1) दाऊद ने सहस्त्रपतियों और शतपतियों-सब नेताओं से सलाह ली।
2) दाऊद ने इस्राएल के सारे समुदाय से कहा, "यदि आप लोग ठीक समझें और प्रभु, हमारे ईश्वर को यह बात स्वीकार्य हो, तो हम अपने सारे अन्य बन्धुओं को, जो इस्राएल के देश भर में रह गये हैं और उनके साथ अपने नगरों और चरागाहों में रहने वाले याजकों तथा लेवियों को यह कहला भेजे कि वे हम में सम्मिलित हों।
3) हम अपने ईश्वर की मंजूषा अपने पास ले आयें, क्योंकि हमने साऊल के शासनकाल में उसका ध्यान नहीं रखा।"
4) सारे समुदाय ने इसे स्वीकार किया। यह प्रस्ताव सब लोगों को अच्छा लगा।
5) दाऊद ने मिस्र के शीहोर से ले कर हमात के मार्ग तक के सब इस्राएलियों के किर्यत-यआरीम से प्रभु की मंजूशा ले आने के लिए एकत्रित किया।
6) दाऊद सब इस्राएलियों के साथ यूदा प्रान्त के बाला, अर्थात् किर्यत-यआरीम गया, जिससे वह वहाँ से ईश्वर की मंजूषा ले आये, जो केरूबों पर आसीन प्रभु के नाम से प्रसिद्ध है।
7) ईश्वर की मंजूषा एक नई गाड़ी पर रखी गयी और अबीनादाब के घर से ले जायी गयी। उज़्ज़ा और अहयो वह गाड़ी हाँक रहे थे।
8) दाऊद और इस्राएल के सब लोग ईश्वर के सामने सारे हृदय से खुशियाँ मना रह थे और गीत गाते, सितार, सारंगी, डफ, डमरू और तुरहियाँ बजाते हुए चल रहे थे।
9) जब वे कीदोन के खलिहान के पास आये, तब उज़्ज़ा ने हाथ उठा कर मंजूषा को सँभाला, क्योंकि बैलों को ठोकर लग गयी थी।
10) प्रभु का कोप उज़्ज़ा पर भड़क उठा, क्योंकि उसने मंजूषा को हाथ उठाकर छू लिया था। वहीं ईश्वर के सामने उसकी मृत्यु हो गयी।
11) दाऊद बहुत घबरा गया, क्योंकि प्रभु का क्रोध उज़्ज़ा पर भड़क उठा। उस स्थान का नाम पेरेस-उज़्ज़ा पड़ गया, जो आज तक प्रचलित है।
12) उस दिन यह सोच कर दाऊद ईश्वर से डर गया कि मैं ईश्वर की मंजूषा अपने पास कैसे ला सकता हूँ।
13) इसलिए दाऊद मंजूषा अपने यहाँ दाऊदनगर में नहीं लाया, बल्कि उसे गतवासी ओबेद-एदोम के यहाँ ले गया।
14) ईश्वर की मंजूषा तीन महीने तक ओबेद-एदोम के यहाँ रही। प्रभु ने ओबेद-एदोम के घर और परिवार और उसके यहाँ जो कुछ था, उसे आशीर्वाद दिया।