📖 - न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ

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अध्याय 20

1) दान से बएर-षेबा तक के और गिलआद प्रान्त के सब इस्राएली एकमत हो कर मिस्पा में प्रभु के सामने एकत्रित हुए और उन्होंने वहाँ एक सभा की।

2) समस्त राष्ट्र के नेता और इस्राएल के सभी वंश ईश्वर की प्रजा की इस सभा में सम्मिलित हुए। कुल चार लाख सशस्त्र पैदल सैनिक थे।

3 (बेनयामीनवंशियों को मालूम हुआ कि इस्राएली मिस्पा गये हैं।) इस्राएलियों ने पूछा, "हमें बताओ, वह कुकर्म कैसे हुआ"।

4) इस पर उस लेवीवंशी, वध की हुई उस स्त्री के पति ने उत्तर देते हुए कहा, "मैं अपनी उपपत्नी के साथ रात बिताने के लिए बेनयामीन के गिबआ में गया।

5) तब गिबआ के निवासी मेरे विरुद्ध एकत्रत हुए और उन्होंने उस घर को घेर लिया, जहाँ मैं था। वे मुझे मार डालने पर उतारू थे और उन्होंने मेरी उपपत्नी के साथ इस प्रकार बलात्कार किया कि वह मर गई।

6) इस पर मैंने अपनी उपपत्नी के टुकडे़-टुकड़े कर दिये और उन्हें देश भर में, जहाँ-जहाँ इस्राएलियों के दायभाग हैं, भेज दिया; क्योंकि उन्होंने इस्राएल में एक घृणित कुकर्म किया था।

7) अब, सब इस्राएलियों! तुम विचार करों कि क्या करना चाहिए।"

8) तब सब लोग एकमत होकर उठे और बोले, "हम में कोई न तो अपने तम्बू में जाये और न अपने घर लौटे।

9) गिबआ के साथ हम यह करेंगे। हम चिट्ठी डाल कर निश्चित कर लेंगे कि हम में से कौन उस पर आक्रमण करेगा

10) हम इस्राएल के सब वंशो में से प्रति सौ मनुष्यों में से दस, प्रति हज़ार में सौ और प्रति दस हज़ार में एक हज़ार चुन लेंगे, जिससे वे सेना कि रसद का प्रबन्ध करें। उनके लौट आने पर हम बेनयामीन के गिबआ से उस कुकर्म का बदला चुकायेंगे, जो उन्होंने इस्राएल में कि

11) इस प्रकार सारा इस्राएल एक मत होकर उस नगर के विरुद्ध एकत्रित हुआ।

12) इसके बाद इस्राएली वंशों ने दूतों को भेजकर बेनयामीन के सारे वंश को कहला भेजा, "तुम लोगों के बीच यह कैसा कुकर्म हुआ है?

13) अब उन आदमियों को, गिबआ के उन नीच आदमियों को हमारे हवाले करो। हम उन्हें मार डालेंगे और इस प्रकार हम इस्राएल से यह बुराई दूर कर देंगे।" परन्तु बेनयामीनवंशियों ने अपने भाई बन्धु इस्राएलियों की बात नहीं मानी।

14) बेनयामीनवंशी इस्राएलियों से युद्ध करने के लिए नगर- नगर से गिबआ में एकत्रित हुए।

15) उस समय दूसरे नगरों से आये हुए युद्ध करने योग्य बेनयामीनवंशियों की गणना हुई। उनकी संख्या छब्बीस हज़ार थी। उनके सिवा के गिबआ के निवासियों में सात सौ चुने हुए युद्धा थे।

16) उन सब युद्धओं में सात सौ खब्बे थे। वे गोफन से पत्थर फेंकने में इतने निपुण थे कि बाल को भी निशाना बनाने से नहीं चुकते थे।

17) इस्राएलियों की गणना की गयी, तो बेनयामीनवंशियों को छोड़ कर सशस्त्र योद्धाओं की संख्या चार लाख थी।

18) इस्राएली लोग ईश्वर से यह पूछने के लिए बेतेल गये कि, "हम में से कौन सब से पहले बेनयामीनवंशियों पर आक्रमण करे?" प्रभु ने उत्तर दिया, "पहले यूदा जायेगा"।

19) सबेरे होते ही इस्राएली लोगोंं ने चल कर गिबआ के पास पड़ाव डाला।

20) इस्राएली बेनयामीनवंशियों से लड़ने के लिए निकल पडे़ और उन्होंने गिबआ के सामने एक व्यूह-रचना की।

21) बेनयामीनवंशियों ने गिबआ से निकल कर उस दिन इस्रालियों के बाईस हजार योद्धाओं को धराशाही कर दिया।

22) लेकिन इस्राएलियों ने साहस नहीं छोड़ा। उन्होंने पहले दिन जैसी व्यूह-रचना की थी, वैसी ही उसी स्थान पर फिर से व्यूह-रचना की।

23) इस्राएली प्रभु के सामने जाकर शाम तक विलाप करते रहे। उन्होंने प्रभु से पूछा, "क्या हम फिर बेनयामीनवंशियों, अपने भाई-बंधुओं से लड़ने जायें?" प्रभु ने कहाँ, "हाँ, उनके विरुध्द लड़ने जाओ"।

24) इसलिए इस्राएलियों ने दूसरे दिन फिर बेनयामीनवंशियों पर चढ़ाई की।

25) उस दूसरे दिन भी बेनयामीनवंशियों ने गिबआ से निकल कर इस्राएलियों के अठारह हज़ार सशस्त्र योद्धाओं को धराशाही कर दिया।

