📖 - राजाओं का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 17

1) गिलआद के तिशबे-निवासी एलियाह ने अहाब से कहा, "इस्राएल के उस जीवन्त प्रभु-ईश्वर की शपथ, जिसका मैं सेवक हूँ! जब तक मैं नहीं कहूँगा, तब तक अगले वर्षों में न तो ओस गिरेगी और न पानी बरसेगा।"

2) इसके बाद एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई दी,

3) "यहाँ से पूर्व की ओर जाओ और यर्दन नदी के पूर्व करीत घाटी में छिपे रहो।

4) तुम नदी का पानी पिओगे। मैंने कौवों को आदेश दिया कि वे वहाँ तुम्हें भोजन दिया करें।"

5) प्रभु ने जैसा कहा, एलियाह ने वैसा ही किया। वह जा कर यर्दन के पूर्व करीत की घाटी में रहने लगा।

6) कौवे सुबह शाम उसे रोटी और मांस ला कर देते थे और वह नदी का पानी पीता था।

7) नदी में पानी सूख गया, क्योंकि पृथ्वी पर पानी नहीं बरसा था।

8) तब एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

9) "उठो। सीदोन के सरेप्ता जाओ और वहाँ रहो। मैंने वहाँ की एक विधवा को आदेश दिया कि वह तुम्हें भोजन दिया करे।"

10) एलियाह उठ कर सरेप्ता गया। शहर के फाटक पर पहुँच कर उसने वहाँ लकड़ी बटोरती हुई एक विधवा को देखा और उसे बुला कर कहा, "मुझे पीने के लिए घड़े में थोड़ा-सा पानी ला दो"।

11) वह पानी लाने जा ही रही थी कि उसने उसे पुकार कर कहा, "मुझे थोड़ी-सी रोटी भी ला दो"।

12) उसने उत्तर दिया, "आपका ईश्वर, जीवन्त प्रभु इस बात का साक्षी है कि मेरे पास रोटी नहीं रह गयी है। मेरे पास बरतन में केवल मुट्ठी भर आटा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल है। मैं दो-एक लकड़ियाँ बटोरने आयी हूँ। अब घर जा कर उसे अपने लिए और अपने बेटे के लिए पकाती हूँ। हम उसे खायेंगे और इसके बाद हम मर जायेंगे।

13) एलियाह ने उस से कहा, "मत डरो। जैसा तुमने कहा, वैसा ही करो। किन्तु पहले मेरे लिये एक छोटी-सी रोटी पका कर ले आओ। इसके बाद अपने लिए और अपने बेटे के लिए तैयार करना;

14) क्योंकि इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः जिस दिन तक प्रभु पृथ्वी पर पानी न बरसाये, उस दिन तक न तो बरतन में आटा समाप्त होगा और न तेल की कुप्पी खाली होगी ।"

15) एलियाह ने जैसा कहा था, स्त्री ने वैसा ही किया और बहुत दिनों तक उस स्त्री, उसके पुत्र और एलियाह को खाना मिलता रहा।

16) जैसा कि प्रभु ने एलियाह के मुख से कहा था, न तो बरतन में आटा समाप्त हुआ और न तेल की कुप्पी ख़ाली हुई।

17) बाद में गृहस्वामिनी का पुत्र बीमार पड़ा और उसकी हालत इतनी ख़राब हो गयी कि उसके प्राण निकल गये।

18) स्त्री ने एलियाह से कहा, "ईश्वर-भक्त! मुझ से आपका क्या? क्या आप मेरे पापों की याद दिलाने और मेरे पुत्र को मारने मेरे यहाँ आये?"

19) उसने उत्तर दिया, "अपना पुत्र मुझ को दो"। एलियाह ने उसे उसकी गोद से ले लिया और ऊपर अपने रहने के कमरे में ले जा कर अपने पलंग पर लिटा दिया।

20) तब उसने यह कह कर प्रभु से प्रार्थना की, “प्रभु! मेरे ईश्वर! जो विधवा मुझे अपने यहाँ ठहराती है, क्या तू उसके पुत्र को संसार से उठा कर उसे विपत्ति में डालना चाहता है?“

21) तब वह तीन बार बालक पर लेट गया और उसने यह कह कर प्रभु से प्रार्थना की, “प्रभु! मेरे ईश्वर! ऐसा कर कि इस बालक के प्राण इस में लौट आयें“।

22) प्रभु ने एलियाह की प्रार्थना सुनी, उस बालक के प्राण उसमें लौटे और वह जीवित हो उठा।

23) एलियाह उसे उठा कर ऊपर वाले कमरे से नीचे, घर में ले गया और उसे उसकी माता को लौटाते हुए उसने कहा, "देखो, तुम्हारा पुत्र जीवित है"।

24) स्त्री ने उत्तर दिया, "अब मैं जान गयी हूँ कि आप ईश्वर-भक्त हैं और प्रभु की जो वाणी आपके मुख में है, वह सच्चाई है"।



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