📖 - सन्त लूकस का सुसमाचार

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अध्याय 08

पवित्र नारियों की सेवा-परिचर्या

1) इसके बाद ईसा नगर-नगर और गाँव-गाँव घूम कर उपदेश देते और ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते रहे। बारह प्रेरित उनके साथ थे

2) और कुछ नारियाँ भी, जो दुष्ट आत्माओं और रोगों से मुक्त की गयी थीं-मरियम, जिसका उपनाम मगदलेना था और जिस से सात अपदूत निकले थे,

3) हेरोद के कारिन्दा खूसा की पत्नी योहन्ना; सुसन्ना और अनेक अन्य नारियाँ भी, जो अपनी सम्पत्ति से ईसा और उनके शिष्यों की सेवा-परिचर्या करती थीं।

बोने वाले का दृष्टान्त

4) एक विशाल जनसमूह एकत्र हो रहा था और नगर-नगर से लोग ईसा के पास आ रहे थे। उस समय उन्होंने यह दृष्टान्त सुनाया,

5) "कोई बोने वाला बीज बोने निकला। बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे। वे पैरों से रौंदे गये और आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया।

6) कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे। वे उग कर नमी के अभाव में झुलस गये।

7) कुछ बीज काँटों में गिरे। साथ-साथ बढ़ने वाले काँटों ने उन्हें दबा दिया।

8) कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे। वे उग कर सौ गुना फल लाये।" इतना कहने के बाद वह पुकार कर बोले, "जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले"।

दृष्टान्तों का उद्देश्य

9) शिष्यों ने उन से इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा।

10) उन्होंने उन से कहा, "तुम लोगों को ईश्वर के राज्य का भेद जानने का वरदान मिला है। दूसरों को केवल दृष्टान्त मिले, जिससे वे देखते हुए भी नहीं देखें और सुनते हुए भी नहीं समझें।

बोने वाले के दृष्टान्त की वाख्या

11) "दृष्टान्त का अर्थ इस प्रकार है। ईश्वर का वचन बीज है।

12) रास्ते के किनारे गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करें और मुक्ति प्राप्त कर लें, इसलिए शैतान आ कर उनके हृदय से वचन ले जाता है।

13) चट्टान पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करते हैं, किन्तु जिन में जड़ नहीं है। वे कुछ ही समय तक विश्वास करते हैं और संकट के समय विचलित हो जाते हैं।

14) काँटों में गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु आगे चल कर वे चिन्ता, धन-सम्पत्ति और जीवन का भोग-विलास से दब जाते हैं और परिपक्वता तक नहीं पहुँच पाते।

15) अच्छी भूमि पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से वचन सुन कर सुरक्षित रखते और अपने धैर्य के कारण फल लाते हैं।

दीपक का दृष्टान्त

16) "कोई दीपक जला कर बरतन से नहीं ढकता या पलंग के नीचे नहीं रखता, बल्कि वह उसे दीवट पर रख देता है, जिससे भीतर आने वाले उसका प्रकाश देख सकें।

17) "ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं होगा और ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो नहीं फैलेगा और प्रकाश में नहीं आयेगा।

18) तो इसके सम्बन्ध में सावधान रहो कि तुम किस तरह सुनते हो; क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जिसे वह अपना समझता है।

ईसा के सम्बन्धी

19) ईसा की माता और भाई उन से मिलने आये, किन्तु भीड़ के कारण उनके पास नहीं पहुँच सके।

20) लोगों ने उन से कहा, "आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आप से मिलना चाहते हैं।"

21) उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी माता और मेरे भाई वहीं हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं"।

आँधी को शान्त करना

22) ईसा एक दिन अपने शिष्यों के साथ नाव में बैठ गये और उन से बोले, "हम झील के उस पार चलें।" वे चल पड़े।

23) नाव चल रही थी और ईसा सो गये। तब झील में झंझावात उठा, नाव पानी से भरी जा रही थी और वे संकट में पड़ गये।

24) शिष्यों ने ईसा के पास आ कर उन्हें जगाया और कहा, "गुरूवर! गुरूवर! हम डूब रहे हैं!" वे जाग गये और उन्होंने वायु तथा लहरों को डाँटा। वे थम गयीं और शान्ति छा गयी।

25) तब उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "तुम लोगों का विश्वास कहाँ है?" उन पर भय छा गया और वे अचम्भे में पड़ कर आपस में यह कहते रहे, "आखिर यह कौन है?" ये वायु और लहरों को भी आज्ञा देते हैं और वे इनकी आज्ञा मानती हैं।"

गेरासा का अपदूतग्रस्त

26) वे नाव से उतर कर गेरासेनियों के प्रदेश पहुँचे, जो झील के उस पार गलीलिया के सामने है।

27) ईसा ज्यों ही भूमि पर उतरे, उस नगर का एक अपदूतग्रस्त मनुष्य उनके पास आया। वह बहुत दिनों से कपड़े नहीं पहनता था और घर में नहीं, मक़बरों में रहा करता था।

28) वह ईसा को देख कर चिल्ला उठा और दण्डवत् कर ऊँचे स्वर से बोला, "ईसा! सर्वोच्च ईश्वर के पुत्र! मुझ से आप को क्या? मैं आप से विनती करता हूँ, मुझे न सताइए";