26) इसके बाद इस्राएल भर के सारे लोग, सारी सेना बेतेल जा कर विलाप करने लगी। वहाँ वे प्रभु के सामने बैठे रहे और उस दिन साँझ तक उन्होंने उपवास रखा। उन्होंने प्रभु के सामने होम- और शान्ति बलियाँ चढ़ायीं।

27) इस्राएली प्रभु से परामर्श लेना चाहते थे। उन दिनों प्रभु के विधान की मंजूषा वहीं थी

28) और हारून का पौत्र, एलआज़ार का पुत्र पीनहास उसका सेवा-कार्य करता था।’ उन्होंने पूछा, "हम फिर बेनयामीनवंशियों, अपने भाई-बन्धुओं से लड़ने जायें या नहीं?" प्रभु ने कहा, "जाओं, कल मैं उन्हें तुम्हारे हाथ दे दूँगा"।

29) तब इस्राएलियों ने गिबआ के चारों ओर लोगों को घात में बैठा दिया।

30) तीसरे दिन इस्राएलियों ने बेनयामीनवंशियों के विरुध्द निकल कर गिबआ के सामने व्यूह-रचना की, जैसी उन्होंने पहले की थी।

31) बेनयामीनवंशी भी उन लोगों के विरुध्द लड़ने निकल पड़े, परन्तु ये उन्हें नगर से दूर खींचते गये। जैसे उन्होंने पहले किया था, वैसे ही अब भी बेतेल जाने वाले और गिबआ जाने वाले रास्तों पर और खुले मैदानों में इस्राएलियों के लगभग तीस पुरुषों को मार डाला।

32) बेनयामीनवंशियों ने सोचा कि पहले की ही तरह वे हम से पराजित हो गये हैं। इस्राएलियों ने कहा था कि हम उनके सामने से भाग कर उन्हें नगर के रास्तों की ओर खींच ले चलें।

33) इसलिए सब इस्राएली अपने स्थान से चल कर बाल-तामार के पास युद्व-व्यूह रचने लगे। इतने में गेबा के पश्चिम की ओर से अपने-अपने स्थानों पर घात में बैठे हुए इस्राएली निकल पड़े।

34) इस्राएल भर के इन चुने हुए दस हज़ार योद्धाओं ने गिबआ पर चढ़ाई कर दी। घमासान यु़द्ध हुआ। बेनयामीनवंशी समझ नहीं पाये कि उन पर घोर आपत्ति आने वाली है।

35) प्रभु ने इस्राएल के द्वारा बेनयामीनवंशियों को पराजित कर दिया। उस दिन इस्राएलियों ने बेनयामीन के पच्चीस हज़ार एक सौ सशस्त्र पुरुषों को मार डाला।

36) तब बेनयामीनवंशियों ने अनुभव किया कि वे पराजित हो गये हैं। इस्राएली बेनयामीन से पीछे हट गये, क्योंकि गिबआ के विरुद्ध घात में बैठे हुए लोगों पर उन्हें विश्वास था।

37) घात में बैठे हुए लोगों ने निकल कर सारे नगर को तलवार के घाट उतार दिया।

38) इस्राएलियों और घात में बैठे योद्धाओं के बीच यह संकेत निश्चित हुआ था कि वे जैसे ही नगर में धूएँ का बादल उड़ायें,

39) इस्राएली मुड़ कर आक्रमण कर बैठें। बेनयामीनवंशी इस्राएलियों के लगभग तीस लोगों को मार कर सोचने लगे थे कि जैसा पहले युद्ध में होता रहा है, निस्सन्देह वैसा ही अब भी होगा।

40) जब नगर से धूएँ का बादल संकेत के रूप में उठा, तब बेनयामीनवंशियों ने मुड़ कर पीछे दृष्टि डाली और देखा कि सारे नगर से धूआँ आकाश तक उठ रहा है।

41) इस पर इस्राएली मुड़े और तब बेनयामीनवंशियों पर आतंक छा गया; क्योंकि वे देख रहें थे कि अब उन पर घोर विपत्ति टूटने वाली है।

42) बेनयामीनवंशी इस्राएलियों को पीठ दिखा कर उजाड़खण्ड की ओर भाग निकले, लेकिन उन्हें युद्ध करना ही पड़ा। नगर से निकलने वाले लोग उनका वध करने लगे।

43) उन्होंने बेनयामीनवंश्यिों को घेर लिया और गिबआ के पूर्व तक उनका पीछा करते हुए उन्हें मार डाला।

44) बेनयामीन के अठारह हज़ार वीर योद्धा मारे गये।

45) वे भागते-भागते उजाड़खण्ड में रिम्मोन की चट्टान तक चले गये। उन में से पाँच हजार रास्ते में मारे गये। उनका पीछा गिदओम तक किया गया और उन में से और दो हज़ार मारे गये।

46) उस दिन बेनयामीनवंशियों के कुल मिला कर पच्चीस हज़ार सैनिकों का वध किया गया। वे सभी सशस्त्र वीर योद्धा थे।

47) छः सौ उजाड़खण्ड की ओर रिम्मोन की चट्टान पर भाग गये और रिम्मोन की चट्टान पर ही चार महीने रहे।

48) इस्राएली बेनयामीनवंशियों की ओर लौटे और उन्होंने उनके नगरों में रहने वाले मनुष्यों, पशुओं और जो कुछ उन्हें मिला, सब का वध कर डाला। इसके अतिरिक्त जो-जो नगर उन्हें मिले, उन्होंने उन में आग लगा दी।



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