📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

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अध्याय 30

1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई पड़ीः

2) इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता है - ’मैंने जो कुछ तुम से कहा, वह सब एक पुस्तक में लिख लो ;

3) क्योंकि वह समय आ रहा है, जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल और यूदा का भाग्य बदल दूँगा’- प्रभु यह कहता है- ’और उसे उस देश में वापस ले आऊँगा, जिसे मैंने उसके पुरखों को दिया था और वह उसे अपने अधिकार में कर लेगी।“

4) इस्राएल और यूदा के विषय में प्रभु की यह वाणी है:

5) “प्रभु यह कहता है- हमने भगदड़ और आतंक का कोलाहल सुना है, शान्ति का नहीं।

6) पूछ कर देखो: क्या किसी पुरुष को बच्चा हो सकता है? तो क्यों मैं हर पुरुष की प्रसवपीड़ित स्त्री की तरह अपनी कमर पर हाथ रखे देख रहा हूँ? क्यों सब के चेहरे पीले पड़ गये हैं?

7) काश! वह दिन इतना महान् है, जितना और कोई दिन नहीं! यह याकूब के लिए संकट का समय है, लेकिन वह इस से उबार दिया जायेगा।

8) “विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है, उस दिन मैं उनके कन्धे पर का जूआ तोड़ दूँगा और उनके बन्धन काट दूँगा और उसके बाद विदेशी उन्हें फिर अपना दास नहीं बना सकेंगे,

9) बल्कि वे अपने प्रभु-ईश्वर की और राजा दाऊद की सेवा करेंगे, जिसे मैं उनके लिए नियुक्त करूँगा।

10) “प्रभु यह कहता है- मेरे सेवक याकूब! मत डरो; इस्राएल! मत भयभीत हो; क्योंकि मैं तुम्हें दूरवर्ती देशों और तुम्हारे वंशजों को उनकी दासता के देश से सुरक्षित लौटाऊँगा। याकूब लौट आयेगा और उसे सुख-शान्ति प्राप्त होगी। उसे कोई नहीं डरा सकेगा;

11) क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हारी रक्षा करूँगा - प्रभु यह कहता है। मैं उन राष्ट्रों का विनाश करूँगा जिन में मैंने तुम्हें बिखेरा है, किन्तु मैं तुम्हारा विनाश नहीं होने दूँगा। मैं तुम्हें उचित सीमा तक दण्ड दूँगा और मैं किसी भी तरह तुम्हें दण्ड दिये बिना नहीं रहूँगा।

12) “प्रभु यह कहता है- तुम्हारी बीमारी कभी अच्छी नहीं होगी। तुम्हारे घावों पर कोई इलाज नहीं है।

13) तुम्हारा कोई पक्षधर नहीं है। तुम्हारे घाव नहीं भरेंगे।

14) तुम्हारे सभी प्रेमियों ने तुम को भुला दिया; वे तुम्हारी कोई परवाह नहीं करते, क्योंकि तुम्हारे असंख्य अपराधों और पापों के कारण मैंने तुम को शत्रु की तरह मारा और घोर दण्ड दिया है।

15) तुम अपने घावों पर क्यों रोती हो? तुम्हारी बीमारी का कोई इलाज नहीं। तुम्हारे असंख्य अपराधों और पापों के कारण ही मैंने तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार किया है।

16) लेकिन जिन्होंने तुम्हें अपना आहार बनाया था, वे स्वयं आहार बन जायेंगे। तुम्हारे सभी शत्रु बन्दी बनाये जायेंगे। जिन्होंने तुम्हें लूटा है, वे स्वयं लूट जायेंगे। जिन्होंने तुम को हड़पा है, मैं उन को हड़प जाऊँगा;

17) क्योंकि मैं तुम्हें चंगा करूँगा और तुम्हारे घाव भर दूँगा - यह प्रभु की वाणी है- क्योंकि उन्होंने तुम्हें ’परित्यक्ता’ कहा हैः ’सियोन, जिसकी कोई परवाह नहीं करता!

18) “प्रभु यह कहता है- मैं याकूब के तम्बुओं को फिर खड़ा करूँगा। मैं उसके घरों पर दया करूँगा। खँडहरों पर नगर का पुननिर्माण होगा और अपने पुराने स्थान पर गढ़ का पुनरुद्धार होगा।

19) उन में से स्तुतिगान और आनन्दोत्सव की ध्वनि सुनाई देगी। मैं उनकी संख्या बढ़ाऊँगा, वह फिर कभी नहीं घटेगी। मैं उन्हें सम्मान प्रदान करूँगा, उनका फिर कभी तिरस्कार नहीं किया जायेगा।

20) उनकी सन्तति पहले-जैसी होगी और उनका समुदाय मेरे सामने बना रहेगा। मैं उनके सब अत्याचारियों को दण्ड दूँगा।

21) उन में से एक उनका शासक बनेगा और उनके बीच में से उनका राजा उत्पन्न होगा। मैं स्वयं उसे अपने पास बुलाऊँगा और वह मेरे पास आयेगा; क्योंकि कोई भी अपने आप मेरे पास आने का साहस नहीं करता। यह प्रभु की वाणी है।

22) तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।“

23) प्रभु की यह आँधी देखो! उसका क्रोध बवण्डर की तरह बह चला है। वह दुष्टों के सिर पर टूट पड़ेगा।

24) प्रभु का उग्र कोप तब तक नहीं दूर होगा, जब तक वह अपने मन के संकल्प कार्यान्वित और पूर्ण नहीं कर लेता। आने वाले दिनों में तुम यह बात समझोगे।



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