1) अम्मोनी नाहाश ने गिलआद के याबेश को घेर लिया। याबेश के सब निवासियों ने नाहाश से कहा, "हमारे साथ समझौता कर लीजिए। तब हम आपके अधीन हो जायेंगे।"
2) परन्तु अम्मोनी नाहाश ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं केवल इस शर्त पर तुम्हारे साथ समझौता कर सकता हॅूँ कि मैं तुम में प्रत्येक की दाहिनी आँख फोड़ डालूँ और इस प्रकार सारे इस्राएल का अपमान करूँ।"
3) याबेश के नेताओं ने उस से कहा, "हमें सात दिन का समय दीजिए, जिससे हम इस्राएलियों के पास सब जगह दूत भेज सकें। तब, यदि कोई हमारी सहायता नहीं करेगा, तो हम आपके अधीन हो जायेंगे।"
4) वे दूत साऊल के गिबआ में आये और लोगों को यह समाचार दिया। सब लोग ऊँचे स्वर से विलाप करने लगे।
5) उसी समय साऊल बैलों~ के पीछे-पीछे खेत से चला आ रहा था। साऊल ने पूछा, "क्या बात है, जो लोग विलाप कर रहे हैं?" तब उसे याबेश के निवासियों का समाचार बताया गया।
6) उनकी बातें सुन कर साऊल ईश्वर के आत्मा से आविष्ट हो गया और उसका क्रोध भड़क उठा।
7) उसने बैलों की जोड़ी के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले और उन्हें दूतों द्वारा इस्राएल में सर्वत्र भिजवा कर यह घोषणा करवा दी कि जो साऊल और समूएल के पीछे नहीं आयेगा, उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जायेगा, जैसा इन बैलों के साथ किया गया है। इस से लोगों में ऐसा आतंक कि वे सब एक हो कर चल दिये।
8) साऊल ने बेजे़क में उनकी गिनती की, तो इस्राएलियों के तीन लाख और यूदा के तीस हज़ार आदमी निकले।
9) तब याबेश से आये हुए दूतों से यह कहा गया, "तुम गिलआद के याबेश के निवासियों से कह दो - कल धूप तेज़ हो जाने के समय तक तुम्हारा उद्धार किया जायेगा।" जब दूतों ने आ कर याबेश-निवासियों को यह समाचार सुनाया, तो वे इस से बडे़ प्रसन्न हुए।
10) तब याबेश-निवासियों ने अम्मोनियों से कहा, "कल हम आपके अधीन हो जायेंगे। तब आप अपनी इच्छा के अनुसार हमारे साथ व्यवहार कीजिए।"
11) दूसरे दिन साऊल ने सेना को तीन दलों में विभाजित किया। सबेरे, पहले पहर में ही उन्होंने शिविर में घुस कर धूप के तेज़ होने तक अम्मोनियों को पराजित कर दिया। जो शेष बचे, वे इस तरह तितर-बितर हो गये कि उन में दो भी एक साथ नहीं रहे।
12) तब लोगों ने समूएल से पूछा, "वे कौन हैं, जो कहते थे कि साऊल हमारा राजा नहीं होगा? उन व्यक्तियों को हमारे हवाले कर दीजिए और हम उनका वध करेंगे।"
13) लेकिन साऊल ने कहा, "आज किसी का वध नहीं किया जायें, क्योंकि आज प्रभु ने इस्राएल को विजय दी है।"
14) समूएल ने लोगों से कहा, "चलो, अब हम गिलगाल चलें और वहाँ राज्य को सुदृढ़ बनायें।"
15) इस पर सब लोग गिलगाल गये और वहाँ गिलगला में प्रभु के सामने साऊल को अपना राजा बनाया। वहीं उन्होंने प्रभु के सामने शान्ति-बलियाँ चढ़ायीं। साऊल ने सभी इस्राएलियों के साथ एक महोत्सव मनाया।