📖 - न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ

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अध्याय 11

1) गिलआदी यिफ़्तह वीर योद्धा था। वह एक वेश्या का पुत्र था।

2) गिलआद यिफ़्तह का पिता था। गिलआद को अपनी पत्नी से भी पुत्र पैदा हुए थे। जब पत्नी के पुत्र बडे़ हुए, तो उन्होंने यिफ़्तह को यह कह कर भगा दिया कि तुम्हें हमारे घर में कोई विरासत नहीं मिलेगी, क्योंकि तुम्हारा जन्म किसी दूसरी स्त्री से हुआ है।

3) इसलिए यिफ़्तह अपने भाइयों के पास से भाग कर टोब देश में रहने लगा। तब यिफ़्तह के पास निकम्मे लोगों की मण्डली इकट्ठी हो गयी और वे उसके साथ लूटपाट करते थे।

4) कुछ समय बाद अम्मोनियों ने इस्राएल से लड़ाई छेड़ दी।

5) जब अम्मोनियों का इस्राएलियों से युद्ध छिड़ा, तब गिलआद के नेता टोब प्रदेश से यिफ़्तह को लाने गये।

6) उन्होंने यिफ़्तह से कहा, "आओ, हमारे नेता बनो, जिससे हम अम्मोनियों से लड़ सकें"।

7) यिफ़्तह ने गिलआद के नेताओं को उत्तर दिया, "तुम लोगों ने तो घृणा के कारण मुझे अपने पिता के घर से भगा दिया था। अब, जब तुम पर विपत्ति पड़ी है, तो तुम मेरे पास आये हो।"

8) गिलआद के नेताओं ने यिफ़्तह को उत्तर दिया, "फिर भी हम तुम्हारे पास आये हैं। तुम हमारे साथ अम्मोनियों से लड़ने चलो और तुम गिलआद के सब निवासियों के शासक बनो।"

9) इस पर यिफ़्तह ने गिलआद के नेताओं से पूछा, "यदि तुम लोग मुझे अम्मोनियों से लड़ने के लिऐ वापस बुलाते हो और प्रभु उन्हें मेरे हाथ सौंप देगा, तब क्या मैं सचमुच तुम लोगों का शासक बन जाऊँगा?"

10) गिलआद के नेताओं ने यिफ़्तह से कहा, "प्रभु हमारी इस बात का साक्षी है कि हम ठीक वैसा ही करेंगे, जैसा तुम कह रहे हो"।

11) इस पर यिफ़्तह गिलआद के नेताओं के साथ गया। लोगों ने उसे अपना शासक और नेता बनाया। यिफ़्तह ने ये सब बातें मिस्पा में प्रभु के सामने दोहरायीं।

12) यिफ़्तह ने अम्मोनियों के राजा के पास दूतों से कहला भेजा, "मुझ से आपका क्या, जो आप मेरे देश पर चढ़ आये हैं?

13) अम्मोनियों के राजा ने यिफ़्तह के दूतों को उत्तर दिया, "जब इस्राएली मिस्र से आये थे, तब उन्होंने अरनोन से यब्बोक और यर्दन तक मेरा देश छीन लिया था। इसलिए अब उसे स्वेच्छा से वापस कर दो।"

14) तब यिफ़्तह ने दूसरी बार अम्मोनियों के राजा के पास दूत भेज कर उस से कहलाया,

15) "यिफ़्तह का यह कहना है कि इस्राएल ने मोआब का देश और अम्मोनियों का देश नहीं छीना है,

16) बल्कि इस्राएल मिस्र से आ कर उजाड़खण्ड से होता हुआ लाल समुद्र के पास और फिर कादेश आया।

17) वहाँ इस्राएल ने एदोम के राजा के पास दूतों द्वारा यह निवेदन भेजा था कि हमें अपने देश से हो कर जाने दीजिए; लेकिन एदोम के राजा ने उसकी एक भी नहीं सुनी। उसने मोआब के राजा के पास भी कहलाया था लेकिन उसने भी नहीं मानी। इसलिए इस्राएल कादेश में ही रह गया था।

18) इसके बाद वह उजाड़खण्ड में चलते हुए एदोम देश और मोआब देश का चक्कर लगाते हुए मोआब के पूर्वी भाग में आ पहुँचा और उसने अरनोन के उस पार पड़ाव डाला। उसने मोआब देश में प्रवेश नहीं किया, क्योंकि अरनोन नदी मोआब की सीमा थी।

19) फिर इस्राएल ने होषबोन में रहने वाले अमोरियों के राजा सीहोन के पास दूत भेजे। इस्राएल ने उस से निवेदन किया कि हम आपके देश से हो कर अपने निर्दिष्ट स्थान पर जाना चाहते हैं, आप हमें जाने दीजिए।

20) लेकिन सीहोन ने इस्राएल को अपने देश हो कर जाने की अनुमति नहीं दी; बल्कि सीहोन ने अपने सब लोगों को एकत्रित कर यहसा के पास पड़ाव डाला और वह इस्राएल से लड़ने लगा।

21) परन्तु प्रभु, इस्राएल के ईश्वर ने सीहोन और उसके सारे लोगों को इस्राएल के हाथ दे दिया। इस प्रकार इस्राएल ने उन्हें पराजित कर उस देश को अधिकार में कर लिया, जिसमें अमोरी बसे हुए थे।

22) उसने अरनोन से यब्बोक तक और उजाड़खण्ड से यर्दन तक अमोरियों का सारा देश अपने अधिकार में लिया।

23) अब यदि प्रभु, इस्राएल के ईश्वर ने अमोरियों को अपनी प्रजा इस्राएल के आने पर भगा दिया, तो क्या आप अब उसे फिर अपने अधिकार में लेना चाहते हैं?

