1) एलीशा ने कहा, "प्रभु की वाणी सुनिए: प्रभु का कहना है कि कल इसी समय समारिया के फाटक पर आधा मन मैदा एक शेकल में और एक मन जौ एक शेकेल में बिकेगा"।
2) राजा जिस पदाधिकारी के हाथ का सहारा लिये था, उसने ईश्वर-भक्त को उत्तर दिया, "यदि प्रभु आकाश की खिड़कियाँ खोल भी दे, तो क्या यह बात सम्भव है?" एलीशा ने उत्तर दिया, "तुम अपनी आँखों देखोगे, परन्तु वह अन्न नहीं खा पाओगे"।
3) नगर-द्वार के पास चार कोढ़ी बैठे हुए थे। वे आपस में कहने लगे, "हम यहाँ बैठे-बैठे क्यों मरें?
4) यदि हम नगर में प्रवेश करेंगे, तो हम वहाँ मर जायेंगे; क्योंकि वहाँ अकाल है और यदि हम यहाँ रहेंगे, तो यही मर जायेंगे। चलो, हम अरामियों के पड़ाव में चलें। यदि वे हमें जीवित छोड़ देंगे, तो हम जीवित रहेंगे और यदि वे हमें मार डालेंगे, तो हम मर जायेंगे।"
5) सन्ध्या होने पर वे अरामियों के पड़ाव की ओर चल पड़े। अरामी पड़ाव के पास पहुँचने पर उन्हें वहाँ कोई दिखाई न पड़ा;
6) क्योंकि प्रभु के विधान से अरामी सैनिकों को रथों और घोड़ों की आवाज़, एक बड़ी सेना का तुमुलनाद सुनाई दिया, जिससे वे आपस में कहने लगे, "इस्राएल के राजा ने हम पर आक्रमण करने हित्तिसों और मिस्र के राजाओं को धन दे कर बुलाया है।"
7) इसलिए वे सन्ध्या समय अपने तम्बुओं, घोड़ों, गधों और शिविर को ज्यों-का-त्यों छोड़ कर अपने प्राण बचाने के लिए भाग खड़े हुए।
8) वे कोढ़ी पड़ाव पर पहुँच कर एक तम्बू में घुस गये, खाने-पीने लगे तथा चाँदी, सोना और वस्त्र ले कर उन्हें छिपाने के लिए चल दिये। इसके बाद वापस आ कर वे एक दूसरे तम्बू में घुसे और वहाँ से भी सब कुछ ले कर उसे छिपा दिया।
9) तब उन्होंने आपस में कहा, "हम जो कर रहे हैं, वह अच्छा नहीं है। आज शुभ सन्देश का दिन है। यदि हम सबेरे तक चुप बैठे रहते हैं, तो हमें दण्ड मिलेगा। चलो, हम नगर जा कर राजमहल को इसकी सूचना दें।"
10) इसलिए उन्होंने जा कर नगर-द्वार के पहरेदारों का बुलाया और कहा, "हम अरामियों के शिविर गये थे, किन्तु वहाँ न तो कोई मनुष्य दिखाई दिय और न किसी की आवाज़ सुनाई दी। केवल बँधे हुए घोड़े और गधे थे और तम्बू ख़ाली थे।"
11) नगर-द्वार के पहरेदारों ने चिल्ला कर राजमहल में इसकी सूचना पहुँचायी।
12) राजा ने रात को ही उठ कर अपने सैनिकों से कहा, "मैं तुम्हें बताता हूँ कि अरामियों ने हमारे विरुद्ध क्या किया है। वे जानते हैं कि हम भूखों मर रहे हैं, इस लिए उन्होंने अपना शिविर छोड़ कर अपने को खुले मैदान में छिपा रखा है। उनका विचार है कि जब वे नगर से बाहर निकलेंगे, तब हम उन्हें जीवित पकड़ लेंगे और खुद उनके नगर में घुस जायेंगे।"
13) इस पर उसके एक सेवक ने कहा, "कुछ लोग यहाँ के बचे हुए घोड़ों से पाँच घोड़े ले जायें। उनका हल वही होगा, जो यहाँ के समस्त इस्राएलियों का होगा, जिनकी जिनकी निश्चय ही मृत्यु हो जायेगी। हम उन्हें भेज दें और पता लगायें कि वहाँ क्या हो गया है।"
14) इस पर घोड़ों के साथ दो रथ लाये गये और राजा ने उन्हें यह कहते हुए अरामियों की सेना के पीछे भेजा, "जा कर पता लगाओ"।
15) वे यर्दन तक उनके पीछे गये। सारा मार्ग अस्त्रों और वस्त्रों से भरा पड़ा था, जिन्हें अरामियों ने भागते हुए फेंका था। दूतों ने वापस आ कर राजा को इसकी सूचना दी।
16) तब लोग अरामियों के शिविरों को लूटने के लिए निकल पड़े। अब जैसा कि प्रभु ने कहा था, आधा मन मैदा एक शेकेल में और एक मन जौ एक शेकेल में बिकने लगा।
17) राजा ने उस पदाधिकारी को नगर द्वार का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिसके हाथ का वह सहारा लिये था। किन्तु लोगों ने फाटक पर ही उसे रौंद दिया और उसकी मृत्यु हो गयी, जैसा कि ईश्वर-भक्त ने कहा था, जब राजा उसके घर आया था।
18) उस समय ईश्वर-भक्त ने राजा से कहा था, "कल इसी समय समारिया के फाटक पर आधा मन मैदा एक शेकेल में और एक मन जौ एक शेकेल में बिकेगा"
19) और उस अधिकारी ने ईश्वर-भक्त को उत्तर दिया था, "यदि प्रभु आकाश की खिड़कियाँ खोल भी दे, तो क्या यह बात सम्भव है?" उस सयम ईश्वर-भक्त ने उत्तर दिया था, "तुम अपनी आँखों देखोगे, परन्तु वह अन्न नहीं खा पाओगे"।
20) उसके साथ वैसा ही हुआ। लोगों ने फाटक पर उसे रौंदा और उसकी मृत्यु हो गयी।