📖 - योशुआ का ग्रन्थ

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अध्याय 18

1) इस्राएलियों का समस्त समुदाय शिलो में एकत्रित हुआ और वहाँ दर्शन-कक्ष की स्थापना की। उस समय सारा देश उनके अधीन था।

2) अब इस्राएलियों के सात वंश ऐसे रह गये, जिन्हें दायभाग नहीं मिला था।

3) योशुआ ने इस्राएलियों से कहा, "तुम कब तक उस देश पर अधिकार करने में विलम्ब करोगे, जिसे प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर ने तुम्हें दिया है?

4) तुम प्रत्येक वंश से तीन-तीन व्यक्ति चुनो। मैं उन्हें भेजूँगा। वे देश का भ्रमण करेंगे और उसका सर्वेक्षण करने के बाद निर्णय करेंगे कि किस-किस को कौन-कौन सा भाग मिलेगा। तब वे मेरे पास लौटेंगे।

5) तुम देश को सात भागों में विभाजित करोगे। दक्षिण में यूदा वंश अपने क्षेत्र में बना रहेगा और उत्तर में यूसुफ़ के वंशज अपने क्षेत्र में।

6) देश के सात भागों का वर्णन लिखने के बाद उन्हें मेरे पास ले आओगे और तब मैं यहाँ प्रभु, तुम्हारे ईश्वर के सामने तुम्हारे लिए चिट्ठियाँ डालूँगा।

7) लेवियों को तुम्हारे साथ कोई भाग नहीं मिलेगा, क्योंकि प्रभु का याजकीय पद ही उनका दायभाग है। गाद, रूबेन तथा मनस्से के आधे कुल को यर्दन के उस पार पूर्व में दायभाग मिल चुका है, जिसे प्रभु के सेवक मूसा ने उन्हें दिया था।"

8) जब वे देश का सर्वेक्षण करने निकले, तो योशुआ ने उन से कहा, "तुम देश को सर्वेक्षण करने जाओ, उसका वर्णन लिखो और मेरे पास लौटो। मैं यहाँ शिलो में प्रभु के सामने तुम्हारे लिए चिट्ठियाँ डालूँगा।"

9) वे लोग चले गये और उन्होंने देश का भ्रमण कर उसका वर्णन लिखा और उसके नगरों को सात भागों में बाँटा। जब वे शिलो के शिविर में योशुआ के पास लौट आये,

10) तो योशुआ ने शिलो में प्रभु के सामने उनके लिए चिट्ठियाँ डाली। इस प्रकार योशुआ ने इस्राएलियों के लिए वहाँ के देश को विभाजित कर प्रत्येक के लिए उसका भाग निश्चित कर दिया।

11) बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के लिए इस प्रकार चिट्ठी निकली। उनका भाग यूदा और युसूफ़वंशियों के बीच में पड़ा।

12) उत्तर में उनकी सीमा यर्दन से प्रारम्भ होती थी। वहाँ से वह येरीख़ो की उत्तरी ढलान होकर पश्चिम की ओर मुड़ती थी और पहाड़ी प्रदेश पार कर बेत-आवेन के उजाड़खण्ड में समाप्त होती थी।

13) वहाँ से वह सीमा लूज़ की, जो बेतेल भी कहलाता है, दक्षिणी ढालन पर अटारोत-अद्दार तक उस पर्वत पर पहुँचती थी, जो निचले बेत-होरोन के सामने के दक्षिणी में है।

14) फिर वह सीमा बेत-होरोन के सामने के दक्षिण पर्वत से प्रारम्भ हो कर दक्षिण की ओर आती थी और किर्यत-बाल, अर्थात किर्यत-यआरीम पर समाप्त होती थी। वह नगर यूदावंशियों का था। यही उसकी पश्चिमी सीमा थी।

15) दक्षिणी सीमा किर्यत-यआरीम के पास से प्रारम्भ होती थी। यहाँ से वह पश्चिम की ओर मुड़ कर नेफ़तोआ के जलस्रोत तक जाती थी।

16) फिर वह सीमा उस पर्वत के किनारे तक जाती थी जो बेन-हिन्नोम की घाटी के सामने है और जो रफ़ाईम की घाटी के उत्तरी सिरे पर स्थित है। फिर वह यबूसी पर्वत की ढाल के दक्षिण हिन्नोम घाटी में उतर कर एन-रोगेल तक जाती थी।

17) वह वहाँ से उत्तर की ओर मुड़ कर और एन-शेमेश के पास से हो कर अदुम्मीम की घाटी के सामने गलीलोत तक जाती थी और रूबेन के पुत्र बोहन की शिला तक पहुँचती थी।

18) वह उत्तर दिशा में बेत-अराबा के पर्वत की ढाल से उतर कर नीचे की ओर अराबा तक जाती थी।

19) वहाँ से वह सीमा बेत-होगला के उत्तर के पर्वत की ढाल से निकल कर लवण सागर की उत्तरी खाड़ी में, यर्दन के दक्षिण्ी सिरे पर समाप्त होती थी। यह दक्षिणी सीमा थी।

20) यर्दन पूर्व की ओर सीमा का निर्धारण करती थी। यही बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के दायभाग थे तथा यही उनके चारों ओर की सीमाएँ थी।

21) बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के नगर ये है: येरीख़ो, बेत-होगला, एमेक-कसीस,

22) बेत-अराबा, समारईम, बेतेल,

23) अव्वीम, पारा, ओफ्रा,

24) कफ़र-अम्मोनी, ओफ़नी और गेबा - ये बारह नगर और इनके साथ के गाँव।

25) गिबओन, रामा, बएरोत,

26) मिस्पे, कफ़ीरा, मोसा,

27) रेकेम, यिर्पएल, तरअला,

28) सेला, एलेफ़, यबूसियों का नगर अर्थात येरूसालेम, गिबअत और किर्यत-यआरीम ये चैदह नगर और इनके आसपास के गाँव। यही बेनयामीन वंश के विभिन्न कुलों के दायभाग थे।



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