1) वे वहाँ से चल कर नीनवे के पास कासरीन आये।
2) तब रफ़ाएल ने कहा, "तुम जानते हो कि हम तुम्हारे पिता को किस हालत में छोड़ गये हैं।
3) हम दोनों तुम्हारी पत्नी के पहले चलें और घर में इन लोगों के पहुँचने की तैयारी करें।"
4) दोनों साथ आगे बढे़। रफ़ाएल ने कहा, "अपने साथ पित्त ले आओं"। कुत्ता रफ़ाएल और टोबीयाह के पीछे दौड़ता आया।
5) इस बीच अन्ना बाहर बैठी हुई अपने पुत्र की राह देख रही थी।
6) उसने उसे आते देखा और उसके पिता से कहा, "देखो, तुम्हारा पुत्र और वह व्यक्ति, जो उसके साथ गया था, आ रहे हैं"।
7) पिता के पास पहुँचने से पहले रफ़ाएल ने टोबीयाह से कहा, "मैं जानता हूँ कि उनकी आँखें अच्छी हो जायेंगी।
8) उन की आँखों पर मछली का पित्त लगाओ। इस से मातियाबिन्द की झिल्ली उनकी आँखों पर से निकल जायेगी और तुम्हारे पिता फिर प्रकाश देख सकेंगे।"
9) अन्ना दौड़ते हुए अपने पुत्र से मिली और यह कहते हुए उसे गले लगाया, "बेटा! मैंने तुम को फिर देखा; अब मरने को तैयार हूँ" और वह रोने लगी।
10) टोबीत उठ कर लड़खड़ाता हुआ अपने आँगन के द्वार से निकला।
11) टोबीयाह हाथ में मछली का पित्त लिये उसके पास आया और उसे सँभालते हुए उसकी आँखों पर फँूक मारी और बोला, "पिताजी! ढारस रखिए!" इसके बाद उसने उन पर दवा लगायी
12) और अपने दोनों हाथों से अपने पिता की आँखों के कोरों से मोतियाबिन्द की झिल्ली निकाली।
13) टोबीत ने अपने पुत्र को देख कर उसे गले लगाया
14) और रोते हुए उस से कहा, "बेटा! मैं तुम को, अपनी आँखों की ज्योति को देखता हूँ" उसने फिर कहा, "धन्य है ईश्वर, धन्य है उसका महान् नाम और उसके सब स्वर्गदूत युग-युग धन्य है;
15) क्योंकि उसने मुझे मारा और अब वह मुझे अपने पुत्र टोबीयाह के दर्शन कराता है"। टोबीत और उसकी पत्नी अन्ना आनन्दित को कर घर के अन्दर आये और उन्होंने ऊँचे स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देते हुए सबों को बताया कि उनके साथ क्या-क्या हुआ। टोबीयाह ने अपने पिता को बताया कि उसकी यात्रा प्रभु-ईश्वर की कृपा से सफ़ल रही, वह रुपया ले आया, उसने रगुएल की पुत्री से विवाह किया और यह कि वह आने वाली है, क्योंकि यह नीनवे के फ़ाटक पर पहुँच रही है। यह सुनकर टोबीत और अन्ना को बडा आनन्द हुआ
16) और वे अपनी बहू की अगवानी करने नीनवे के फाटक गये। जब नीनवे के निवासियों ने देखा कि टोबीत पूर्ण स्वस्थ हो कर चलता-फिरता है और कोई उसका हाथ पकड़ कर उसे नहीं ले चलता, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।
17) उनके सामने ऊँचे स्वर में ईश्वर को धन्यवाद देते हुए टोबीत यह बताता था कि ईश्वर ने उस पर कैसे दया की और उसकी आँखों को अच्छा किया। टोबीत ने अपने पुत्र टोबीयाह की पत्नी सारा के पास आ कर उसे यह कहते हुए आशीर्वाद दिया, " पुत्री ! सकुशल पधारो। पुत्री!
18) टोबीयाह के भाइयों में अहीकार और नादाब आनन्दित हो कर उसके पास आये। सात दिन तक विवाहोत्सव मनाया गया और टोबीयाह को बहुत-से उपहार मिले।