📖 - सन्त लूकस का सुसमाचार

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अध्याय 22

यूदस का विश्वासघात

1) पास्का, बेख़मीर रोटी का पर्व, निकट था।

2) महायाजक और शास्त्री ईसा के सर्वनाश का उपाय ढूँढ़ रहे थे, परन्तु वे जनता से डरते थे।

3) उस समय शैतान यूदस में घुस गया। यूदस इसकारियोती कहलाता था और बारहों में से एक था।

4) उसने महायाजकों और मन्दिर-आरक्षी के नायकों के पास जा कर उनके साथ यह परामर्श किया कि वह किस प्रकार ईसा को उनके हवाले कर दे।

5) वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे रूपया देने का वादा किया।

6) यूदस सहमत हो गया और वह जनता के अनजान में ईसा को पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ता रहा।

पास्का की तैयारी

7) बेख़मीर रोटी का दिन आया, जब पास्का के मेमने की बलि चढ़ाना आवश्यक था।

8) ईसा ने पेत्रुस और योहन को यह कहते हुए भेजा, "जा कर हमारे लिए पास्काभोज की तैयारी करो"।

9) उन्होंने ईसा से पूछा, "आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ उसकी तैयारी करें?"

10) ईसा ने उत्तर दिया, "शहर में आने पर तुम्हें पानी का घड़ा लिये एक पुरुष मिलेगा। उसके पीछे-पीछे चलना और जिस घर में वह प्रवेश करे,

11) उस घर के स्वामी से कहना, ‘गुरूवर ने आप को कहला भेजा है-अतिथिशाला कहाँ है, जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ पास्का का भोजन करूँ?"

12) और वह तुम्हें ऊपर एक सजा-सजाया बड़ा कमरा दिखा देगा। वहीं तैयार करना।’

13) वे चल पड़े। ईसा ने जैसा कहा था, उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया और पास्का-भोज की तैयारी कर ली।

पास्का का भोज

14) समय आने पर ईसा प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठे

15) और उन्होंने उन से कहा, "मैं कितना चाहता था कि दुःख भोगने से पहले पास्का का यह भोजन तुम्हारे साथ करूँ;

16) क्योंकि मैं तुम लोगों से कहता हूँ, जब तक यह ईश्वर के राज्य में पूर्ण न हो जाये, मैं इसे फिर नहीं खाऊँगा"।

17) इसके बाद ईसा ने प्याला लिया, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और कहा, "इसे ले लो और आपस में बाँट लो;

18) क्योंकि मैं तुम लोगों से कहता हूँ, जब तक ईश्वर का राज्य न आये, मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊँगा"।

परमप्रसाद की स्थापना

19) उन्होंने रोटी ली और धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, "यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है। यह मेरी स्मृति में किया करो"।

20) इसी तरह उन्होंने भोजन के बाद यह कहते हुए प्याला दिया, "यह प्याला मेरे रक्त का नूतन विधान है। यह तुम्हारे लिए बहाया जा रहा है।

यूदस के विश्वासघात का संकेत

21) "देखो, मेरे विश्वासघाती का हाथ मेरे साथ मेज़ पर है।

22) मानव पुत्र तो, जैसा लिखा है, चला जाता है; किन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो उसे पकड़वाता है!’

23) वे एक दूसरे से पूछने लगे कि हम लोगों में कौन यह काम करने वाला है।

शिष्यों में बड़ा कौन

24) उन में यह विवाद छिड़ गया कि हम में किस को सब से बड़ा समझा जाना चाहिए।

25) ईसा ने उन से कहा, "संसार में राजा अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी संरक्षक कहलाना चाहते हैं।

26) परन्तु तुम लोगों में ऐसा नहीं है। जो तुम में बड़ा है, वह सब से छोटे-जैसा बने और जो अधिकारी है, वह सेवक-जैसा बने।

27) आखि़र बड़ा कौन है-वह, जो मेज़ पर बैठता है अथवा वह, जो परोसता है? वहीं न, जो मेज़ पर बैठता है। परन्तु मैं तुम लोगों में सेवक-जैसा हूँ।

