1) टोबीत ने आनन्दविभोर हो कर यह प्रार्थना लिखी। उसने कहाः
2) जीवन्त ईश्वर सदा-सर्वदा धन्य है! उसका राज्य धन्य है। वह दण्ड देता और दया करता है। वह अधोलोक में उतारता और फिर महागत्र्त से निकलता है। उसके हाथ से कोई नहीं बचता।
3) इस्राएल के पुत्रो! राष्ट्रों में उसका स्तुतिगान करो, क्योंकि उसने तुम लोगों को उन में निर्वासित किया है।
4) उसने वहाँ अपनी महत्ता दिखलायी है। समस्त प्राणियों के सामने उसकी स्तुति करो; क्योंकि वह हमारा प्रभु है, हमारा ईश्वर और हमारा पिता। वह सदा-सर्वदा ईश्वर हैं।
5) वह तुम्हारे अधर्म के कारण तुम को दण्ड देता है, किन्तु वह तुम सब पर दया करेगा और तुम को उन सब राष्ट्रों से निकालेगा, जिन में तुम निर्वासित किये गये हो।
6) यदि तुम सारे हृदय और सारी आत्मा से उसके पास लौट आओगे और उसके सामने सत्य के मार्ग पर चलोगे, तो वह तुम्हारे पास लौटेगा और फिर तुम से अपना मुख नहीं छिपायेगा। देखो, उसने तुम्हारे लिए क्या किया और ऊँचे स्वर में उसकी स्तुति करो। न्याय के प्रभु को धन्य कहो और युग-युगों के राजा का स्तुतिगान करो। जिस देश में निर्वासित हूँ, वहाँ मैं उसकी स्तुति करता हूँ। मैं एक पापी राष्ट्र के सामने उसका सामर्थ्य और उसकी महिमा प्रकट करता हूँ। पापियों! प्रभु के पास लौटो और उसके सामने धर्माचरण करो। क्या जाने, वह तुम पर प्रसन्न हो जाये और तुम पर दया करे।
7) मैं स्वर्ग के राजा का स्तुतिगान करता हूँ और उसके कारण जीवन भर आनन्द मनाता हूँ।
8) प्रभु के सब कृपापात्रो! प्रभु को धन्य कहो और उसकी महिमा का बखान करो। आनन्द मनाते हुए उसका स्तुतिगान करो।
9) पवित्र नगर येरूसालेम! उसने तेरे पापों के कारण तुझे दण्ड दिया।
10) प्रभु की दयालुता की स्तुति करो और युग-युगों के अधीश्वर को धन्य कहो, जिससे तुझ में उसके मन्दिर का पुनर्निर्माण हो, वह तेरे निर्वासितों को लौटा कर तुझे आनन्दित करे और जो दुःखी थे, उन सब को युग-युग तक प्यार करे।
11) एक उज्जवल ज्योति पृथ्वी के सीमान्तों तक चमकेगी, दूर-दूर के राष्ट्र तेरे पास आयेंगे। प्रभु के पवित्र नाम के कारण वे पृथ्वी के सीमान्तों से आयेंगे और हाथ में उपहार लिये स्वर्ग के ईश्वर को अर्पित करेंगे। सब पीढ़ियाँ तुझ में आनन्द मनायेंगी और तुझे युग-युग तक प्रभु की कृपापात्र कहेंगी।
12) वे सभी शापित हों, जो तेरी निन्दा करेंगे! वे सभी शापित हों, जो तेरा विनाश करते और तेरी चारदीवारी तोड़ते हैं, जो तेरी मीनारें गिराते और तेर घर जलाते हैं! धन्य हैं वे सभी, जो तुझ पर सदा श्रद्धा रखते हैं!
13) तू धर्मियों के पुत्रों के कारण आनन्द मनायेगा, क्योंकि तुझ में सभी एकत्र होंगे और शाश्वत ईश्वर को धन्य कहेंगे।
14) धन्य हैं, जो तुझे प्यार करते हैं! धन्य हैं वे, जो तेरी शान्ति के कारण आनन्द मनाते हैं! वे सब मनुष्य धन्य हैं, जो तेरी विपत्ति के कारण शोक मनाते हैं; क्योंकि वे तेरी सुख-शान्ति देख कर सदा के लिए आनन्द मनाते रहेंगे।
15) मेरी आत्मा! राजधिराज प्रभु को धन्य कहो;
16) क्योंकि येरूसालेम नगर में सदा के लिए उसके मन्दिर का निर्माण किया जायेगा। यदि मेरे वंशज भविष्य में तेरी महिमा देखेंगे और स्वर्ग के राजा का स्तुतिगान करेंगे, तो मैं अपने को सौभाग्यशाली मानूँगा। येरूसालेम! तेरा फाटक नीलम और मरकत से और तेरी सब दीवारें बहुमूल्य मणियों से सुशोभित होंगी। येरूसालेल की मीनारें स्वर्ण से और उसके प्राचीर शुद्ध सोने से निर्मित किये जायेंगे।
17) येरूसालेम के चैकों में मणिक और ओफ़िर की मणियाँ जड़ी जायेंगी।
18) येरूसालेम के फाटक आनन्द के गीत गायेंगे और उसके सभी निवासी बोल उठेंगे, "अल्लेलूया! धन्य है इस्राएल का ईश्वर! और धन्य हैं वे, जो उसके परमपावन नाम की स्तुति करते हैं, अभी और अनन्तकाल तक! यहाँ तक टोबीत का स्तुतिगान।