📖 - राजाओं का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 18

1) बहुत समय के बाद, सूखे के तीसरे वर्ष एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सनाई पड़ी, "अहाब से मिलने जाओ। मैं पृथ्वी पर फिर वर्षा करूँगा।"

2) एलियाह अहाब के यहाँ गया। समारिया में भयंकर अकाल था।

3) इसलिए अहाब ने अपने महल के प्रबन्धक ओबद्या को बुलाया। (वह प्रभु का सच्चा भक्त था।

4) जिस समय ईजे़बेल ने प्रभु के नबियों को मार डालना चाहा था, ओबद्या ने एक सौ नबियों को ले जा कर उन्हें पचास-पचास की संख्या में दो गुफाओं मेुं छिपाया था और उनके खान-पीने का प्रबन्ध किया था।)

5) अहाब ने ओबद्या को आज्ञा दी, "देश भर में भ्रमण करते हुए समस्त घाटियों में सब जलस्रोतों का पता लगाओ। हो सकता है कि हमें घोड़ों और खच्चरों को जीवित रखने के लिए कुछ घास मिल जाये और हमें अपनी पशुओं में किसी का वध नहीं करना पड़े।"

6) उन्होंने देश भर का भ्रमण करने के लिए उसे दो भागों में बाँट लिया। अहाब एक दिशा में चल दिया और ओबद्या दूसरी दिशा में।

7) ओबद्या जब दौरा कर रहा था, तो एकाएक उसकी भेंट एलियाह से हुई। ओबद्या ने उसे पहचान लिया और दण्डवत् प्रणाम कर उस से पूछा,

8) "मेरे स्वामी! आप एलियाह ही तो हैं?" उसने कहा, "हाँ, मैं वही हूँ। तुम जाओ और अपने स्वामी से कहो कि एलियाह यहीं है।"

9) तब उसने पूछा, मैंने आपका क्या बिगाड़ा है, जो आप अपने दास को अहाब के हाथ सौप दे रहे हैं, जिससे वह मुझे मार डाले?

10) प्रभु आपके ईश्वर की शपथ! ऐसी कोई जाति और राष्ट्र नहीं है, जहाँ मेरे स्वामी ने आपकी खोज नहीं करायी हो और जब-जब आ कर उस से कहा गया कि वह हमारे यहाँ नहीं है, तो उसे विश्वास नहीं हुआ और उसने उस राष्ट्र और जाति के लोगों से यह शपथ खिलवायी कि उन्होंने उसे नहीं देखा है।

11) अब आप आदेश देते हैं कि जाओ और अपने स्वामी से कहो कि एलियाह यहीं है।

12) मैं नही जानता कि मेरे जाने के बाद प्रभु का आत्मा आप को कहाँ ले जायेगा। यदि मैं जा कर अहाब से कहता कि आप यहीं हैं और वह (आ कर) आप को नहीं पाता, तो वह मेरा वध करता। मैं, आपका दास, युवावस्था से ही प्रभु की उपासना करता रहा हूँ।

13) क्या मेरे स्वामी को यह नहीं बताया गया है कि जब ईजे़बेल प्रभु के नबियों का बध करने जा रही थी, तो मैंने क्या किया? उस समय मैंने एक सौ नबियों को ले जा कर उन्हें पचास-पचास की संख्या में दो गुफाओं में छिपाया था और उनके खाने-पीने का प्रबन्ध किया था।

14) अब आप यह आदेश दे रहे हैं कि तुम जाओ और अपने स्वामी से कहो कि एलियाह यहीं है। वह तो मेरा वध करेगा।"

15) लेकिन एलियाह ने कहा, "विश्वमण्डल के उस प्रभु की शपथ, जिसका मैं सेवक हूँ! आज मैं अपने को उसके सामने प्रस्तुत कर दूँगा"।

16) ओबद्या अहाब से मिलने गया और उस को इस बात की सूचना दी और अहाब एलियाह से मिलने आया।

17) एलियाह को देखते ही अहाब ने उस से कहा, "क्या तुम वही हो, जो इस्राएल को विपत्ति का शिकार बनाते हो?"

18) उसने उत्तर दिया, " इस्राएल को विपत्ति का शिकार बनाने वाला मैं नहीं, बल्कि आप और आपके कुटुम्ब हैं; क्योंकि आप प्रभु की आज्ञाओं को भंग कर बालदेवों के अनुगामी बन गये हैं।

19) अब सब इस्राएलियों को बुलवा कर उन्हें करमेल पर्वत पर मेरे सामने एकत्रित कीजिए और बाल-देवों के उन साढ़े चार सौ पुजारियों और चार सौ अशेरा के पुजारियों को भी, जिनके खाने-पीने का प्रबन्ध ईजे़बेल कर रही है।"

20) अहाब ने सब इस्राएलियों को बुला भेजा और नबियों को करमेल पर्वत पर एकत्र किया।

21) तब एलियाह ने जनता के सामने आ कर कहा, "तुम लोग कब तक आगा-पीछा करते रहोगे? यदि प्रभु ही ईश्वर है, तो उसी के अनुयायी बनो और यदि बाल ईश्वर है, तो उसी के अनुयायी बनो।" किन्तु लोगों ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।

22) तब एलियाह ने जनता से कहा, "मैं प्रभु का अकेला नबी रह गया हूँ। बाल के नबियों की संख्या साढ़े चार सौ है।

23) हमें दो साँड़ दो। वे उन दोनों में से एक को अपने लिए चुन लें, उसके टुकड़े-टुकड़े करें और लकड़ी पर रख दें, किन्तु वे उस में आग नहीं लगायें। मैं दूसरा साँड़ तैयार कर उसे लकड़ी पर रखूँगा और उस में आग नहीं लगाऊँगा।

