1) तब उसने उसे अन्दर वहाँ ले जाने की आज्ञा दी, जहाँ चाँदी के पात्र रखे थे और उसे अपनी मेज़ का भोजन परोसने और अपनी अंगूरी पिलाने को कहा।
2) परन्तु यूदीत ने कहा, "मैं आपका भोजन नहीं खा सकती। कहीं ऐसा न हो कि मैं पाप करूँ। मैं जो लायी हूँ, वही खाऊँगी।"
3) इस पर होलोफे़रनिस ने उस से कहा, "परन्तु यदि तुम जो लायी हो, वह ख़त्म हो जाये, तो फिर तुम्हें वैसा भोजन कहाँ से मिलेगा; क्योंकि हमारे यहाँ एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं, जो तुम्हारी जाति का हो और जिसके पास वही भोजन हो"।
4) यूदीत ने उस से कहा, "श्रीमान् निश्चिन्त रहें। जब तक प्रभु मेरे द्वारा वह कार्य, जिसका उसने निश्चिय कर रखा है, पूरा न करेगा, तब तक आपकी दासी के पास जो भोजन है, वह समाप्त नहीं होगा।"
5) इसके बाद होलोफे़रनिस के सेवकों ने उसे उसके तम्बू में पहुँचा दिया। वह वहाँ आधी रात तक सोती रही।
6) उसने प्रातः कालीन प्रार्थना से पहले उठ कर होलोफ़ेरनिस से कहलवाया था, "श्रीमान् आज्ञा दें कि आपकी दासी प्रार्थना करने बाहर जा सके"।
7) अतः होलोफे़रनिस ने पहरेदारों को आज्ञा दी थी कि वे उसे न रोकें। इस प्रकार वह तीन दिन तक पड़ाव में रही। वह रोज़ रात बेतूलिया की घाटी जाती और पड़ाव के जलस्रोत में स्नान करती।
8) स्नान करने के बाद वह प्रभु, इस्राएल के ईश्वर से प्रार्थना करती कि वह उसकी जाति के लोगों के उद्धार के लिए उसका उद्देश्य सफल करे।
9) इसके बाद वह लौट आती और शुद्ध हो कर तम्बू में रहती, जहाँ सन्ध्याकाल उसके लिए भोजन लाया जाता।
10) चौथे दिन होलोफ़ेरनिस ने अपने सेवकों को एक भोज दिया। उस में एक भी उच्चाधिकारी को नहीं बुलाया गया।
11) उसने सारी सम्पत्ति की देखरेख करने वाले कंचुकी बगोआस से कहा, "जाओ और उस इब्रानी स्त्री को, जो तुम्हारी निगरानी में हैं, हमारे पास आने और हमारे साथ खाने-पीने को राज़ी करो।
12) यह तो हमारे लिए लज्जा की बात होगी कि हम ऐसी स्त्री से बातें किये बिना उसे जानेदें। हम उसे अपने प्रति आकर्षित नहीं करेंगे, तो वह़ हमारा मज़ाक उड़ायेगी।"
13) होलोफ़ेरनिस के यहाँ से उसके पास जा कर बगोआस उस से बोला, "सुन्दरी! मेरे स्वामी के पास जाने में संकोच न कीजिए। उनके यहाँ आपका सम्मान होगा। आप हमारे साथ आनन्द मनाते हुए अंगूरी पीजिए और नबूकदनेज़र के महल में रहने वाली प्रतिष्ठित अस्सूरी नागरिकों की पुत्रियों-जैसी बनिए।"
14) यूदीत ने उस से कहा, "मैं श्रीमान् का विरोध कैसे कर सकती हूँ? उन्हें जो अच्छा लगेगा, वह मैं तुरन्त करूँगी और वह मेरे लिए जीवन भर गौरव की बात होगी।’
15) उसके उठ कर अपने वस्त्र और अपने सब नारीसुलभ आभूषण पहन लिये। उसकी दासी ने जा कर उसके लिए होलोफ़ेरनिस के सामने वह ऊनी कालीन ज़मीन पर फैला दिया, जो बागोआस ने उसे उसके दैनिक उपयोग लिए दिया था, जिससे वह उस पर बैठ कर भोजन करे।
16) यूदीत भीतर जा कर बैठ गयी। उसे देख कर होलोफ़ेरनिस मुग्ध हो कर उत्तेजित हो उठा और उस से संसर्ग करने की प्रबल कामना करने लगा; क्योंकि उसने जब से उसे देखा था, तब से वह उसे भ्रष्ट करने का अवसर देख रहा था।
17) होलोफ़ेरनिस ने उस से कहा, "पिओ और हमारे साथ आनन्द मनाओ "।
18) यूदीत ने कहा "श्रीमान्! मैं ज़रूर पिऊँगी, क्योंकि जन्म के बाद मुझे किसी भी दिन आज की तरह सम्मान नहीं मिला"।
19) तब होलोफ़ेरनिस के सामने उसने वह खाया-पिया, जो उसकी सेविका ने उसके लिए तैयार किया था।
20) होलोफे़रनिस उसके कारण बहुत प्रसन्न था। उसने बहुत अधिक मदिरा पी - इतनी अधिक, जितनी उसने जन्म से आज तक किसी भी दिन नहीं पी थी।