1) "समारिया पर्वत पर रहने वाली बाशान की गायो! तुम जो गरीबों को सताती हो और हीनों को दबाती हो; तुम, जो अपने पतियों से कहती हो, ’हमारे लिए पीने का प्रबन्ध करो’,
2) प्रभु-ईश्वर अपनी ही पवित्रता की शपथ से कहता हैः तुम्हारे ऐसे दिन आ रहे हैं कि वे तुम को पकड़ कर काँटों से घसीट ले जायेंगे; सब-के-सब बंसियों से फँसी मछलियों की तरह ले जायी जाओगी।
3) वे तुम को गिरी हुई दीवारों की दरारों से हो कर सीधे बाहर निकाल कर हरमोन की ओर ले जायेंगे।" यह प्रभु की वाणी है।
4) "बेतेल जा कर पाप करो, गिलगाल जा कर पाप-पर-पर करो! प्रतिदिन प्रातः अपनी बलियाँ चढाओ और तीसरे दिन अपना दशमांश ले आओ!
5) धन्यवाद-बलि के लिए खमीरी रोटी चढाओ और अपनी इच्छा से चढायी गयी बलियों पर डींग हाँको: यह तुम्हें पसन्द है न, इस्राएल के लोगों!" यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।
6) "मैंने ही तुम्हारे नगरों में अकाल भेजा था और तुम्हारे सब कसबों मे तुम को भूखा छोड़ा था; फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे।" यह प्रभु की वाणी है।
7) "गेहूँ अंकुरित हुआ ही था कि मैंने वर्षा बन्द की थी; मैंने एक नगर पर पानी बरसाया और दूसरे को उस से अछूता रखा; एक खेत पर वर्षा की और दूसरे को, वर्षा न मिलने के कारण सूखने दिया;
8) दो-तीन नगरों के लोग पीने के पानी की खोज में पडोस के नगरों मे घूमते थे, किन्तु प्यासे ही रह गये। फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे।" यह प्रभु की वाणी है।
9) "मैंने तुम को पाले और गेरूए से मारा और तुम्हारे बाग-बगीचों को उजाड दिया; टिड्डियों ने अंगूर और जैतून के वृक्ष चाट डाले। फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे।" यह प्रभु की वाणी है।
10) "मैंने तुम पर मिस्र की तरह महामारी भेजी; मैंने तुम्हारे नवयुवकों को तलवार के घाट उतरवा दिया; तुम्हारे घोड़े लुट गये; तुम्हारी छावनी में मृतकों के पडे रहने से सडायंध तुम्हारी नाकों में भर गयी। फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे।" यह प्रभु की वाणी है
11) "जिस प्रकार ईश्वर ने सोदोम और गोमोरा का सर्वनाश किया था, उसी प्रकार मैंने तुम पर विपत्ति भेजी है। तुम आग में से निकाली हुई लुआठी-जैसे बन गये थे। फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे।" यह प्रभु की वाणी है।
12) "इस्राएल! इसलिए मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा। और क्योंकि मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा, इस्राएल! तुम अपने ईश्वर के सामने आने के लिए तैयार हो जाओ।"
13) देखो, जो पर्वतों का निर्माण करता है और हवा बहाता है, जो मनुष्य को अपना मित्र बनाता हैं, जो प्रकाश और अंधकार, दोनों रचता है और पर्वत-शिखरों के ऊपर विचरता है, उसका नाम प्रभु, विश्वमण्डल का ईश्वर है।