1) "मैंने आशीर्वाद और अभिशाप, दोनों को तुम्हारे सामने रखा है। जब ये सब बातें तुम पर बीतेंगी, तो यदि तुम और तुम्हारी सन्तान उन सब देशों में, जहाँ तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम्हें निर्वासित किया होगा इन पर हृदय में विचार करोगे;
2) यदि तुम अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट आओगे; यदि तुम और तुम्हारी सन्तान सारे हृदय और सारी आत्मा से उन आज्ञाओं का पालन करेंगे, जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ,
3) तब तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हारे निर्वासितों को वापस ले जायेगा और तुम पर दया करेगा। तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम को उन सब राष्ट्रों से फिर एकत्र करेगा, जहाँ उसने तुम्हें बिखेर दिया होगा।
4) यदि तुम आकाश के सीमान्तों तक बिखर गये होगे, तो भी तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हें वहाँ से एकत्रित कर लेगा और वहाँ से वापस ले जाएगा।
5) प्रभु तुम्हारा ईश्वर तुम को उस देश में फिर ले जायेगा, जिस पर तुम्हारे पूर्वजों का अधिकार था। तुम उसे फिर अपने अधिकार में करोगे। वह तुम्हें अपने पूर्वजों से भी अधिक सम्पन्न और बहुसंख्यक बना देगा।
6) "तब प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हारा तथा तुम्हारे वंशजों के हृदय का ख़तना करेगा, जिससे तुम प्रभु, अपने ईश्वर को सारे हृदय और सारी आत्मा से प्रेम कर सको और जीवित रह सको।
7) प्रभु, तुम्हारे ईश्वर इन सब अभिशापों को तुम्हारे विरोधियों और तुम पर अत्याचार करने वाले शत्रुओं पर पड़ने देगा।
8) उस समय तुम फिर से प्रभु की बात पर ध्यान दोगे और मेरे द्वारा अपने को आज सुनायी गयी उसकी सारी आज्ञाओं का पालन करोगे।
9) तब प्रभु तुम्हें अपने सब कार्यों में पूरी सफलता प्रदान करेगा। वह तुम्हारी सन्तति की, तुम्हारे पशुओं की और तुम्हारी भूमि की उपज की वृद्धि करेगा; क्योंकि तुम्हें अपने पूर्वजों की तरह प्रभु की कृपादृष्टि प्राप्त होगी,
10) बषर्तें तुम अपने प्रभु-ईश्वर की बात मानो, इस संहिता के ग्रन्थ में लिखी हुई उसकी आज्ञाओं और नियमों का पालन करो और सारे हृदय तथा सारी आत्मा से प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ।
11) "क्योंकि मैं तुम लोगों को आज जो संहिता दे रहा हूँ, वह न तो तुम्हारी शक्ति के बाहर है और न तुम्हारी पहुँच के परे।
12) यह स्वर्ग नहीं है, जो तुमको कहना पड़े - कौन हमारे लिए स्वर्ग जा कर उसे हमारे पास लायेगा, जिससे हम उसे सुन कर उसका पालन करें?
13) और यह समुद्र के उस पार नहीं है, जो तुम को कहना पड़े - कौन हमारे लिए समुद्र पार कर उसे हमारे पास लायेगा, जिससे हम उसे सुन कर उसका पालन करें?
14) नहीं, वचन तो तुम्हारे पास ही है; वह तुम्हारे मुख और हृदय में हैं, जिससे तुम उसका पालन करो।
15) "आज मैं तुम लोगों के सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई दोनों रख रहा हूँ।
16) तुम्हारे प्रभु-ईश्वर की जो आज्ञाएँ मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ, यदि तुम उनका पालन करोगे, यदि तुम अपने प्रभु-ईश्वर को प्यार करोगे, उसके मार्ग पर चलोगे और उसकी आज्ञाओं विधियों तथा नियमों का पालन करोगे, तो जीवित रहोगे, तुम्हारी संख्या बढ़ती जायेगी और जिस देश पर तुम अधिकार करने जा रहे हो, उस में प्रभु-ईश्वर तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करेगा।
17) परन्तु यदि तुम्हारा मन भटक जायेगा, यदि तुम नहीं सुनोगे और अन्य देवताओं की आराधना तथा सेवा के प्रलोभन में पड़ जाओगे,
18) तो मैं आज तुम लोगों से कहे देता हूँ कि तुम अवश्य ही नष्ट हो जाओगे और यर्दन नदी पार कर जिस देश पर अधिकार करने जा रहो हो, वहाँ तुम बहुत समय तक नहीं रहने पाओगे।
19) मैं आज तुम लोगों के विरुद्ध स्वर्ग और पृथ्वी को साक्षी बनाता हूँ - मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवत रह सकें।
20) अपने प्रभु-ईश्वर को प्यार करो, उसकी बात मानो और उसकी सेवा करते रहो। इसी में तुम्हारा जीवन है और ऐसा करने से तुम बहुत समय तक उस देश में रह पाओगे, जिसे प्रभु ने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों - इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की है।"