प्रेरितों का पुरस्कार

28) "तुम लोग संकट के समय मेरा साथ देते रहे।

29) मेरे पिता ने मुझे राज्य प्रदान किया है, इसलिए मैं तुम्हें यह वरदान देता हूँ

30) कि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज़ पर खाओगे-पियोगे और सिंहासनों पर बैठ कर इस्राएल के बारह वंशों का न्याय करोगे।

पेत्रुस की भावी निर्बलता

31) "सिमोन! सिमोन! शैतान को तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने की अनुमति मिली है।

32) परन्तु मैंने तुम्हारे लिए प्रार्थना की है, जिससे तुम्हारा विश्वास नष्ट न हो। जब तुम फिर सही रास्ते पर आ जाओगे, तो अपने भाइयों को भी सँभालोगे।"

33) "पेत्रुस ने उन से कहा, "प्रभु! मैं आपके साथ बन्दीगृह जाने और मरने को भी तैयार हूँ"।

34) किन्तु ईसा के कहा, "पेत्रुस! मैं तुम से कहता हूँ कि आज, मुर्गे के बाँग देने से पहले ही, तुम तीन बार यह अस्वीकार करोगे कि तुम मुझे जानते हो"।

भावी संकट

35) ईसा ने उन से कहा, "जब मैंने तुम्हें थैली, झोली और जूतों के बिना भेजा तो क्या तुम्हें किसी बात की कमी हुई थी?"

36) उन्होंने उत्तर दिया, "किसी बात की नहीं"। इस पर ईसा ने कहा, "परन्तु अब जिसके पास थैली है, वह उसे ले ले और अपनी झोली भी और जिसके पास नहीं है, वह अपना कपड़ा बेच कर तलवार ख़रीद ले;

37) क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ कि धर्मग्रन्थ का यह कथन मुझ में अवश्य पूरा होगा-उसकी गिनती कुकर्मियों में हुई। और जो कुछ मेरे विषय में लिखा है, वह पूरा होने को है।"

38) शिष्यों ने कहा, "प्रभु! देखिए, यहाँ दो तलवारें हैं"। परन्तु ईसा ने कहा, "बस! बस!"

प्रभु की प्राणपीड़ा

39) ईसा बाहर निकल कर अपनी आदत के अनुसार जैतून पहाड़ गये। उनके शिष्य भी उनके साथ हो लिये।

40) ईसा ने वहाँ पहुँच कर उन से कहा, "प्रार्थना करो, जिससे तुम परीक्षा में न पड़ो"।

41) तब वे पत्थर फेंकने की दूरी तक उन से अलग हो गये और घुटने टेक कर उन्होंने यह कहते हुए प्रार्थना की,

42) "पिता! यदि तू ऐसा चाहे, तो यह प्याला मुझ से हटा ले। फिर भी मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो।"

43) तब उन्हें स्वर्ग का एक दूत दिखाई पड़ा, जिसने उन को ढारस बँधाया।

44) वे प्राणपीड़ा में पड़ने के कारण और भी एकाग्र हो कर प्रार्थना करते रहे और उनका पसीना रक्त की बूँदों की तरह धरती पर टपकता रहा।

45) वे प्रार्थना से उठ कर अपने शिष्यों के पास आये और यह देख कर कि वे उदासी के कारण सो गये हैं,

46) उन्होंने उन से कहा, "तुम लोग क्यों सो रहे हो? उठो और प्रार्थना करो, जिससे तुम परीक्षा में न पड़ो।"

ईसा की गिरफ़्तारी

47) ईसा यह कह ही रहे थे कि एक दल आ पहुँचा। यूदस, बारहों में से एक, उस दल का अगुआ था। उसने ईसा के पास आ कर उनका चुम्बन किया।

48) ईसा ने उस से कहा, "यूदस! क्या तुम चुम्बन दे कर मानव पुत्र के साथ विश्वासघात कर रहे हो?"

49) ईसा के साथियों ने यह देख कर कि क्या होने वाला है, उन से कहा, "प्रभु! क्या हम तलवार चलायें?"

