1) तब प्रभु-ईश्वर ने मुझे महायाजक योशुआ को दिखाया। वह प्रभु के दूत के सामने खड़ा था और उसकी दाहिनी ओर उस पर आरोप लगाने के लिए शैतान खडा था।
2) प्रभु के दूत ने शैतान से कहा, "शैतान! प्रभु तुझे घुडके; वह प्रभु, जिसने येरूसालेम को अपनाया है, तुझे घुडके! यह पुरुष तो आग में से निकाली हुई लुआठी। है।"
3) इतने में योशुआ मैले वस्त्र पहने दूत के सामने खड़ा था।
4) आसपास खड़े लोगों से दूत ने कहा, "इसके मैंले वस्त्र उतार लो"। फिर योशुआ से उसने कहा, "देखो, मैंने तुम्हारा दोष हर लिया हैं; मैं अब तुम्हें उत्तम वस्त्र पहना दूँगा"।
5) तब उसने आज्ञा दी, "उसके सिर पर स्वच्छ साफा बाँध दो"। उन्होंने उसे उत्तम वस्त्र पहनाया और उसके सिर पर बढ़िया साफा बाँध दिया।
6) प्रभु का दूत योशुआ के पास आ कर बोला, "विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी सुनो:
7) यदि तुम मेरे मार्ग पर चलोगे और अपना कर्तव्य पूरा करोगे, तो मेरा मन्दिर तुम्हारे अधिकार में रहेगा और मेरे आँगनों की देखरेख तुम्हारे ज़िम्मे होगी। सब लोगों में से तुम्हीं को मन्दिर में बार-बार प्रवेश करने का अधिकार होगा।
8) योशुआ के सामने का पत्थर देख लो; उस पर सात आँखें हैं। विश्वमण्डल के प्रभु का कहना यह है कि मैं इस पत्थर पर लेख खोद दूँगा।
9) "महायाजक योशुआ! सुनो! तुम और तुम्हारे साथी, जो तुम्हारे साथ बैठे हैं, तुम लोग शुभ शकुन हो। अतः मैं अपने सवेक, ’कल्ला’ का प्रवेश कराऊँगा; और मैं एक ही दिन में इस देश का दोष मिटा दूँगा।
10) विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी यह है: उस दिन तुम लोग अपनी दाखबारियों और अंजीर के उद्यानों में एक दूसरे को निमंत्रण दोंगे।"