📖 - प्रकाशना ग्रन्थ

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अध्याय 07

ईश्वर के कृपापात्र

1) इसके बाद मैंने पृथ्वी के चार कोनों पर चार स्वर्गदूतों को खड़ा देखा। वे चारों पवनों को रोक रहे थे, जिसके फलस्वरूप कोई भी पवन न पृथ्वी पर बहता था न समुद्र पर और न किसी वृक्ष पर।

2) मैंने एक अन्य दूत को पूर्व से ऊपर उठते देखा। जीवन्त ईश्वर की मुहर उसके पास थी और उसने उन चार दूतों से, जिन्हें पृथ्वी और समुद्र को उजाड़ने का अधिकार मिला था, पुकार कर कहा,

3) "जब तक हम अपने ईश्वर के दासों के मस्तक पर मुहर न लगायें, तब तक तुम न तो पृथ्वी को उजाड़ो, न समुद्र को और न वृक्षों को"।

4) और मैंने मुहर लगे लोगों की संख्या सुनी- यह एक लाख चैवालीस हजार थी और वे इस्राएलियों के सभी वंशों में से थे:

5) यूदा-वंश के बारह हज़ार, रूबेन-वंश के बारह हज़ार, गाद-वंश के बारह हज़ार,

6) आसेर-वंश के बारह हज़ार, नफ्ताली-वंश के बारह हज़ार, मनास्से-वंश के बारह-हज़ार,

7) सिमेयोन-वंश के बारह हज़ार, लेवी-वंश के बारह हज़ार, इस्साखार-वंश के बारह हज़ार

8) ज़बुलोन-वंश के बारह हज़ार, यूसुफ़-वंश के बारह हज़ार और बेनयामीन-वंश के बारह हज़ार मुहर लगे लोग।

9) इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे

10) और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, "सिंहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!"

11) तब सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब-के-सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की आराधना की,

12) "आमेन! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति ! आमेन !"

13) वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, "ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहाँ से आये हैं?

14) मैंने उत्तर दिया, "महोदय! आप ही जानते हैं" और उसने मुझ से कहाँ, "ये वे लोग हैं, जो महासंकट से निकल कर आये हैं। इन्होंने मेमने के रक्त से अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं।

15) इसलिए ये ईश्वर के सिंहासन के सामने ख़ड़े रहते और दिन-रात उसके मन्दिर में उसकी सेवा करते हैं । वह, जो सिंहासन पर विराजमान है, इनके साथ निवास करेगा।

16) इन्हें फिर कभी न तो भूख लगेगी और न प्यास, इन्हें न तो धूप से कष्ष्ट होगा और न किसी प्रकार के ताप से;

17) क्योंकि सिंहासन के सामने विद्यमान मेमना इनका चरवाहा होगा और इन्हें संजीवन जल के स्रोत के पास ले चलेगा और ईश्वर इनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा।"



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