50) और उन में एक ने प्रधानयाजक के नौकर पर प्रहार किया और उसका दाहिना कान उड़ा दिया।

51) किन्तु ईसा ने कहा, "रहने दो, बहुत हुआ", और उसका कान छू कर उन्होंने उसे अच्छा कर दिया।

52) जो महायाजक, मन्दिर-आरक्षी के नायक और नेता ईसा को पकड़ने आये थे, उन से उन्होंने कहा, "क्या तुम मुझ को डाकू समझ कर तलवारें और लाठियाँ ले कर निकले हो?

53) मैं प्रतिदिन मन्दिर में तुम्हारे साथ रहा और तुमने मुझ पर हाथ नहीं डाला। परन्तु यह समय तुम्हारा है-अब अन्धकार का बोलबाला है।"

पेत्रुस का अस्वीकरण

54) तब उन्होंने ईसा को गिरफ़्तार कर लिया और उन्हें ले जा कर प्रधानयाजक के यहाँ पहुँचा दिया। पेत्रुस कुछ दूरी पर उनके पीछे-पीछे चला।

55) लोग प्रांगण के बीच में आग जला कर उसके चारों ओर बैठ रहे थे। पेत्रुस भी उनके साथ बैठ गया।

56) एक नौकरानी ने आग के प्रकाश में पेत्रुस को बैठा हुआ देखा और उस पर दृष्टि गड़ा कर कहा, "यह भी उसी के साथ था"।

57) किन्तु उसने अस्वीकार करते हुए कहा, "नहीं भई! मैं उसे नहीं जानता"।

58 थोड़ी देर बाद किसी दूसरे ने पेत्रुस को देख कर कहा, "तुम भी उन्हीं लोगों में एक हो"। पेत्रुस ने उत्तर दिया, "नहीं भई! मैं नही हूँ"।

59) क़रीब घण्टे भर बाद किसी दूसरे ने दृढ़तापूर्वक कहा, "निश्चय ही यह उसी के साथ था। यह भी तो गलीली है।"

60) पेत्रुस ने कहा, "अरे भई! मैं नहीं समझता कि तुम क्या कह रहे हो"। वह बोल ही रहा था कि उसी क्षण मुर्गे ने बाँग दी

61) और प्रभु ने मुड़ कर पेत्रुस की ओर देखा। तब पेत्रुस को याद आया कि प्रभु ने उस से कहा था कि आज मुर्गे के बाँग देने से पहले ही तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे,

62) और वह बाहर निकल कर फूट-फूट कर रोया।

अत्याचार

63) ईसा पर पहरा देने वाले प्यादे उनका उपहास और उन पर अत्याचार करते थे।

64) वे उनकी आँखों पर पट्टी बाँध कर उन से पूछते थे, "यदि तू नबी है, तो हमें बता-तुझे किसने मारा?"

65) वे उनका अपमान करते हुए उन से और बहुत-सी बातें कहते रहे।

यहूदी महासभा के सामने

66) दिन निकलने पर जनता के नेता, महायाजक और शास्त्री एकत्र हो गये और उन्होंने ईसा को अपनी महासभा में बुला कर उन से कहा,

67) "यदि तुम मसीह हो, तो हमें बता दो"। उन्होंने उत्तर दिया, यदि मैं आप लोगों से कहूँगा, तो आप विश्वास नहीं करेंगे

68) और यदि मैं प्रश्न करूँगा, तो आप लोग उत्तर नहीं देंगे।

69) परन्तु अब से मानव पुत्र सर्वशक्तिमान् ईश्वर के दाहिने विराजमान होगा।"

70) इस पर सब-के-सब बोल उठे, "तो क्या तुम ईश्वर के पुत्र हो?’ ईसा ने उत्तर दिया, "आप लोग ठीक ही कहते हैं। मैं वही हूँ।"

71) इस पर उन्होंने कहा, "हमें और गवाही की ज़रूरत ही क्या है? हमने तो स्वयं इसके मुँह से सुन लिया है।"



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