1) सुलेमान फ़रात नदी से ले कर फ़िलिस्तियों के देश और मिस्र की सीमा तक सब राज्यों पर शासन करता था। वे कर देते थे और सुलेमान के जीवन भर उसके अधीन रहे।
2) सुलेमान की एक दिन की खाद्य-सामग्री इस प्रकार थीः चार सौ मन मैदा, आठ सौ मन आटा,
3) दस मोटे बैल, चरागाहों में चरने वाले बीस पशु और सौ भेड़-बकरियों के सिवा हरिण, चिकारे, साँभर और मोटे हंस।
4) वह तिफ़सह से ले कर गाज़ा तक, फ़रात नदी के पश्चिम के सब देशों पर शासन करता था और चारों ओर के राज्यों के साथ शान्ति बनाये रखता था।
5) सुलेमान के जीवनकाल मे दान से बएर-शेबा तक समस्त यूदा और इस्राएल में सब लोग अपनी-अपनी दाखलता और अपने-अपने अंजीर के पेड़ के नीचे सुरक्षित जीवन जीते थे।
6) सुलेमान के पास रथों के घोड़ों के लिए चालीस हज़ार अस्तबल थे और बारह हज़ार घुड़सवार।
7) प्रादेशिक शासक अपने-अपने महीने में राजा सुलेमान और जो राजा के साथ भोजन करते थे, उन सब के लिए भोजन का प्रबन्ध किया करते थे। किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी।
8) वे सामान्य घोड़ों और रथ के घोड़ों के लिए जौ और चारा उस स्थान पर लाया करते थे, जो प्रत्येक के लिए नियत था।
9) ईश्वर ने सुलेमान को प्रचुर मात्रा में प्रज्ञा और विवेक प्रदान किया तथा एक ऐसा हृदय जो समुद्रतट के बालू के सदृश विशाल था।
10) सुलेमान की प्रज्ञा सब पूर्वीय लोगों और मिस्र की समस्त प्रजा से भी श्रेष्ठ थी।
11) वह अन्य सब मनुष्यों से अधिक बुद्धिमान् था- एज्ऱाही एतान और माहोल के पुत्र हेमान, कलकोल और दरदा से भी अधिक बुद्धिमान। उसका नाम आसपास के सब राष्ट्रों में प्रसिद्ध था।
12) उसके द्वारा कही गयी सूक्तियों की संख्या तीन हज़ार थी और उसके गीतों की, एक हज़ार पाँच।
13) उसे लेबानोन में पाये जाने वाले देवदार से ले कर दीवारों पर उगने वाले जूफ़ा तक का ज्ञन था। उसे पशुओं, पक्षियों, कीड़ों और मछलियों तक का ज्ञान था।
14) सब राष्ट्रों से तथा पृथ्वी भर के राजाओं की ओर से, जिन्होंने सुलेमान की बुद्धि की चरचा सुनी थी, लोग उसकी प्रज्ञा सुनने आया करते थे।
15) जब तीरूस के राजा हीराम ने सुना कि सुलेमान का अपने पिता की जगह राजा के रूप में अभिषेक किया गया है, तो उसने अपने सेवकों को उसके पास भेजा; क्योंकि हीराम सदा दाऊद का मित्र रहा था।
16) सुलेमान ने हीराम के पास यह सन्देश भेजा:
17) "आप जानते हैं कि मेरे पिता दाऊद चारों ओर से आक्रमण करने वाले शत्रुओं से घिरे रहने के कारण अपने प्र्रभु ईश्वर के नाम पर तब तक कोई मन्दिर न बनवा सके थे, जब तक प्रभु ने उन्हें उनके अधीन न कर दिया था।
18) लेकिन अब प्रभु, मेरे ईश्वर ने मुझे सब ओर से शान्ति प्रदान की है- न कोई विरोधी है और यन किसी विपत्ति की आशंका।
19) जैसा कि प्रभु ने ने मेरे पिता दाऊद से कहा था कि तुम्हारा पुत्र, जिसे मैं तुम्हारे स्थान पर तुम्हारे सिंहासन पर बिठाऊँगा, मेरे नाम पर मन्दिर बनवायेगा; इसलिए मैं प्रभु, अपने ईश्वर के नाम पर एक मन्दिर बनवाना चाहता हूँ।
20) आप मेरे लिए लेबानोन में देवदार कटवाने का आदेश दें। मेरे सेवक आपके सेवकों के साथ-साथ काम करेंगे और मैं आपके सेवकों के लिए आपके द्वारा निश्चित वेतन आप को दे दूँगा। आप जानते हैं कि हमारे पास ऐसा कोई नहीं है, जो सीदोनियों की तरह लकड़ी काट सकता हो।"
21) जब हीराम ने सुलेमान का यह सन्देश सुना, तो उसे बहुत प्रसन्नता हुई और उसने कहा, "आज प्रभु धन्य है, जिसने दाऊद को इस महान् राज्य पर शासन करने के लिए ऐसा बुद्धिमान पुत्र दिया है"।
22) इसके बाद हीराम ने सुलेमान को कहलवाया, "मुझे आपका भेजा हुआ सन्देश मिला और मैं आपकी इच्छा के अनुसार देवदार और सनोवर वृक्ष दे दूँगा।
23) मेरे सेवक उन्हें लेबानोन से समुद्र तक पहुँचा देंगे और मैं बेड़े बनवा कर समुद्री मार्ग से उस स्थान तक पहुँचवा दूँगा, जो आप निश्चित करेंगे और वहाँ उन्हें उतरवा दूँगा। आप वहाँ से उन्हें ले जायेंगे। मैं चाहता हूँ कि आप, अपनी ओर से मेरे घराने के लिए रसद भिजवायें।"
24) इसलिए हीराम ने सुलेमान को उसकी आवश्यकता के अनुसार देवदार और सनोवर वृक्ष पहुँचवाये
25) और सुलेमान ने हीराम को उसके घराने के रसद के लिए पौने तीन लाख मन गेहूँ और पौने तीन सौ मन कुटे हुए जैतून का तेल दिया। सुलेमान हीराम को प्रति वर्ष यही दिया करता था।
26) प्रभु ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सुलेमान को बुद्धि दी थी। हीराम और सुलेमान में सद्भाव बना रहा और उन्होंने आपस में सन्धि कर ली।
27) राजा सुलेमान ने समस्त इस्राएल से तीस हज़ार लोगों को बेगार में लगाया।
28) उन में दस हज़ार को वह प्रति मास लेबानोन भेज दिया करता था। वे महीने भर लेबानोन मे काम करते, तो दो महीने घर रहते। अदोनीराम बेगार की देखरेख करता था।
29) इसके अतिरिक्त सुलेमान ने सत्तर हज़ार बोझा ढोने वालों और पहाड़ी प्रदेश में अस्सी हज़ार संगतराशों को काम पर लगाया था।
30) और सुलेमान के पास तीन हज़ार तीन सौ निरीक्षक थे, जो इन काम करने वाले मज़दूरों की देखरेख करते थे।
31) राजा की आज्ञा थी कि मन्दिर की नींव सुन्दर गढ़े हुए पत्थरों से बनायी जाये और बड़े-बड़े तथा बहुमूल्य पत्थर खोद निकाले जायें।
32) सुलेमान और हीराम के मिस्री तथा गबल के मज़दूर मन्दिर-निर्माण के लिए लकड़ी और पत्थर गढ़ते थे।