📖 - ज़कारिया का ग्रन्थ (Zechariah)

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अध्याय 07

1) राजा दारा के शासनकाल के चैथे वर्ष किसलेव नामक नौवें महीने के चैथे दिन जकर्या को प्रभु-ईश्वर की वाणी प्राप्त हुई।

2) उस दिन बेतेल-निवासियों ने प्रभु-ईश्वर से प्रार्थना करने के लिए सरएसेर और रेगेम-मेलेक तथा उनके साथियों को भेज दिया।

3) उन को विश्वमण्डल को प्रभु के याजकों से तथा नबियों से यह प्रश्न पूछना थाः "क्या अब भी मैं पाँचवें महीने में शोक मनाते हुए उपवास रखूँ, जैसा मैं पिछले कई वर्षों से करता आया हूँ?"

4) तब मुझे विश्वमण्डल के प्रभु की यह वाणी प्राप्त हुई;

5) "देश के सब निवासियों और याजकों से यह कह दोः इन सत्तर वर्षों में तुम जो पाँचवे और सातवें महीने में शोक मनाते हुए उपवास रखते आ रहे थे, क्या मेरे ही आदर में उपवास का व्रत रख रहे थे?

6) और खाने-पीने में तुम लोग अपने ही लिए न खाते-पीते थे?

7) जिस समय येरूसालेम और उसके पडोसी नगर शान्तिपूर्वक आबाद थे और नेगेब तथा निचले प्रदेश आबाद थे, उस समय नबियों के द्वारा प्रभु-ईश्वर से प्राप्त वचन तुम लोग नहीं जानते हो?"

8) ज़कर्या को प्रभु-ईश्वर की यह वाणी प्राप्त हुईः

9) "यह विश्वमण्डल के प्रभु का कथन हैः विधि-विधानों पर न्यायपूर्वक अमल करना और अपने भाइयों के साथ करुणा और दया का व्यवहार करना;

10) विधवा, अनाथ, परदेशी और गरीब को न सताना, न एक दूसरे के प्रति दुर्भावना रखना"

11) किन्तु उन्होंने ध्यान देने से इन्कार किया; उन्होंने ध्यान देने से इन्कार किया; उन्होंने पीठ दिखायी और नहीं सुनने के लिए कानों पर हाथ रख दिये।

12) प्राचीन काल के नबी विश्वमण्डल के प्रभु की प्रेरणा से जो वचन और शिक्षा देते थे, उसे उन्होंने वज्र की तरह अपने हृदय कठोर बना कर नहीं सुनना चाहा। इससे विश्वमण्डल के प्रभु की क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो उठी।

13) अतः ऐसा हुआ कि वह उन को पुकारता रहा, किन्तु उन्होंने उसकी कुछ नहीं सुनी। वैसे ही, विश्वमण्डल के प्रभु ने निश्चय किया कि जब वे मुझे पुकारेंगे भी, तो मैं नही सुनूँगा।

14) उलटे उसने उन्हें अपरिचित राष्ट्रों के बीच तितर-बितर कर दिया; और उनके चले जाने पर उनका देश उजड़ कर सुनसान और निर्जन हो गया। इस प्रकार उन्होंने सुख-समृद्धिपूर्ण देश को उजाड बना दिया।



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