📖 - समूएल का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 18

1) साऊल के साथ दाऊद की बातचीत समाप्त हो जाने के बाद से योनातान की आत्मा और दाऊद की आत्मा एक हो गयी और योनातान दाऊद को अपने प्राणों के समान प्यार करने लगा।

2) उस दिन से साऊल ने उसे अपने यहाँ रोक लिया और उसे उसके पिता के घर नहीं लौटने दिया।

3) योनातान ने दाऊद के साथ मित्रता का सम्बन्ध बना लिया, क्योंकि वह उसे अपने प्राणों के समान प्यार करता था।

4) योनातान ने अपना लबादा उतार कर दाऊद को पहना दिया और साथ-साथ अपना कुरता, अपनी तलवार, अपना धनुष और अपना कमरबन्द भी दे दिया।

5) साऊल उसे जहाँ-जहाँ भेजता था, दाऊद सब जगह अपने कामों में सफल होता था; इसलिए साऊल ने उसे अपनी सेना के उच्च पद पर नियुक्त किया। यह सब लोगों को और सेना के अधिकारियों को भी अच्छा लगा।

6) जब दाऊद फ़िलिस्ती को मारने के बाद सेना के साथ लौटा, तो स्त्रियाँ इस्राएल के सब नगरों से निकल कर नाचते-गाते, डफली और झाँझ बजाते और जयकार करते हुए राजा साऊल की अगवानी करने गयीं।

7) वे नाचती हुई यह गा रही थीं- साऊल ने सहस्रों को मारा और दाऊद ने लाखों को।

8) साऊल यह सुन कर बुरा मान गया और बहुत अधिक क्रुद्ध हुआ। उसने अपने से कहा, "उन्होंने दाऊद को लाखों दिया और मुझे केवल सहस्रों को। अब राज्य के सिवा उसे किस बात की कमी है?"

9) उस समय से साऊल दाऊल को ईर्ष्या की दृष्टि से देखने लगा।

10) दूसरे दिन ईश्वर का भेजा हुआ दुष्ट आत्मा साऊल पर सवार हुआ और वह अपने घर में आविष्ट हो गया। दाऊद प्रतिदिन की तरह सितार बजा रहा था। साऊल के हाथ में उसका भाला था।

11) उसने दाऊद की ओर उसे यह सोच कर फेंक मारा कि मैं दाऊद को दीवार में ठोंक दूँगा। परन्तु दाऊद ने दो बार उस से अपने को बचा लिया।

12) साऊल दाऊद से डरता था, क्योंकि प्रभु दाऊद के साथ था और साऊल से दूर हो गया था।

13) इसलिए साऊल ने उसे अपनी सेवा से हटा दिया और उसे सहस्रपति नियुक्त किया। दाऊद युद्धों में सैनिकों का नेतृत्व किया करता था।

14) दाऊद अपने सब कामों में सफल होता था, क्योंकि प्रभु उसके साथ था।

15) जब साऊल ने देखा कि उसे बड़ी सफलता मिलती जा रही है, तो वह उस से और भी डरने लगा।

16) सारा इस्राएल और यूदा भी दाऊद को प्यार करता था, क्योंकि वही युद्धों में उनका नेतृत्व किया करता था।

17) साऊल ने दाऊद से कहा, "यह मेरी सब से बड़ी पुत्री मेरा मेरब है। मैं इस से तुम्हारा विवाह कर दूँगा। शर्त यह है कि तुम शूरवीर की तरह मेरी सेवा और प्रभु के लिए युद्ध करते रहो।" साऊल का यह विचार था कि मैं अपने हाथ से उसे न मारूँ, फ़िलिस्ती उसे मार डालें।

18) दाऊद ने साऊल से कहा, "मैं कौन हूँ, मेरे सम्बन्धी क्या हैं और इस्राएल में मेरे पिता का कुल क्या है, जो मैं राजा का दामाद बनूँ?"

19) जब साऊल की पुत्री मेरब के दाऊद के साथ विवाह का समय आया, तो उसका विवाह महोलाती अद्रीएल के साथ कर दिया गया।

20) साऊल की पुत्री मीकल दाऊद से प्रेम करती थी। जब यह बात साऊल को बतायी गयी, तो उसे सन्तोष हुआ;

21) क्योंकि साऊल ने सोचा कि मैं उसे दाऊद को दूँगा, जिससे वह उसके लिए जाल बन जाये और दाऊल फ़िलिस्तयों के हाथ पड़ जाये। इसलिए उसने दो बार दाऊद से कहा, "आज तुम मेरे दामाद बन जाओगे।"

22) साऊल ने अपने सेवकों को यह आज्ञा दी, "तुम एकान्त में दाऊद से मिल कर उस से कहो, ‘राजा तुम पर प्रसन्न है और उसके सब सेवक भी तुम को चाहते हैं, इसलिए अब तुम राजा के दामाद बन जाओ’।"

23) साऊल के सेवकों ने जब दाऊद से कहा, तो दाऊद ने उन्हें उत्तर दिया, "क्या तुम सोचते हो कि मुझ-जैसे ग़रीब और साधारण व्यक्ति के लिए राजा का दामाद बन जाना छोटी बात है?"

24) सेवकों ने साऊल को बताया कि दाऊल ने क्या उत्तर दिया।

25) इस पर साऊल ने आज्ञा दी, "तुम दाऊद से कहो कि राजा दहेज स्वरूप फ़िलिस्तियों की सौ खलड़ियों के सिवा और कुछ नहीं माँगता, जिससे राजा के शत्रुओं से बदला लिया जाये।" साऊल को यह आशा थी कि दाऊद फ़िलिस्तियों के द्वारा मार डाला जायेगा।

26) सेवकों ने दाऊद को यह शर्त बतायी और दाऊद ने राजा का दामाद बनना स्वीकार कर लिया।

27) अभी समय पूरा भी नहीं हो पाया था कि दाऊद अपने साथियों को ले कर गया और दौ सौ फ़िलिस्तयों को मार डाला। दाऊद उनकी खलड़ियाँ ले आया, जो राजा के समाने ही गिनी गयीं, जिससे दाऊद राजा का दामाद बने। इस पर साऊल ने अपनी पुत्री मीकल से उसका विवाह कर दिया।

28) साऊल ने अच्छी तरह समझ लिया कि प्रभु दाऊद के साथ है और उसकी पुत्री मीकल उस से प्रेम करती है।

29) इसलिए वह दाऊल से और भी अधिक डर गया और उसे जीवन भर दाऊद से शत्रुता रही।

30) फ़िलिस्तियों के नेता युद्ध करने आते रहे और जब-जब वे आते थे, तो दाऊद को साऊल के अन्य सेनापतियों की अपेक्षा अधिक सफलता मिलती थी और उसका नाम प्रसिद्ध हो गया।



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