29) क्योंकि ईसा अशुद्ध; आत्मा को उस मनुष्य से निकल जाने का आदेश दे रहे थे। अशुद्ध आत्मा उसे बार-बार लग जाता था और वश में रखने के लिए लोग उसे जंजीरों और बेडि़यों से जकड़ देते थे; किन्तु वह अपने बन्धनों को तोड़ देता था और अशुद्ध आत्मा उसे निर्जन स्थानों में ले जाया करता था।

30) ईसा ने अपदूत से पूछा, "तेरा नाम क्या है?" उसने कहा, "सेना,", क्योंकि उस मनुष्य में बहुत-से अपदूत घुस आये थे।

31) वे ईसा से अनुनय-विनय करते रहे कि वे उन को अथाह गर्त में जाने का आदेश न दें।

32) वहाँ पहाड़ी पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। उन्होंने ईसा से विनती की कि वह उन्हें सूअरों में घुसने की अनुमति दें। ईसा ने अनुमति दे दी।

33) तब अपदूत उस मनुष्य से निकल कर सूअरों में जा घुसे और वह झुण्ड तेजी से ढाल पर से झील में कूद पड़ा और डूब कर मर गया।

34) यह देख कर सूअर चराने वाले भाग गये और उन्होंने नगर तथा बस्तियों में इसकी ख़बर फैला दी।

35) लोग यह सब देखने निकले। वे ईसा के पास आये और यह देखकर भयभीत हो गये कि वह मनुष्य, जिस से अपदूत निकले थे, कपड़े पहने शान्त भाव से ईसा के चरणों में बैठा हुआ है।

36) जिन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा था, उन्होंने लोगों को बताया कि किस तरह अपदूतग्रस्त का उद्धार हुआ।

37) तब गेरासेनी प्रदेश की सारी जनता ने अत्यन्त भयभीत हो कर ईसा से यह निवेदन किया कि वे उनके यहाँ से चले जायें। ईसा नाव पर चढ़ कर लौट गये।

38) जिस मनुष्य से अपदूत निकले थे, वह ईसा से यह विनती करता रहा कि मुझे अपने साथ रहने दीजिए; पर ईसा ने उसे विदा करते हुए कहा,

39) "अपने यहाँ लौट जाओ और लोगों को यह बताओं कि ईश्वर ने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया है"। वह जा कर सारे नगर में यह सुनाता फिरता रहा कि ईसा ने मेरे लिए क्या-क्या किया है।

जैरुस की बेटी और रक्तस्राव-पीडिता

40) जब ईसा लौटे, तो लोगों ने उनका स्वागत किया, क्योंकि सभी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

41) उस समय सभागृह का जैरूस नामक अधिकारी आया और ईसा को दण्डवत् कर उन से अनुनय-विनय करता रहा कि वह उसके यहाँ चलने की कृपा करें,

42) क्योंकि उसकी लगभग बारह बरस की इकलौती बेटी मरने पर थी। वे उसके साथ चले। रास्ते में भीड़ चारों ओर से उन पर गिरी पड़ती थी।

43) एक स्त्री बारह बरस से रक्तस्राव से पीड़ित थी। कोई भी उसे स्वस्थ नहीं कर सका था।

44) उसने पीछे से आ कर ईसा की चादर का पल्लू छू लिया और उसका रक्तस्राव उसी क्षण बन्द हो गया।

45) ईसा ने कहा, "किसने मेरा स्पर्श किया?" सबों के इनकार करने पर पेत्रुस बोला, "गुरूवर! चारों ओर से लोग आप को घेर लेते और आप पर गिरे पड़ते हैं"।

46) ईसा ने कहा, "किसी ने अवश्य मेरा स्पर्श किया। मैंने अनुभव किया कि मुझ से शक्ति निकली है।"

47) यह समझ कर कि मैं छिप नहीं सकती, वह स्त्री डरती-काँपती हुई आयी और उन्हें दण्डवत् कर उसने सबों के सामने बताया कि मैंने क्यों उनका स्पर्श किया और मैं कैसे उसी क्षण स्वस्थ हो गयी।

48) ईसा ने उस से कहा, "बेटी, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है। शान्ति प्राप्त कर जाओ।"

49) ईसा यह कह ही रहे थे कि सभागृह के अधिकारी के यहाँ से कोई यह कहने आया, "आपकी बेटी मर गयी है। अब आप गुरूवर को कष्ट न दीजिए।"

50) किन्तु यह सुन कर ईसा ने उस से कहा, "डरिए नहीं। बस, विश्वास कीजिए और वह चंगी हो जायेगी।"

51) उन्होंने घर पहुँच कर पेत्रुस, योहन तथा याकूब और लड़की के माता-पिता के सिवा किसी को अपने साथ अन्दर नहीं जाने दिया।

52) सब रो रहे थे और उसके लिए विलाप कर रहे थे। ईसा ने कहा, "मत रोओ! वह नहीं मरी सो रही है"।

53) वे उनकी हँसी उड़ाते रहे, क्योंकि वे भली-भाँति यह जानते थे कि वह मर गयी है।

54) ईसा ने उसका हाथ पकड़ कर पुकारा, "ओ लड़की! उठो!"

55) उसके प्राण लौट आये और वह उसी क्षण उठ खड़ी हो गयी। ईसा ने उसे कुछ खिलाने को कहा।

56) उसके मात-पिता दंग रह गये, किन्तु ईसा ने आदेश दिया कि वे इस घटना की चर्चा किसी से नहीं करें।



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