24) यदि आपका देवता कमोष किसी को भगा देता, तो क्या आप उसका देश अधिकार में नहीं कर लेते? ठीक इसी प्रकार हम उसका सारा देश अधिकार में कर लेते हैं, जिसे प्रभु, हमारा ईश्वर हमारे सामने से भगा देता है।

25) अब क्या आप मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक से श्रेष्ठ हैं? क्या उसने इस्राएल से कभी झगड़ा या युद्ध किया था?

26) जब इस्राएल हेशबोन और उसके गाँवों, अरोएर और उसके गाँवों तथा अरनोन के सब तटवर्ती नगरों में इन तीन सौ वर्षों तक निवास करता रहा, तो आप लोगों ने उन्हें इतने समय में अधिकार में क्यों नहीं कर लिया?

27) मैंने तो आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा, फिर भी आप मुझ से युद्ध कर मेरा अहित करने पर उतारू हैं। प्रभु न्यायाधीश हैं। वही आज इस्राएल और अम्मोन के लोगों के बीच न्याय करेगा।"

28) इस पर भी अम्मोनियों के राजा ने यिफ़्तह द्वारा उसके पास भेजे गये सन्देश पर ध्यान नहीं दिया।

29) उस समय प्रभु के आत्मा ने यिफ़्तह को प्रेरित किया। यिफ़्तह गिलआद और मनस्से को पार कर गिलआद के मिस्पा नामक स्थान पहुँचा और वहाँ से अम्मोनियों के यहाँ आया।

30) यिफ़्तह ने यह कहते हुए प्रभु के सामने यह मन्नत मानी, "यदि तू अम्मोनियों को मेरे हवाले कर देगा और मैं सकुशल लौटँूगा,

31) तो जो पहला व्यक्ति मेरी अगवानी करने मेरे घर से निकलेगा, वह प्रभु का होगा और मैं उसकी होम-बलि चढ़ाऊँगा।"

32) यिफ़्तह अम्मोनियों के विरुद्ध युद्ध करने निकला और प्रभु ने उन को उसके हवाले कर दिया।

33) यिफ़्तह ने अरोएर से मिन्नीत के आसपास तक बीस नगरों को जीता और आबेल-करामीम तक अम्मोनियों को बुरी तरह पराजित कर दिया। इस प्रकार अम्मोनी लोग इस्राएलियों के अधीन हो गये।

34) जब यिफ़्तह मिस्पा में अपने यहाँ लौटा, तो उसकी पुत्री द्वार से निकल कर डफली बजाते और नाचते हुए उसकी अगवानी करने आयी। वह उसकी अकेली सन्तान थी। उसके सिवा यिफ़्तह के न तो कोई पुत्र था और न कोई पुत्री।

35) यिफ़्तह ने उसे देखते ही अपने वस्त्र फाड़ कर कहा, "हाय! बेटी! तुमने मुझे मारा है! तुमने मुझे महान संकट में डाल दिया है। मैं प्रभु को वचन दे चुका हूँ। मैं उसे वापस नहीं ले सकता।"

36) उसने उत्तर दिया, "पिता जी! आप प्रभु को वचन दे चुके हैं। आप मेरे विषय में अपनी मन्नत पूरी कीजिए, क्योंकि प्रभु ने आप को अपने शत्रुओं से, अम्मोनियों से, बदला चुकाने का वरदान दिया है।"

37) इसके बाद उसने अपने पिता से कहा, "एक निवेदन है। मुझे दो महीने का समय दीजिए, जिससे मैं पहाड़ पर जा कर अपनी सखियों के साथ अपने कुँवारेपन का षोक मनाऊँ।"

38) उसने उत्तर दिया, "जाओ" और उसे दो महीनों के लिए जाने दिया। वह अपनी सखियों के साथ चली गयी और उसने पहाड़ पर अपने कुँवारेपन का षोक मनाया।

39) वह दो महीने के बाद अपने पिता के यहाँ लौटी और उसने उसके विषय में अपनी मन्नत पूरी कर दी। उसका कभी किसी पुरुष के साथ संसर्ग नहीं हुआ। इस प्रकार इस्राएल में इस प्रथा का प्रचलन हुआ

40) कि कन्याएँ प्रति वर्ष चार दिन तक गिलआदी यिफ़्तह की पुत्री का स्मरणोत्सव मनाती हैं।



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