1) इस्राएल के ईश्वर की दुहाई देने और यह प्रार्थना पूरी करने बाद
2) उसने भूमि पर से उठ कर अपनी सेविका को बुलाया और ऊपरी कमरे से उतर कर अपने घर में प्रवेश किया, जिस में वह विश्राम-दिवसों और पर्वों में रहा करती थी।
3) वहाँ उसने टाट और वैधव्य के वस्त्र उतारे। उसने स्नान किया, उत्तमोत्तम तेल लगाया, अपने सिर के केश सँवारे, फ़ीता बाँधा और पर्व के वे वस्त्र पहने, जिन्हें वह उस समय पहनती थी, तब उसका पति मनस्से जीवित था
4) उसने अपने पाँवों में चप्पलें डालीं और नूपुर, बाजूबन्द, अँगूठियाँ, कर्णफूल आदि आभूषण पहने। उसने अपने को इस प्रकार आकर्षक बनाया कि उसे देख कर कोई भी पुरुष मुग्ध हो जा सकता था।
5) इसके बाद उसने अपनी सेविका को एक कुप्पा अंगूरी और एक कुप्पी तेल दिया; फिर थैली में भूना हुआ जौ, अंजीर की रोटी, मैदे की रोटियाँ और पनीर रख दिया और रसोई के अपने सब पात्र बाँध कर अपनी सेविका को सौंपे।
6) इसके बाद वे दोनों बेतूलिया नगर के फाटक गयीं। वहाँ उन्होंने उज़्ज़ीया, काब्रीस और करमीस, नगर के शासकों को खड़ा देखा।
7) उसके चेहरे और वस्त्रों में इस प्रकार का परिवर्तन देख कर वे चकित हो उठे और उस से बोले,
8) "इस्राएल की महिमा और येरूसालेम के गौरव के लिए हमारे पूर्वजों का ईश्वर तुम पर दया करे और तुम्हारी योजना सफल होने दे"।
9) इस पर यूदीत ने मुँह के बल गिर कर ईश्वर की आराधना की और उन से कहा, "मेरे लिए नगर का फाटक खोलने की आज्ञा दीजिए, जिससे मैं जा कर वह कार्य पूरा करूँ, जिसके विषय में आपने मेरे साथ बातचीत की"। तब उन्होंने युवकों को आज्ञा दी कि वे उसके निवेदन के अनुसार उसके लिए फाटक खोल दें और उन्होंने ऐसा ही किया।
10) यूदीत अपनी सेविका के साथ बाहर निकली। जब तक वह पर्वत के नीचे न उतरी और मैदान पार कर उनकी दृष्टि से ओझल न हो गयी, तब तक नगर के लोग उस को देखते रहे।
11) दोनों मैदान में चली जा रही थीं कि उन्हें अस्सूरियों की एक चैकी मिली।
12) वहाँ उसे रोक दिया गया और उस से यह पूछा गया, "तुम किस पक्ष की हो, कहाँ से आ रही हो और कहाँ जा रही हो?" उसने उत्तर दिया, "मैं इब्रानी स्त्री हूँ और उनके पास से इसलिए भागी जा रही हूँ कि वे तुम्हारा शिकार हो गये हैं।
13) मैं तुम्हारी सेना के प्रधान सेनापति होलोफ़ेरनिस से भेंट करना चाहती हूँ, जिससे मैं उन्हें एक सच्चा समाचार दूँ और एक ऐसा मार्ग बता दूँ, जिस से हो कर जाने पर वह समस्त पहाड़ी प्रदेश पर अधिकार कर सकते हैं और उनके किसी सैनिक की क्षति या मृत्यु नहीं होगी।"
14) जब उन लोगों ने उसके शब्द सुने और यह देखा कि वह अत्यन्त सुन्दर है, तो उन्होंने उस से कहा,
15) "तुमने हमारे स्वामी से मिलने के लिए पहाड़ से उतर कर अपने प्राणों की रक्षा की। अब उनके तम्बू में चली जाओ। हम में से कुछ व्यक्ति तुम्हारे साथ तुम्हें उनके यहाँ पहुँचाने जा रहे हैं।
16) तुम उनके सामने खड़ी होने से मत डरो। तुमने अभी जो कहा, उसे उनके सामने दुहराओ और वह तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।"
17) उन्होंने अपने बीच में एक सौ आदमी चुन कर उन्हें उसके और उसकी सेविका के साथ कर दिया और उन्होंने उन को होलोफे़रनिस के खेमे के पास पहुँचाया।
18) उसके आने की ख़बर पूरे पड़ाव में फैल चुकी थी और सभी लोग एकत्र हो गये वे आकर उसके चारों ओर खड़े हो गये; क्योंकि वह तब तक होलोफ़ेरनिस के तम्बू के बाहर प्रतीक्षा करती रही, जब तक होलोफ़ेरनिस को उसके आने की सूचना न मिली।
19) लोग उसकी सुन्दरता पर आश्चर्य प्रकट कर रहे थे और उसके सौंदर्य के कारण इस्राएलियों की प्रशंसा करते हुए एक दूसरे से कहते थे, "कौन इस जाति को तुच्छ समझ सकता है, जिसके यहाँ ऐसी स्त्रियाँ विद्यमान है? उनके पुरुषों में किसी को जीवित रहने देना उचित नहीं है ;
20) होलोफ़ेरनिस के अंगरक्षक और उसके सब सहायक अधिकारी बाहर आये और उसे तम्बू के भीतर ले गये।
21) होलोफ़ेरनिस अपने पलंग पर एक बैंगनी मसहरी के अन्दर लेटा हुआ था, जो सोना-चाँदी, मरकत और अन्य मणियों से अलंकृत था।
22) जब उसे यूदीत के आने की सूचना दी गयी, तो चाँदी के दीप धारण किये अनेक सेवकों के पीछे-पीछे वह ड्योंढ़ी में आया और यूदीत उसके सामने प्रस्तुत की गयी।
23) जब यूदीत उसके और उसके सेवकों के सामने आयी, तो वे सभी मन-ही-मन उसके सौदंर्य की प्रशंसा करने लगे। यूदीत ने उसके सामने मुँह के बल गिर कर उसे दण्डवत् किया और होलोफ़ेरनिस के सेवकों ने उसे खड़ा किया।