने अपनी सेविका को आज्ञा दे रखी थी कि वह शयनकक्ष के निकट रहे और वह जैसे हर दिन करती थी, वैसे ही उसके बाहर निकलने की प्रतीक्षा करे। उसने उस से कहा था कि वह प्रार्थना करने जायेगी और बगोआस से भी उसने यही कहा था।

4) अब होलोफ़ेरनिस के पास से सब लोग जा चुके थे। क्या छोटा, क्या बड़ा-कोई भी उसके शयन-कक्ष में नहीं रह गया था। यूदीत ने उसके सिरहाने के पास खड़ी हो कर कहा, "प्रभु! प्रभु! सर्वशाक्तिमान् ईश्वर! येरूसालेम की महिमा के लिए, इसी घड़ी मेरे हाथों के कार्य पर ध्यान दें;

5) क्योंकि अब अपनी विरासत की सहायता करने और उन शत्रुओं के विनाश के लिए मेरी योजना पूरी करने का समय आ गया, जिन्होंने हम लोगों पर आक्रमण किया।"

6) उसने होलाफ़ेरनिस के सिरहाने के पाये के पास जा कर उस पर से उसकी तलवार उठा ली।

7) फिर पलंग के निकट जा कर उसके सिर के बाल पकड़ कर बोली, "इस्राएल के ईश्वर ! इस्राएल के प्रभु-ईश्वर! मुझे आज शक्ति प्रदान कर"।

8) इसके बाद उसने पूरी शक्ति से उसकी गरदन पर तलवार से दो बार प्रहार किया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

9) तब उसने उसका धड़ पलंग के नीेचे गिरा दिया और डण्ड़ों से मसहरी खोल कर वह बाहर निकली और उसने होलोफ़ेरनिस का सिर अपनी सेविका को दिया।

10) उसने उसे भोजन का सामान रखने की अपनी थैली में डाल लिया। इसके बाद वे दोनों पहले की ही तरह प्रार्थना करने के बहाने निकल पड़ीं। पड़ाव पार कर वे घाटी के किनारे-किनारे गयीं और बेतूलिया के पहाड़ पर चढ़ कर उसके फाटक के पास जा पहुँचीं।

11) यूदीत ने दूर से ही फाटक के पहरेदारों को पुकारा, "खोलिए, फाटक खोलिए! ईश्वर, हमारा ईश्वर सचमुच हमारे साथ है, जिससे वह इस्राएल में अपना सामर्थ्य और हमारे शत्रुओं के विरुद्ध अपना बाहुबल प्रदर्शित करे, जैसा कि उसने आज किया है।"

12) उसके नगरवासी उसकी आवाज़ पहचानने पर जल्दी-जल्दी नगर के फाटक के पास दौड़े और उन्होंने नगर के नेताओं को बुलाया।

13) छोटे से बड़े तक, सब-के-सब एकत्रित हो गये! क्योंकि उन्हें यह बात असम्भव-जैसी लगी कि वह लौट आयी है। उन्होंने फाटक खोल कर उन्हें अन्दर आ जाने दिया और उजाले के लिए आग जलायी। वे उन्हें घेर कर खड़े हो गये।

14) उसने उच्च स्वर से उन से कहा, "ईश्वर की स्तुति करो, उसका स्तुतिगान करो; क्योंकि उसने इस्राएल के घराने पर से अपनी कृपादृष्टि नहीं हटायी, बल्कि आज रात मेरे हाथ से हमारे शत्रुओं को रौंदा है"।

15) इसके बाद उसने होलोफ़ेरनिस का सिर थैली से निकाला और उसे दिखलाते हुए उन से कहा, "यह अस्सूरी सेना के प्रधान सेनापति होलोफ़ेरनिस का सिर है और यह वह मसहरी है, जिसके अन्दर वह मदिरा पी कर बेहोश पड़ा था। प्रभु ने एक स्त्री के हाथ से उसे मारा है।

16) उस प्रभु की जय, जिसने मार्ग में मेरी रक्षा की! मेरे सौन्दर्य ने उसे मुग्ध किया और वह उसके विनाश का कारण बना। वह मुझे भ्रष्ट और कलंकित करने के लिए मेरे साथ कोई पाप नहीं कर पाया।"

17) सब लोग बड़े विस्मित हुए और नतमस्तक हो कर ईश्वर की आराधना करने लगे। वे एक स्वर से यह कहने लगे, "हमारे ईश्वर! धन्य है तू! आप तूने अपनी प्रजा के शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है।"

18) तब उज़्ज़ीया ने उस से कहा, "पुत्री! तुम सर्वोच्च ईश्वर की कृपापात्र हो। तुम पृथ्वी की सब नारियों में धन्य हो। धन्य है हमारा प्रभु-ईश्वर, स्वर्ग तथा पृथ्वी का सृष्टिकर्ता! उसी ने हमारे शत्रुओं के नेता का सिर काटने में तुम्हें सफलता दी है।

19) जब लोग हमारे ईश्वर के सामर्थ्य का स्मरण करेंगे, तो वे अनन्त काल तक तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।

20) प्रभु तुम्हारी कीर्ति सदा बनाये रखे और तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करता रहे; क्योंकि अपनी जाति की दुर्गति देख कर तुमने अपने प्राणों की चिन्ता नहीं की, बल्कि तुम हमारी विपत्ति दूर करने के लिए हमारे ईश्वर द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर निस्संकोच आगे बढ़ी" और सारी जनता बोल उठी, "आमेन! आमेन!



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