📖 - पहला इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 16

1) वे ईश्वर की मंजूषा को ले आये और उसे उस तम्बू में रख दिया, जिसे दाऊद ने उसके लिए खड़ा कर दिया था। उन्होंने ईश्वर को होम तथा शान्ति के बलिदान चढ़ाये।

2) होम तथा शांन्ति के बलिदान चढा़ने के बाद दाऊद ने प्रभु के नाम पर लोगों को आशीर्वाद दिया।

3) उसने सभी इस्राएली पुरुषों और स्त्रियों को एक-एक रोटी, भूने हुए मांस का एक-एक टुकड़ा और किशमिश की एक-एक टिकिया दी।

4) दाऊद ने प्रभु की मंजूषा की सेवा के लिए कुछ लेवियों को नियुक्त किया, जिससे वे प्रभु, इस्राएल के ईश्वर का नाम लें, उसकी महिमा गायें और उसकी स्तुति करें।

5) आसाफ़ उनका प्रधान था; इसके बाद दूसरा ज़कर्या; फिर यईएल, शमीरामोत, यहीएल, मत्तित्या, एलीआब, बनाया, ओबेद-एदोम और यईएल। ये सारंगी और सितार बजाते थे, आसाफ़ झाँझें बजाता था

6) और याजक बनाया तथा यहज़एल प्रभु के विधान की मंजूषा के सामने निरन्तर तुरहियाँ बजाते थे।

7) उस दिन दाऊद ने पहली बार आदेश दिया कि आसाफ़ और उसके भाई-बन्धु प्रभु की स्तुति करें

8) प्रभु की स्तुति करो, उसका नाम धन्य कहो। राष्ट्रों में उसके महान् कार्यों का बखान करो।

9) उसके आदर में गीत गाओ और बाजा बजाओ। उसके सब चमत्कारों को घोषित करो।

10) उसके पवित्र नाम पर गौरव करो। प्रभु को खोजने वालों का हृदय आनन्दित हो।

11) प्रभु और उसके सामर्थ्य का मनन करो। उसके दर्शनों के लिए लालायित हो।

12) उसके चमत्कार, उसके अपूर्व कार्य और उसके निर्णय याद रखो।

13) प्रभु-भक्त इस्राएल की सन्तति! याकूब के पुत्रों! प्रभु की चुनी हुई प्रजा!

14) प्रभु ही हमारा ईश्वर है। उसके निर्णय समस्त पृथ्वी पर व्याप्त है।

15) उसका विधान सदा स्मरण रखो, हज़ारों पीढ़ियों के लिए उसकी प्रतिज्ञाएँ,

16) इब्राहीम के लिए निर्धारित विधान, इसहाक के सामने खायी हुई शपथ,

17) याकूब को प्रदत्त संहिता, इस्राएल के लिए चिरस्थायी विधान।

18) उसने कहा थाः "मैं तुम्हें कनान देश दूँगा, वह तुम्हारे लिए निश्चित की हुई विरासत है।"

19) उस समय तुम्हारी संख्या बहुत कम थी, तुम मुट्ठी-भर प्रवासी थे।

20) वे एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में, एक राज्य से दूसरे राज्य में भटकते-फिरते थे।

21) फिर भी प्रभु ने किसी को उन पर अत्याचार नहीं करने दिया। उसने उनके कारण राजाओं को डाँटाः

22) मेरे अभिषिक्तों पर हाथ नहीं लगाना, मेरे नबियों को कष्ट नहीं देना"।

23) समस्त पृथ्वी! प्रभु का भजन सुनाओ। दिन-प्रतिदिन उसका मुक्ति-विधान घोषित करो।

24) सभी राष्ट्रों में उसकी महिमा का बखान करो। सभी लोगों को उसके अपूर्व कार्यों का गीत सुनाओ;

25) क्योंकि प्रभु महान् और अत्यन्त प्रशंसनीय है। वह सब देवताओं में परमश्रद्धेय है।

26) अन्य राष्ट्रों के सब देवता निस्सार हैं, किन्तु प्रभु ने आकाश का निर्माण किया है।

27) वह महिमामय और ऐश्वर्यशाली है। उसका निवास वैभवपूर्ण और भव्य है।

28) पृथ्वी के सभी राष्ट्रो! प्रभु की महिमा और सामर्थ्य का बखान करो।

29) उसके नाम की महिमा का गीत सुनाओ। चढ़ावा ले कर उसके सामने आओ। पवित्र वस्त्र पहन कर प्रभु की आराधना करो।

30) समस्त पृथ्वी! उसके सामने काँप उठो। पृथ्वी सुदृढ़ है; वह हिलेगी नहीं।

31) स्वर्ग में आनन्द और पृथ्वी पर उल्लास हो। राष्ट्रों में घोषित करो कि प्रभु ही राजा है।

32) सागर की लहरें गर्जन करने लगें, खेतों के पौधे खिल जायें

33) और वन के सभी वृक्ष आनन्द का गीत गायें; क्योंकि प्रभु पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है।

34) प्रभु की स्तुति करो; क्योंकि वह भला है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।

35) यह कहो-प्रभु! हमारे ईश्वर! हमारा उद्धार कर। राष्ट्रों में से हमें एकत्र कर, जिससे हम तेरा पवित्र नाम धन्य कहें और तेरी स्तुति करते हुए अपने को धन्य समझें।

36) प्रभु, इस्राएल का ईश्वर, सदा-सर्वदा धन्य है। इस पर सब लोगो ने कहा, "आमेन" और "प्रभु की स्तुति करो"।

37) दाऊद ने वहाँ प्रभु के विधान की मंजूषा के सामने आसाफ़ और उसके भाई-बन्धुओं को नियुक्त किया, जिससे वे प्रतिदिन के कार्यक्रम के अनुसार मंजूषा के, सामने निरन्तर सेवा करते रहें।

38) उसने ओबेद-एदोम तथा उसके अड़सठ भाई-बन्धुओं को भी सेवा में उनकी सहायता के लिए नियुक्त किया और यदूतून के पुत्र ओबेद-एदोम और होसा को द्वारपाल के रूप में।

39) उसने याजक सदोक और उसके याजक भाइयों को गिबओन की पहाड़ी पर प्रभु के निवास के समाने नियुक्त किया,

40) जिससे वे बलि की वेदी पर प्रातः और सन्ध्या समय प्रभु की होम-बलि ठीक उसी प्रकार चढ़ाया करें, जिस प्रकार इस्राएलियों को प्रदत्त प्रभु की संहिता में लिखा है।

41) उनके साथ हेमान, यदूतून और अन्य लोग थे, जो नाम लेकर चुने और नियुक्त किये गये, जिससे वे प्रभु की महिमा करें; क्योंकि उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।

42) हेमान और यदूतून के पास तुरहियाँ, झाँझें और प्रभु के संगीत के वाद्य थे। यदूतून के पुत्र द्वारपाल थे।

43) इसके बाद प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने घर लौट गया और दाऊद भी अपने कुटुम्बियों को आशीर्वाद देने अपने घर गया।



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