📖 - दानिएल का ग्रन्थ (Daniel)

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अध्याय 10

1 फ़ारस के राजा सीरूस के तीसरे वर्ष दानिएल को, जो बेल्टशस्सर कहलाता था, एक वाणी प्राप्त हुई। यह एक बहुत बड़े संघर्ष की सच्ची वाणी थी। उसे एक दिव्य दृश्य के द्वारा वाणी का अर्थ समझ में आ गया।

2) उन दिनों में, दानिएल, तीन सप्ताह का व्रत रख रहा था।

3) इन तीन सप्ताहों में मैंने सात्त्विक भोजन किया, मांस और अंगूरी से परहेज़ रखा और बदन पर तेल नहीं लगाया।

4) पहले महीने के चैबीसवें दिन महानदी दज़ला के तट पर

5) मैंने आँखें उठा कर यह देखाः एक पु़रुष खड़ा था; वह छालटी का वस्त्र और कमर में ऊपाज़ के सोने की मेखला पहने था;

6) उसका शरीर स्वर्णमणि की तरह था; उसके चेहरे पर बिजली का तेज था; उसकी आँखें जलती मशालें-जैसी थी; उसकी भुजाएँ और उसके पैर काँसे की चमक-जैसे थे; उसका स्वर भीड़ के कोलाहल की तरह था।

7) मैं, दानिएल, ने अकेले ही यह दृश्य देखा। मेरे साथियों ने यह दिव्य दृश्य नहीं देखा, किन्तु वे भय के मारे काँपने लगे और भाग कर छिप गये।

8) मैं अकेला ही यह दृश्य देखता रह गया; मेरी शक्ति क्षीण हो गयी और भय से मेरे चेहरे का रंग उड़ गया; मैं लाचार हो गया।

9) जब मैंने उसके शब्दों की गूँज सुनी तो मैं अचेत हो कर भूमि पर गिर पड़ा।

10) अचानक एक हाथ ने मुझे उठाया, पर मैं कँपकँपी के कारण घुटनों के बल पड़ा रहा।

11) उसने मुझ से कहा, “दानिएल! तुम ईश्वर को बहुत प्रिय हो; मेरे शब्दों पर ध्यान दो और खड़े हो जाओ, क्योंकि मैं अभी तुम्हारे पास भेजा गया हूँ“। जब वह यह बोला, तो मैं काँपते-काँपते खड़ा हो गया।

12) उसने फिर मुझ से कहा, “दानिएल! डरो मत, क्योंकि जब से तुम ईश्वर पर ध्यान दे कर विनम्रतापूर्वक समझने का प्रयत्न करने लगे, तब से तुम्हारी प्रार्थनाएँ सुनी गयीं और उत्तर के रूप में मैं आ गया हूँ।

13 फ़ारस राज्य का प्रधान स्वर्गदूत इक्कीस दिन तक मुझे रोके रहा, किन्तु स्वर्गदूतों का मीकाएल नामक प्रधान मेरी सहायता के लिए आया।

14) इसलिए उसे वहाँ फ़ारस राज्य के प्रधान के यहाँ छोड़ कर मैं तुम्हें यह अताने आया हूँ कि तुम्हारी जाति का इस अन्तिम समय में क्या होगा। यह दिव्य दृश्य तो भविय के विषय में है।“

15) जब यह मुझ से बोल रहा था, तो मैं सिर झुका कर चुपचाप खड़ा था।

16) अचानक किसी मनुष्य-जैसे ने मेरे होंठों का स्पर्श किया। तब मेरी जीभ खुल गयी और मैं इस प्रकार बोलने लगा। जो मेरे सामने खड़ा था, उस से मैंने कहा, “मेरे स्वामी! इस दिव्य दृश्य ने मुझे दुःख दिया है और मेरी शक्ति जाती रही है।

17) अपने स्वामी से यह दास कैसे बोले? मुझ में कुछ शक्ति नहीं है और मेरे प्राण निकलने ही वाले हैं।“

18) उसने, जो मनुष्य-जैसा दिखता था, मुझे फिर छुआ और बल प्रदान किया।

19) तब उसने कहा, “ईश्वर के परमप्रिय, मत डरो, तुम्हें शान्ति मिले; दृढ़ हो कर धीरज धरो“। और उसके बोलने से मुझ में शक्ति का संचार हुआ और मैं बोला, “स्वामी! अब बोलिए, आपने मुझे शक्ति दे दी है“।

20) फिर उसने कहा, “क्या तुम जानते हो कि मैं किस लिए तुम्हारे पास आया हूँ? अब फ़ारस के प्रधान दूत से लडने के लिए मुझे लौट जाना है। जब मैं उस से निपट चुकूँगा, तब यूनान का प्रधान देवदूत आयेगा;

21) किन्तु अब मैं उन बातों को बता दूँगा, जो ‘सत्य ग्रन्थ’ में लिखी हुई है। इस संघर्ष में तुम्हारे प्रधान, मीकाएल के अतिरिक्त कोई दूसरा सहायक नहीं है।



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