1) "उस समय स्वर्गदूतों का प्रधान और तुम्हारी प्रजा की रक्षा करने वाला मिखाएल उठ खड़ा होगा। जैसा कि राष्ट्रों की उत्पत्ति से अब तक कभी नहीं हुआ है। किन्तु उस समय तुम्हारी प्रजा बच जायेगी- वे सब, जिनका नाम पुस्तक में लिखा रहेगा।
2) जो लोग पृथ्वी की मिट्टी में सोये हुए थे, वे बड़ी संख्या में जाग जायेंगे, कुछ अनन्त जीवन के लिए और कुछ अनन्त काल तक तिरस्कृत और।कलंकित होने के लिए। धर्मी आकाश की ज्योति की तरह प्रकाशमान होंगे
3) और जिन्होंने बहुतों को धार्मिकता की शिक्षा दी है, वे अनन्त काल तक तारों की तरह चमकते रहेंगे।
4) "किन्तु दानिएल! तुम इन शब्दों को गुप्त रखोगे और अन्तिम समय तक पुस्तक मुहरबन्द रखोगे। बहुत से लोग यहाँ-वहाँ दौड़ धूप करेंगे और अधर्म बढ़ जायेगा।"
5) मैं, दानिएल, ने दृष्टि डाली, तो दो अन्य व्यक्यिों को खडा देखा: एक को नदी के इस ओर दूसरे को नदी के उस ओर।
6) मैंने छालटी के वस्त्र पहने उस व्यक्ति से, जो उजान खड़ा था, पूछा, "इन अद्भुत बातों के पूरा हाने में अब कितनी देर है?"
7) छालटी के वस्त्र पहने व्यक्ति ने, जो उजान खड़ा था, आकाश की ओर अपना दहिना और बायाँ हाथ ऊपर उठाया। मैंने उसे ईश्वर की शपथ खा कर यह कहते सुना, "एक युग, दो युगों और आधे युेग में ही यह हो जायेगा, तथा उस समय तक, जब पवित्र प्रजा की शक्ति बिखर जायेगी, ये सारी बातें पूरी होंगी''।
8) मैंने सुना, पर समझा नहीं। तब मैंने कहा, "मेरे स्वामी! इन बातों का अन्तिम परिणाम क्या होगा?"
9) उसने उत्तर दिया, "दानिएल, अब तुम जाओ, क्योंकि अन्त काल तक ये वाणियाँ गुप्त और मुहरबन्द रहेंगी।
10) बहुत से लोग परीक्षा में खरे उतरेंगे, किन्तु कुकर्मी कुकर्म करते रहेंगे; एक भी कुकर्मीं नहीं समझ पायेगा। प्रज्ञावान् ही समझ सकेंगे।
11) दैनिक होम-बलियों के बंद होने और उजाड़ कर देने वाली वीभत्स मूर्तियों की स्थापना के समय से एक हज़ार दो सौ नब्बे दिन लगेंगे।
12) धन्य है वह, जो एक हज़ार तीन सौ पैतालीस दिन पूरा होने तक प्रतीक्षा करेगा!
13) किन्तु तुम अन्त तक अपने मार्ग पर चलते रहो; तभी तुम विश्राम करोगे; युगान्त में तुम अपना निर्धारित स्थान प्राप्त करने के लिए उठ खडे होगे।"