1) “यूदा का पाप लोहे की छेनी से लिखा गया है। वह उनके हृदय-पटल पर और उनकी वेदियों के कंगूरों पर हीरे की नोक से अंकित किया गया है।
2 (2-3) वे अपनी वेदियों और सदाबहार वृक्षों के नीचे एवं उँची पहाड़ियों पर अपने पूजा-स्तम्भों की उतनी चरचा करते हैं, जितनी अपनी सन्तानों की। मैं देश भर की ऊँची पहाड़ियों पर किये हुए तुम्हारे पापों के कारण तुम्हारी सम्पत्ति और तुम्हारे भण्डार लुटवाऊँगा ।
4) तुम को उस विरासत से हाथ धोना पड़ेगा, जिसे मैंने तुम को दिया। मैं तुम को अज्ञात देश में अपने शत्रुओं का दास बना दूँगा, क्योंकि मेरी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो कर सदा तुम्हारे विरुद्ध जलती रहेगी।“
5) प्रभु यह कहता है: “धिक्कार उस मनुष्य को, जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, जो निरे मनुष्य का सहारा लेता है और जिसका हृदय प्रभु से विमुख हो जाता है!
6) वह मरुभूमि के पौधे के सदृश है, जो कभी अच्छे दिन नहीं देखता। वह मरुभूमि के उत्तप्त स्थानों में- नुनखरी और निर्जन धरती पर रहता है।
7) धन्य है वह मनुष्य, जो प्रभु पर भरोसा रखता है, जो प्रभु का सहारा लेता है।
8) वह जलस्रोत के किनारे लगाये हुए वृक्ष के सदृश हैं, जिसकी जड़ें पानी के पास फैली हुई हैं। वह कड़ी धूप से नहीं डरता- उसके पत्ते हरे-भरे बने रहते हैं। सूखे के समय उसे कोई चिंता नहीं होती क्योंकि उस समय भी वह फलता हैं।“
9) मनुष्य का हृदय सब से अधिक कपटी और अविश्वसनीय हैं। उसकी थाह कौन ले सकता है?
10) “मैं प्रभु, मनुष्य का हृदय और अन्तरतम जानता हूँ। मैं हर एक को उसके आचरण और उसके कर्मों का फल देता हूँ“।
11) जो अन्याय से धन बटोरता है, वह उस तीतरी के सदृश हैं, जो दूसरों के अण्डे सेती हैं। उसकी सम्पत्ति उसके जीवन के मध्यकाल में उसका साथ छोड़ देती हैं और अपनी मृत्यु के समय वह मूर्ख प्रमाणित होगा।
12) जहाँ हमारा मन्दिर है, वह प्राचीन काल से एक ऊँचा महिमामय सिंहासन है।
13) प्रभु! इस्राएल की आशा! उन सबों को निराश होना पडेगा, जो तुझे त्याग देते हैं। जो तुझ से मुह मोड़ लेते हैं, उनके नाम धूल मे लिखे हुए हैं; क्योंकि वे प्रभु का, जीवन्त जल के स्रोत का त्याग करते हैं।
14) प्रभु मुझे स्वस्थ कर, तभी में स्वस्थ होऊँगा। मेरा उद्धार कर, तभी मेरा उद्धार होगा; क्योंकि मैं तेरी ही स्तुति करता हूँ।
15) वे मुझ से कहते रहते हैं, “कहाँ है प्रभु की वाणी? अब वह पूरी हो जाये!
16) मैंने उन पर विपत्ति ढाहने का तुझ से अनुरोध नहीं किया। तू जानता है कि मैंने विपत्ति के दिन की आशंका नहीं की। मैंने जो कुछ कहा, वह तेरे सामने ही प्रकट किया गया है।
17) तू मुझे आतंकित न कर, तू विपत्ति के दिन मेरा आश्रय है।
18) मेरे अत्याचारी लज्जित हों, किन्तु तू मुझे लज्जित न होने दे। वे डर से कांप उठें, किन्तु तू मेरी रक्षा कर। उन पर विपत्ति का दिन भेज, उनका पूरी तरह विनाश कर।
19) प्रभु ने मुझ से कहा, “तुम जा कर जनता के फाटक पर, जिस से यूदा के राजा आते-जाते हैं और येरूसालेम के अन्य फाटकों पर खड़़े हो कर
20) यह कहो, ’इन फाटकों से हो कर जाने वाले यूदा के राजाओं, यूदा के लोगो और येरूसालेम के सब निवासियो! प्रभु की वाणी सुनो।
21) प्रभु यह कहता हैं: इसका ध्यान रखो कि तुम विश्राम के दिन न तो किसी प्रकार का बोझ उठाओ और न उसे येरूसालेम के फाटकों के अन्दर ले आओ।
22) तुम विश्राम के दिन न तो अपने घरों से बाहर कोई बोझ ले जाओ और न कोई काम करो, बल्कि विश्राम का दिन पवित्र बनाये रखो। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को यही आदेश दिया।
23) किन्तु उन्होंने न उसे सुना और न उस पर ध्यान दिया। वे हठीले बने रहे - उन्होंने न तो सुनना चाहा और न शिक्षा ग्रहण करना।
24) प्रभु यह कहता हैः यादि तुम मेरे आदेश का पालन करोगे और विश्राम के दिन इस नगर के फाटकों के अन्दर बोझ नहीं ले आओगे, बल्कि विश्राम का दिन पवित्र बनाये रखते हुए उस दिन कोई काम नहीं करोगे,
25) तो दाऊद के सिंहासन पर बैठने वाले राजा अपने मन्त्रियों के साथ इस नगर के फाटकों से हो कर आते-जाते रहेंगे। वे, उनके मन्त्री, यूदा के लोग और येरूसालेम के निवासी रथों और घोड़ों पर सवारी करेंगे और यह नगर सदा आबाद रहेगा
26) तब यूदा के नगरों से, येरूसोम के आसपास के गावों से बेनयामीन के क्षेत्र से, निचले प्रदेश और नेगेब से आ कर होम-बलियाँ, शान्ति-बलियाँ, अन्न-बलियाँ, धूप और धन्यवाद की बलियाँ प्रभु के मन्दिर में चढ़ायेंगे।
27) परन्तु यदि तुम विश्राम-दिवस पवित्र रखने की मेरी आज्ञा का पालन नहीं करोगे और विश्राम-दिवस को बोझ उठा कर येरूसालेम के फ़ाटकों में प्रवेश करोगे, तो मैं उसकी फाटकों में ऐसी आग लगाऊँगा, जा येरूसालेम के महलों को भस्म कर डालेगी; वह कभी नहीं बुझेगी।“