1) तीसरे दिन दाऊद अपने आदमियों के साथ सिकलग आया। इसके पहले ही अमालेकी लूटने के लिए नेगेब और सिकलग पहॅुँचे थे। उन्होंने सिकलग को लूटकर जला दिया था।
2) वे वहाँ की सब स्त्रियों और छोटे-बडे़, सभी लोगों को बन्दी बनाकर चल दिये थे। उन्होंने किसी को मारा नहीं था, परन्तु वे उनको अपने साथ ले गये थे।
3) जब दाऊद अपने आदमियों के साथ नगर पहुँचा, तब उन्होंने उसे जला हुआ पाया और देखा पत्नियाँ, पुत्र-पुत्रियाँ सब बन्दी बना कर ले जाये गये हैं।
4) दाऊद और उसके आदमी जो़र-जो़र से इतना रोये कि उन्हें और रोने की शक्ति नहीं रह गयी।
5) दाऊद की दोनों पत्नियाँ, यिज्ऱएल की अहोनीअम और करमेल के नाबाल की विधवा अबीगैल भी बन्दी बनाकर ले जायी गयी थी।
6) अब दाऊद बड़े संकट में था। लोग उसे पत्थरों से मार डालने की सोच रहे थे। प्रत्येक व्यक्ति का मन अपने पुत्र-पुत्रियों की चिन्ता के कारण कटुता से भरा हुआ था। परन्तु दाऊद अपने प्रभु-ईश्वर पर भरोसा रख कर हिम्मत नहीं हारा।
7) दाऊद ने अहीमेलेक के पुत्र याजक एबयातार को आज्ञा दी, "मेरे पास एफ़ोद ले आओ।" एबयातर दाऊद के पास एफ़ोद ले आया।
8) दाऊद ने प्रभु से पूछा, "मैं उस दल का पीछा करूँ, तो क्या मैं उन्हे पकड़ लूँगा?" उसने उसको उत्तर दिया, "उनका पीछा करो। तुम उन्हें ज़रूर पकड़ोगे अपने लोगों को छुड़ा लोगे।"
9) इसलिए दाऊद अपने साथ के उन छः सौ आदमियों को लेकर चल पड़ा और बसोर नाले के पास पहुँचा, जहाँ कुछ लोग रुक गये।
10) बाकी चार सौ आदमियों के साथ दाऊद उनका पीछा करता रहा और दो सौ आदमी रूके रह गये, जो थकावट के कारण बसोर नाले को पार करने में असमर्थ थे।
11) वहाँ खुले मैदान में एक मिस्त्री पड़ा मिला और उसे दाऊद के पास लाया गया। उन्होंने उसे कुछ रोटी खिलायी और पानी पिलाया,
12) फिर उसे अंजीर की कुछ डलियाँ और किषमिष के दो गुच्छे दिये। जब वह खा चुका, तब उसमें शक्ति आयी; क्योंकि उसने तीन दिन और तीन रात कुछ नहीं खाया-पीया था।
13) दाऊद ने उससे पूछा, "तुम किसके आदमी हो और कहाँ से आ रहे हो?" उसने उत्तर दिया, "मैं मिस्त्री हूँ, एक अमालेकी का दास। आज से तीन दिन पहले मैं बीमार पड़ा, इसलिए मेरे स्वामी ने मुझे छोड़ दिया।
14) हमने करेतियों के नेगेब पर, यूदा के नेगेब और कालेबियों के नेगेब पर छापा मारा और सिकलग को जला डाला।"
15) तब दाऊद ने उससे पूछा, "क्या तुम मुझे उस दल के पास ले चलोगे?" उसने उत्तर दिया, "यदि तुम ईश्वर की शपथ खा कर कहो कि तुम न तो मुझे मारोगे और न मुझे अपने स्वामी के हवाले कर दोगे, तो मैं तुम्हें उस दल के पास ले चलूँगा।
16) वह दाऊद को वहाँ ले गया, तो वे देखते क्या हैं कि वे लोग भूमि पर इधर-उधर पडे़ हैं। वे खा-पी रहे थे और उस बड़ी लूट के कारण विजयोत्सव मना रहे थे, जो वे फ़िलिस्तयों से और यूदा के देश से ले गये थे।
17) दाऊद उन्हें सन्ध्या से लेकर दूसरे दिन की शाम तक मारता रहा और उन में, उन चार सौ नौजवानों के सिवा, जो ऊँटांे पर चढ़ कर भाग गये थे, एक भी शेष न रहा।
18) इस प्रकार दाऊद ने वह सब कुछ पा लिया, जो अमालेकी ले गये थे। दाऊद ने अपनी दोनों पत्नियों को भी छुड़ा लिया।
19) कोई या कुछ भी खोया नहीं था - न छोटे-बडे़ लोगों में, न पुत्र-पुत्रियों में और न लूट के माल में। जो कुछ ले लिया गया था, दाऊद वह सब वापस ले आया।
20) दाऊद ने सब भेड़-गायें भी ले लीं और उसके आदमियों ने उन्हें उसके आगे-आगे यह कहते हुए हाँका, "यह दाऊद की लूट है।"
21) जब दाऊद उन दौ सौ आदमियों के पास आया, जो थकावट के कारण उसके साथ नहीं जा सके थे और जिन्हें उन्होंने बसोर नाले के किनारे छोड़ दिया था, तब वे दाऊद और उसके आदमियों से मिलने निकले। उनके पास जा कर दाऊद ने उनको नमस्कार किया।
22) दाऊद के आदमियों में जो दुष्ट और उपद्रवी थे, वे कहने लगे, "वे हमारे साथ नहीं गये थे, इसलिए जो लूट हम वापस ले आये, उस में से हम उन्हें उनकी पत्नियों और बच्चों के सिवा कुछ नहीं देंगे। वे उन्हें लेकर चलते बनें।"
23) दाऊद ने कहा, "भाइयों, ऐसा मत करो। जब प्रभु ने हमें सब कुछ दिया है, हमारी रक्षा की है और उस दल को हमारे हाथ दिया है, जो हमारा विरोध कर रहा था,
24) तो तुम्हारी यह बात कैसे मान ली जाये? सामान के पास रहने वालों का भी उतना ही भाग होना चाहिए, जितना लड़ाई में जाने वालों का। सब को बराबर हिस्सा मिलना चाहिए।"
25) दाऊद ने इस्राएल के लिए यह नियम और अध्यादेश बनाया, जो उस दिन से अब तक लागू है।
26) सिकलग पहुँच कर दाऊद ने लूट का एक भाग अपने मित्रों, यूदा के नेताओं के पास यह कहते हुए भेजा, "प्रभु के शत्रुओं की लूट का यह भाग आप को समर्पित है।"
27) उसने बेतेल, नेगेब, रामोत, यत्तीर,
28) अरोए़र. सिफ़मोत, एष्तमोआ,
29) राकाल, यरहमएलियों और केनियों के नगरों,
30) होरमा, बोर-आशान, अताक,
31) हेब्रोन और उन सब अन्य स्थानों के नेताओं के पास उपहार भेजे, जहाँ दाऊद और उसके आदमी घूमते रहे।