1) तब मूसा और इस्राएली प्रभु के आदर में यह भजन गाने लगे : मैं प्रभु का गुणगान करना चाहता हूँ। उसने अपनी महिमा प्रकट की है उसने घोड़े के साथ घुड़सवार को समुद्र में फेंक दिया है।
2) प्रभु मेरा शक्तिशाली रक्षक है। उसने मेरा उध्दार किया है। मैं अपने ईश्वर की महिमा गाऊँगा। मैं अपने पिता के ईश्वर की स्तुति करूँगा।
3) प्रभु महान् योद्धा है। प्रभु ही उसका नाम है।
4) उसने फिराउन के रथ और उसकी सेना की सागर में फेंक दिया है। फिराउन के चुने हुए वीर योध्दा लाल समुद्र में डूब कर मर गये।
5) समुद्र की लहरें उन्हें ढकती हैं। वे पत्थर की तरह जलगर्त में डूब गये।
6) प्रभु तेरा दाहिना हाथ शक्तिशाली है। प्रभु! तेरा भुजबल शत्रु को कुचल देता है।
7) तू अपनी तेजस्विता से अपने विरोधियों का दमन करता है। अपनी कोपाग्नि द्वारा उन्हें भूसे की तरह भस्म कर देता है।
8) तेरी एक ही साँस में पानी थम गया। जलधारा दीवार की तरह खडी हो गयी और समुद्र की लहरें बर्फ़ की तरह जम गयीं।
9) शत्रु ने कहा, ''मैं उनका पीछा करूँगा और उन्हें पकड़ लूँगा। मैं लूट का माल बाँट कर तृप्त हो जाऊँगा। मैं तलवार खींच कर उनका सर्वनाश करूँगा।
10) तूने साँस फूँक कर उन्हें समुद्र से ढक दिया। वे सीसे की तरह गहरे पानी में डूब गये।
11) प्रभु! देवताओं में तेरे सदृश कौन है? तेरे सदृश कौन है? तेरी पवित्रता देदीप्यमान, तेरे कार्य महान् और विस्मयकारी हैं।
12) तूने दाहिना हाथ पसारा और पृथ्वी उन्हें निगल गयी।
13) तूने जिस प्रजा का उद्धार किया था, तू निष्ठापूर्वक उसका पथप्रदर्शन करता रहा। तू उसे अपने सामर्थ्य से अपने पवित्र निवास की ओर ले चला।
14) यह सुन कर राष्ट्र काँपने लगे, फिलिस्तिया के निवासी भयभीत हो गये,
15) एदोम के अधिपति आतंकित हो गये, मोआबी नेता थरथराने लगे। कनान के सब निवासी सन्न रह गये,
16) आतंक और भय उन पर छाया रहा, तेरे भुजबल ने उन्हें पत्थर-सा निर्जीव कर दिया। प्रभु! इतने में तेरी प्रजा पार हो जाती है, इतने में तेरी अपनी प्रजा पार हो जाती है
17) तू अपनी प्रजा को ले जा कर अपने पर्वत पर बसाता है, उस स्थान पर, जिसे तूने अपने निवास के लिए चुना है, उस मन्दिर के पास, जिसे तूने अपने हाथों से बनाया है।
18) प्रभु अनन्त काल तक राज्य करता रहेगा।''
19) जैसे फिराउन के घोड़े, उसके रथ और उसके घुड़सवार समुद्र के अन्दर पहुँचे, प्रभु समुद्र के पानी को फिर से उनके ऊपर अपने पहले स्थान पर ले आया। इस समय तक इस्राएली समुद्र के बीच से सूखी भूमि पर चलते हुए पार हो चुके थे।
20) इसके बाद हारून की बहन नबियानी मिरयम अपने हाथ में डफली ले कर बाहर निकली और अन्य स्त्रियाँ भी अपने-अपने हाथ में डफली लिये नाचती हुई उसके पीछे निकल पड़ी।
21) मिरयम उनके साथ यह टेक गाती जाती थी: “प्रभु का गुणगान करो, क्योंकि उसने महान कार्य किया, उसने घोडों और उनके सवारों को समुद्र में बहा दिया है।“
22) अब मूसा इस्राएलियों को लाल समुद्र से आगे ले गया और वे शूर नामक उजाड़ प्रदेश में पहुँचे। वे तीन दिन तक ऐसे उजाड़ प्रदेश से हो कर चलते रहे, जिस में कहीं पानी नहीं मिला था।
23) वे मारा पहुँच कर भी मारा का पानी नहीं पी सके थे, क्योंकि वह कड़वा था और उस स्थान का नाम भी मारा पड़ा।
24) लोग मूसा के विरुद्ध यह कहते हुए भुनभुनाने लगे, ''हम क्या पियें?''
25) उसने प्रभु की दुहाई दी। प्रभु ने उसे एक लकड़ी दिखायी। उसने उसे पानी में फेंका और वह पानी मीठा हो गया। प्रभु ने वहाँ उनके लिए एक आदेश निकाला और एक विधि बनायी। उसने वहाँ उनकी परीक्षा ली।
26) उसने कहा, ''यदि तुम अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी ध्यान से सुनोगे और उसकी इच्छा पूरी करोगे, उसकी आज्ञाओं और सब विधियों का पालन करोगे, तो मैं वे बीमारियाँ तुम्हारे ऊपर नहीं ढाहूँगा, जिन्हें मैंने मिस्रियों पर ढाही थी; क्योंकि मैं वह प्रभु हूँ, जो तुम्हें स्वस्थ करता हैं।
27) इसके बाद वे एलीम पहुँचे। वहाँ पानी के बारह सोते और खजूर के सत्तर वृक्ष थे। उन्होंने वहीं पानी के पास अपना पड़ाव डाला।