24) तुम अपने देवता का नाम ले कर प्रार्थना करो और मैं अपने प्रभु का नाम ले कर प्रार्थना करूँगा- जो देवता आग भेज कर उत्तर देगा, वही ईश्वर है।" सारी जनता ने यह कहते हुए उत्तर दिया, "हमें स्वीकार है"।

25) तब एलियाह ने बाल के नबियों से कहा, "तुम्हारी संख्या अधिक है, इसलिए तुम अपने लिए एक साँड़ चुन लो और उसे तैयार करो। अपने देवता का नाम ले कर प्रार्थना करो, किन्तु आग नहीं लगाओ।"

26) उन्होंने अपने को दिया हुआ साँड़ ले कर तैयार दिया। तब वे सुबह से दोपहर तक यह कहते हुए बाल से प्राथना करते रहे, "बाल! हमारी सून।" किन्तु कोई वाणी नहीं सुनाई पड़ी, कोई उत्तर नहीं मिला, यद्यपि वे अपनी बनायी हुई वेदी के चारों ओर घुटने झुकाते हुए नाचते रहे। दोपहर के लगभग एलियाह यह कहते हुए

27) उनका उपहास करने लगा, "तुम लोग और जोर से पुकारो। वह तो देवता है न? वह किसी सोच-विचार में पड़ा हुआ होगा या किसी काम में लगा हुआ होगा या यात्रा पर होगा। हो कसता है- वह सोया हुआ हो, तो उसे जगाना पड़े।"

28) वे और जोर से पुकारने और अपने रिवाज के अनुसार अपने को तलवारों और भालों से काट मारने लगे, यहाँ तक कि वे रक्त से लथपथ हो गये।

29) वे दोपहर के बाद भी सान्ध्योपासना के समय तक ऐसा करते रहे, किन्तु न तो कोई वाणी सुनाई पड़ी और न कोई उत्तर मिला। उनकी प्रार्थना पर ध्यान ही नहीं दिया गया।

30) तब एलियाह ने जनता से कहा, "मेरे पास आओ"। अब लोग उसके पास आये और एलियाह ने प्रभु की वेदी फिर बनायी, जो गिरा दी गयी थी।

31) प्रभु ने याकूब से कहा था कि तुम्हारा नाम इस्राएल होगा। उसी याकूब के पुत्रों के वंशों की संख्या के अनुसार एलियाह ने बारह पत्थर लिये और उन से प्रभु के लिए एक वेदी बनायी।

32) उसने उसके चारों ओर एक नाला खोदा, जिस में अनाज के दो पैमाने समा सकते थे।

33) तब उसने लकड़ियाँ वेदी पर सजायीं, साँड़ के टूकड़े-टुकड़े कर दिये और उसे लकड़ी पर रखा।

34) तब उसने कहा, "चार घड़े पानी से भर कर होम-बलि और लकड़ी पर उँढ़ेल दो"। उसके बाद उसने कहा, "एक बार और यही करो"। जब उन्होंने ऐसा किया, तो उसने कहा, "तीसरी बार यही करो"।

35) जब उन्होंने तीसरी बार ऐसा किया, तो पानी वेदी पर से चारों ओर बहने लगा और नाला पानी से भर गया।

36) सान्ध्योपासना के समय नबी एलियाह ने आगे बढ़ कर कहा, "इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के ईश्वर! आज यह दिखाने की कृपा कर कि तू इस्राएल का ईश्वर है और यह कि मैं - तेरे सेवक- ने यह सब तेरे आदेश के अनुसार किया है।

37) मेरी सुन! प्रभु! मेरी सुन! जिससे यह प्रजा स्वीकार करे कि तू, प्रभु सच्चा ईश्वर है। इस प्रकार तू इसका हृदय फिर अपनी ओर उन्मुख कर देगा।"

38) इस पर प्रभु की आग बरस पड़ी। उसने होम-बलि, लकड़ी, पत्थर और मिट्टी- सब कुछ भस्म कर दिया और नाले का पानी भी सुखा दिया।

39) लोग यह देख मुँह के बल गिर पड़े और बोल उठे, "प्रभु ही ईश्वर है! प्रभु ही ईश्वर है!"

40) एलियाह ने उन से कहा, "बाल के पुजारियों को पकड़ो, उन में से एक भी न भागने पाये"। वे पकड़ लिये गये। एलियाह के कहने पर लोग उन्हें कीशोन नाले तक घसीट कर ले गये और उन्होंने वहाँ उनका वध किया।

41) एलियाह ने अहाब से कहा, "आप खाने-पीने जाइए, क्योंकि भारी वर्षा की आवाज़ आ रही है"।

42) अहाब खाने पीने गया और एलियाह करमेल पर्वत की चोटी पर चढ़ा। वहाँ वह भूमि पर झुक गया और घुटनों के बीच सिर गड़ाये बैठा रहा।

43) उसने अपने नौकर से कहा, "जा कर समुद्र की ओर देखो"। उसने जा कर देखा और कहा, "कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा है"। एलियाह ने उसे सात बार देखने भेजा।

44) सातवीं बार नौकर ने कहा, "मनुष्य की हथेली के बराबर एक छोटा-सा बादल समुद्र पर से उठ रहा है"। एलियाह ने कहा, "अहाब के पास जा कर कहो कि वह रथ तैयार कर चला जाये, नहीं तो वर्षा उसे रोक रखेगी"।

45) इस बीच आकाश बादलों से काला हो गया, आँधी चलने लगी और भारी वर्षा हुई। अहाब रथ पर चढ़ कर यिज्ऱएल चला गया।

46) प्रभु की प्रेरणा से एलियाह कमर कस कर यिज्ऱएल तक अहाब के आगे-आगे दौड़ता रहा।



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