📖 - योशुआ का ग्रन्थ

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अध्याय 02

1) नून के पुत्र योशुआ ने षिट्टीम से दो पुरुषों को गुप्तचर के रूप में भेजा और उन से कहा, "जाओ और उस देश के विषय में विशेष कर येरीख़ो के विषय में जानकारी प्राप्त करो। वे चल पड़े। वे राहाब नामक एक वेश्या के घर पहुँचे और वहीं ठहरे।

2) लोगो ने येरीख़ो के राजा से कहा, "इस्राएलियों के कुछ पुरुष आज रात देश का भेद लेने यहाँ आये हैं"।

3) इस पर येरीख़ो के राजा ने राहाब के पास कहला भेजा, "उन पुरुषों को बाहर कर दो जो तुम्हारे यहाँ आ कर ठहरे है क्योंकि वे सारे देश का भेद लेने के लिए आये हैं"।

4) परन्तु उस स्त्री ने दोनों पुरुषों को छिपा दिया और उत्तर भेजा, "हाँ सच ही कई पुरुष मेरे यहाँ आये थे पर मैं नही जानती थी कि वे कहाँ से आये थे।

5) अँधेरा होने पर जब नगर का फाटक बंद होने को था, उस समय वे चले गये। मैं नहीं कह सकती कि वे कहाँ चले गये। यदि आप शीघ्र ही उनका पीछा करेंगे, तो आप उन्हें पकड़ सकते हैं।

6) उसने उन पुरुषो को छत पर ले जा कर अलसी के डंठलों में छिपा दिया, जिन्हें उसने छत पर रखा था।

7) इस पर उन पुरुषों का पीछा यर्दन के घाट तक किया गया उनका पीछा करने वालो के जाते ही नगर का फाटक बंद कर दिया गया।

8) वे पुरुष अभी सो भी न पाये थे कि राहाब उनके पास छत पर आयी और

9) उन से बोली, "मैं जानती हूँ कि प्रभु ने तुम्हें यह देश दिया है। हम पर तुम लोगो का भय छा गया है और इस देश के सारे निवासी तुम्हारे कारण आतंकित है।

10) हमने यह सुना है कि जब तुम लोग मिस्र से निकल आये थे तो प्रभु ने तुम्हारे लिए लाल समुद्र का जल सुखा दिया था और यह भी कि तुमने यर्दन के उस पार के अमोरियों के दोनों राजाओं, सीहोन और ओग, के साथ क्या किया। तुमने उनका पूर्ण संहार कर डाला।

11) यह सुन कर हमारा कलेजा दहल उठा और तुम्हारे कारण सब का साहस टूट गया क्योंकि प्रभु तुम्हारा ईश्वर ऊपर स्वर्ग और नीचे पृथ्वी सब का ईश्वर है।

12) अब तुम मुझ से प्रभु की शपथ खा कर कहो कि जिस प्रकार मैंने तुम पर कृपा की है उसी प्रकार तुम भी मेरे पिता के परिवार पर कृपा करोंगे। इस से मुझे विश्वास होगा।

13) कि तुम मेरे माता-पिता मेरे भाई-बहनों और उनके सारे संबंधियों को बचाओंगे और मृत्यु से हम लोगों की रक्षा करोगे।"

14) इस पर उन पुरुषों ने उसे उत्तर दिया, "हमारे प्राण तुम्हारे प्राणों की रक्षा के जिम्मेवार होंगे, बषर्ते तुम हमारी बात प्रकट नहीं करो। जब प्रभु ने हमें यह देश दिया होगा, तो हम ईमानदारी से तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।

15) तब उसे उन्हें एक रस्सी के सहारे खिड़की से नीचे उतार दिया क्योंकि उसका घर नगर की चारदीवारी में बना हुआ था।

16) उसने उन से कहा तुम लोग पहाड़ियों में जा छिपो जिससे पीछा करने वाले तुम्हें पकड़ नहीं पायें और जब तक पीछा करने वाले न लौटें तब तक तीन दिन वहीं छिपे रहो इसके बाद तुम आगे बढ़ सकते हो।"

17) उन पुरुषों ने उस से कहा, "तुमने हमें जो शपथ खिलायी उसे हम इसी तरह पूरा करेंगे।

18) जब हम इस देश में प्रवेश करेंगे तब तुम यह लाल रस्सी इस खिड़की पर लटका दोगी जिस से तुम हमें नीचे उतारने जा रही हो फिर तुम अपने माता-पिता अपने भाइयों ओर अपने पिता के परिवार के सब संबंधियों को अपने घर में एकत्रित कर लोगी।

19) यदि कोई तुम्हारे घर के दरवाजों से बाहर निकलेगा तो वह स्वयं अपनी मृत्यु का जिम्मेवार होगा और हम निर्दोष होंगे। हाँ यदि कोई तुम्हारे साथ तुम्हारे घर में रहने वाले किसी व्यक्ति पर हाथ उठायेगा, तो उसकी मृत्यु का उत्तरदायित्व हम पर होगा।

20) किन्तु यदि तुम हमारी यह बात प्रकट करोगी तो हम तुम से की गयी अपनी शपथ से मुक्त हो जायेंगे।"

21) उसने उत्तर दिया, "जैसा तुम लोगों ने कहा है वैसा ही होगा"। इसके बाद उसने उन्हें विदा किया और वे चल पडे़ उसने वह लाल रस्सी खिड़की में बाँध दी।

22) वे वहाँ से चल कर पहाड़ियों में पहुँचे। जब तक पीछा करने वाले वापस नहीं आये वे तीन दिन तक वहीं रूके रहें। पीछा करने वालों ने उन्हें सारे मार्ग के आसपास ढँढा, परन्तु उन्हें नहीं पाया।

23) इसके बाद वे दोनों व्यक्ति पहाड़ियों पर से उतर कर और नदी पार कर नून के पुत्र योशुआ के पास पहुँचे। उन्होंने उसे वहाँ का सारा हाल सुनाया।

24) उन्होनें योशुआ से कहा, "प्रभु सचमुच सारा देश हमारे हाथ दे रहा है उस देश के सब निवासी हम से भयभीत हो कर साहस खो चुके हैं"।



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