📖 - निर्गमन ग्रन्थ

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अध्याय - 26

1) ''निवासस्थान को ऐसे दस परदों से बनवाओं, जो बटी हुई छालटी और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों से बने हों और जिन पर एक कुशल शिल्पकार द्वारा केरूबों के चित्र कढ़े हों।

2) हर परदें की लम्बाई अट्ठाइस हाथ और चौड़ाई चार हाथ हो। हर परदा एक ही नाप का हो।

3) पाँच परदे एक दूसरे से जुड़वाओं और इसी प्रकार दूसरे पाँच परदे भी।

4) दोनों सामने वाले परदों के किनारे पर नीले रंग के फन्दे लगवाओं;

5) एक परदे में पचास फन्दे और दूसरे में भी पचास फंदे। वे फन्दे एक दूसरे के आमने-सामने हों।

6) फिर, सोने के पचास अँकुड़े बनवाओं और उन अँकुड़ों से दोनों परदों को मिलाओ, जिससे निवासस्थान एक इकाई बन जाये।

7) ''निवासस्थान को ढकने के लिए तुम बकरी के बालों के परदे बनवाओ; ग्यारह परदे बनवाओ।

8) हर परदे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ हो। ग्यारह परदे एक ही नाप के हों।

9) उन परदों में पाँच को जोड़ कर एक परदा बनवाओं और शेष छः परदों को भी जोड़ कर एक दूसरा परदा बनवाओ। छठे परदे को तम्बू के सामने मोड़ कर दुहरा कर दो।

10) दोनों सामने वाले परदों के किनारे पर पचास फन्दे बनवाओं।

11) फिर काँसे के पचास अँकुड़े बनवाओं। उन अँकुड़ों में फन्दे लगवाओं और तम्बू के दोनों भाग इस प्रकार जोड़ दो कि वह एक इकाई बन जाये।

12) परदों का वह भाग जो बचा है, उसका आधा भाग निवास के पीछे लटकता रहने दो

13) और परदों की लम्बाई में बचा हुआ भाग निवास के अगल-बगल ढकने के लिए, एक-एक हाथ लटकता छोड़ दो।

14) तम्बू के लिए तुम मेढ़े के सीजे चमड़े का एक आवरण बनवाओ और फिर उसके ऊपर लगाने का सूस के चमड़े का एक और आवरण।

15) निवास के लिए बबूल की लकड़ी से चौखटें बनवा कर खड़ा कर दो।

16) हर एक की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ हो।

17) जोड़ने के लिए प्रत्येक चौखट में दो चूलें हों। निवास की सब चौखटें उसी तरह बनवाओ।

18) निवास के दक्षिणी किनारे के लिए बीस चौखटें बनवाओ और

19) उनके नीचे चाँदी की चालीस कुर्सियाँ, अर्थात् एक-एक चौखट के नीचे उसकी दोनों चूलों के लिऐ दो कुर्सियाँ।

20) निवास की दूसरी ओर, अर्थात् उत्तरी किनारे के लिए भी बीस चौखटें बनवाओ।

21) साथ-साथ चाँदी की चालीस कुर्सियाँ, प्रत्येक चौखट के नीचे दो कुर्सियाँ, बनवाओ।

22) निवास के पीछे, अर्थात् पश्चिमी ओर के लिए छह और चौखटें बनवाओ।

23) निवास के पीछे के भाग के कोनों के लिए दो चौखटें बनवाओ।

24) वे दुहरी हों, नीचे की ओर कुछ अलग हों और ऊपर एक कड़े पर जुड़ी हों दोनों कोनों पर ऐसा ही होगा।

25) इस तरह आठ चौखटें होगी, जिनके नीचे चाँदी की सोलह कुर्सियाँ होंगी, प्रत्येक चौखट के नीचे दो कुर्सियाँ।

26) ''बबूल की लकड़ी के छड़ बनवाओ। निवास की एक ओर की चौखटों के लिए पाँच छड़

27) और निवास की दूसरी ओर की चौखटों के लिए पाँच छड़; निवास के पिछले भाग, अर्थात् पश्चिमी किनारे की चौखटों के लिए भी पाँव छड़।

28) बीच वाला छड़ चौखटों के बीचों-बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचता हो।

29) चौखटों को सोने से मढ़वाओ। छड़ों के घरों के लिए सोने के कड़े बनवा कर छड़ों को भी सोने से मढ़वाओ।

30) इस प्रकार निवास को ठीक उसी नमूने के अनुसार बनवाओ, जो तुम को पर्वत पर दिखाया गया है।

31) ''फिर नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों से और बटी हुई छालटी से एक अन्तरपट बनवाओ, जिस में एक कुशल शिल्पकार द्वारा केरूबों के चित्र कढ़े हों।

32) उसे सोने के मढ़े बबूल की लकड़ी के चार खूँटों में लटकाओ। वे चाँदी की चार कुर्सियों पर लगे हों तथा सोने के अँकुड़ों में फँसे हों।

33) अन्तरपट को अँकुड़ों द्वारा लटकाओ और अन्तरपट के पीछे विधान की मंजूषा रखवाओ। वह अन्तरपट परम-पवित्र स्थान से पवित्र स्थान को अलग करेगा।

34) परमपवित्र स्थान में विधान की मंजूषा पर छादन-फलक को रखवाओ।

35) अन्तरपट के बाहर, निवासस्थान के उत्तरी भाग में मेज़ रखवाओं और मेज़ के सामने, निवास के दक्षिणी भाग में, दीपवृक्ष रखवाओ।

36) निवास के द्वार के लिए नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों का तथा बटी हुई छालटी का एक परदा बनवाओ, जिस में बेलबूटे कढ़े हों।

37) इस परदे को लटकाने के लिए बबूल की लकड़ी के सोने से मढ़े पाँच खूँटे बनवाओं। उनके अँकुड़े सोने के हों और उनके लिए काँसे की पाँच कुर्सियाँ ढलवाओ।



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