📖 - समूएल का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 16

1) दाऊद पहाड़ की चोटी प़ार कर आगे बढ़ा ही था कि मफ़ीबोशेत का सेवक सीबा उस से मिलने आया। उसके पास कसे हुए कई गधे थे, जिन पर दो सौ रोटियाँ, किशमिश के सौ गुच्छे, एक सौ ग्रीष्मकालीन फल और एक कुप्पा अंगूरी थी।

2) राजा ने सीबा से पूछा, "इन्हें क्यों लाये हो?" सीबा ने उत्तर दिया, "ये गधे राजा के परिवार के लोगों की सवारी के लिए हैं, रोटियाँ और ग्रीष्म के फल युवकों के खाने के लिए हैं और अंगूरी उजाड़खण्ड में थके माँदे लोगों की प्यास बुझाने के लिए है।"

3) जब राजा ने पूछा कि "तुम्हारे स्वामी का पुत्र कहाँ है?", तब सीबा ने राजा को उत्तर दिया, "वह येरूसालेम में रह गया है। उसका कहना था कि आज इस्राएल के वंशज मुझे अपने पिता का राज्य लौटा देंगे।"

4) राजा ने सीबा से कहा, "देखो, अब मफ़ीबोशेत की सारी सम्पत्ति तुम्हारी हो गयी है।" सीबा ने उत्तर दिया, "मैं आपके पाँव पड़ता हूँ। मेरे स्वामी, राजा! मैं हमेशा के लिए आपकी दृष्टि में आपका कृपापात्र बना रहूँ।"

5) जब दाऊद बहूरीम पहुँचा, तो साऊल के वंश का एक व्यक्ति दौड़ता हुआ उसके पास आया। वह गेरा का शिमई नामक पुत्र था। वह कोसते हुए नगर से निकला

6) और दाऊद और उसके सेवकों पर पत्थर फेंकता जा रहा था, यद्यपि दाऊद के दायें और बायें सैनिक और अंगरक्षक चलते थे।

7) शिमई कोसते हुए चिल्लाता था, "दूर हो, रे हत्यारे! दूर हो, रे नीच!

8) तूने साऊल का राज्य छीन लिया, इसलिए प्रभु ने साऊल के घराने के सारे रक्त का बदला तुझे चुकाया है और तेरे पुत्र अबसालोम के हाथ में राज्य दिया है। रे हत्यारे! तू अपनी करनी का फल भोग रहा है।"

9) सरूया के पुत्र अबीशय ने राजा से कहा, "यह मुर्दा कुत्ता मेरे राजा और स्वामी को क्यों कोस रहा है? कृपया मुझे आज्ञा दें कि मैं जा कर उसका सिर उड़ा दूँ।"

10) राजा ने उत्तर दिया, "सरूया के पुत्रों! इससे तुमको क्या? यदि वह इसलिए दाऊद को कोसता है कि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है, तो कौन पूछ सकता है कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?"

11) इसके बाद दाऊद ने अबीशय और अपने सेवकों से यह कहा, "मैंने जिस पुत्र को जन्म दिया, वही मुझे मारना चाहता है, तो यह बेनयामीनवंशी ऐसा क्यों न करे? उसे कोसने दो, क्योंकि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है।

12) हो सकता है कि प्रभु मेरी दुर्गति देखकर आज के अभिशाप के बदले मुझे फिर सुख-शान्ति प्रदान करे।"

13) इसलिए दाऊद और उसके अनुयायी आगे बढ़ते जाते थे। उधर शिमई अभिशाप देता, पत्थर फेंकता और धूल उड़ाता हुआ उसके दूसरी ओर की पहाड़ी की ढलान पर जा रहा था।

14) राजा अपने साथ के सब लोगों के साथ थका-माँदा यर्दन के पास पहुँचा और उन्होंने वहाँ विश्राम किया।

15) इस बीच अबसालोम सब इस्राएलियों के साथ येरूसालेम पहुँच गया। उसके साथ अहीतोफ़ेल भी था।

16) दाऊद का मित्र अरकी हूशय अबसालोम के पास आया। हूशय ने अबसालोम से कहा, "राजा चिरायु हों! राजा चिरायु हों!"

17) अबसालोम ने हूशय से पूछा, "क्या अपने मित्र के प्रति यही तुम्हारी निष्ठा हैं?" तुम अपने मित्र के साथ क्यों नहीं गये?"

18) हूशय ने अबसालोम से कहा, "नहीं; जिसे प्रभु ने, इन लोगों ने और इस्राएल के सब मनुष्यों ने चुन लिया है, मैं उसी का हूँ और उसी के साथ रहूँगा।

19) फिर, मैं किसकी सेवा कर रहा हूँ। क्या मैं उसके पुत्र की सेवा न करूँ? जैसे मैंने आपके पिता की सेवा की है, वैसे ही मैं आपकी भी करूँगा।"

20) अबसालोम ने अहीतोफ़ेल से कहा, "मुझे परामर्श दो, हमें क्या करना चाहिए?"

21) अहीतोफ़ेल ने अबसालोम को उत्तर दिया, "जिन उपपत्नियों को आपके पिता ने महल की देखरेख करने छोड़ रखा है, उनके पास जाइए। तब, यदि सब इस्राएली सुनेंगे कि आप अपने पिता की दृष्टि में घृणित हो गये हैं, तो उन सबको ढारस मिलेगा, जिन्होंने आपका पक्ष लिया है।"

22) इसलिए छत पर अबसालोम के लिए एक तम्बू तान दिया गया और अबसालोम सब इस्राएलियों के जानते ही अपने पिता की उपपत्नियों के पास गया।

23) उस समय अहीतोफ़ेल का परामर्श ईश्वर की वाणी-सदृश समझा जाता था। दाऊद और अबसालोम, दोनों ही अहीतोफे़ल के सब परामर्श मूल्यवान् समझते थे।



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