1) मैंने स्वर्ग में एक और महान् एवं आश्चर्यजनक चिह्न देखा। सात स्वर्गदूत सात विपत्तियाँ लिये थे। ये अन्तिम विपत्तियाँ हैं, क्योंकि इनके द्वारा ईश्वर का क्रोध पूरा हो जाता है।
2) मैंने आग से मिले कुए काँच के समुद्र-सा कुछ देखा। जो लोग पशु उसकी प्रतिमा और उसके नाम की संख्या पर विजयी हुए थे, वे काँच के समुद्र पर खड़े थे। वे ईश्वर की वीणाएं लिये
3) ईश्वर के दास मूसा का गीत और मेमने का गीत गाते हुए कहते थे। "सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर! तेरे कार्य महान् और अपूर्व हैं। राष्ष्ट्रों के राजा! तेरे मार्ग न्यायसंगत और सच्चे हैं।
4) "प्रभु! कौन तुझ पर श्रद्धा और तेरे नाम की स्तुति नहीं करेगा? क्योंकि तू ही पवित्र है। " सभी राष्ष्ट्र आ कर तेरी आराधना करेंगे, क्योंकि तेरे न्यायसंगत निर्णय प्रकट हो गये हैं।"
5) इसके बाद मैंने देखा कि स्वर्ग में साक्ष्य के तम्बू का मन्दिर खुल रहा है।
6) उस से सात विपत्तियाँ लिये सात स्वर्गदूत निकले। वे स्वच्छ और उज्ज्वल छालटी पहने थे। और उनके वक्षस्थल पर स्वर्ग मेखलाएं बाँधी हुईं थीं।
7) चार प्राणियों में एक ने सात स्वर्गदूतों को सात सोने के प्याले दिये, जिन में युग-युगों तक जीवित रहने वाले ईश्वर का क्रोध भरा हुआ था।
8) ईश्वर की महिमा और उसके सामर्थ्य के कारण मन्दिर धूएं से भर गया था और कोई तब तक मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता था, जब तक सात स्वर्गदूतों की सात विपत्तियाँ पूरी न हो जायें।