📖 - विधि-विवरण ग्रन्थ

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अध्याय 11

1) “तुम अपने प्रभु-ईश्वर को प्यार करो और उसकी आज्ञाओं, नियमोंं, विधि निषेधों और आदेशों का सदा पालन करो।

2) आज अपने प्रभु-ईश्वर की शिक्षा याद रखो - मैं तुम्हारे बच्चों से यह नहीं कह रहा हूँ; उन्होंने तो प्रभु का अनुशासन नहीं देखा और इसका अनुभव नहीं किया -

3) लेकिन तुमने उसकी महिमा, उसका सामर्थ्य और उसका बाहुबल देखा। तुमने मिस्र में मिस्र के राजा फ़िराउन और उसके समस्त देश के विरुद्ध प्रभु के किये हुए चमत्कार और कार्य देखे।

4) उसने तुम्हारा पीछा करती हुई मिस्र की सेना का विनाश किया, उसने उसके घोड़े और रथ लाल समुद्र की लहरों में बहा दिये।

5) तुमने देखा कि यहाँ तक पहुँचने से पहले उसने उजाड़खण्ड में तुम्हारे लिये क्या-क्या किया।

6) तुमने देखा कि उसने रूबेनवंशी एलीआब के पुत्र दातान और अबीरान के साथ क्या किया, जब पृथ्वी फट गई थी और उसने अपने परिवारों को, उनके तम्बुओं और उनके सर्वस्व को इस्राएलियों के देखते-देखते निगल लिया।

7) तुमने अपनी आँखो से प्रभु द्वारा किये गये इन सारे महान् कार्यों को देखा।

8) “इसलिए तुम्हें उन सब आज्ञाओं का पालन करना चाहिए, जिन्हें मैं आज तुम्हें सुना रहा हूँ, जिससे तुम शक्तिशाली बनो और उस देश को जीत सको, जिसे तुम अपने अधिकार में लेने के लिए यर्दन पार कर रहे हो।

9) और उस देश में दीर्घ काल तक बस सको, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं। प्रभु ने उसे तुम्हारे पूर्वजों और उनके वंशजों को देने का शपथपूर्वक वचन दिया।

10) तुम अपने अधिकार में करने के लिए जिस देश में प्रवेश करने जा रहे हो, वह मिस्र के समान नहीं हैं, जिस से तुम निकल आये हो। वहाँ तुम बीज़ बोने के बाद पैरों से रहट चलाकर सिंचाई करते थे, जैसे सब्ज़ी की क्यारियों में की जाती है।

11) जो देश तुम उस पार अपने अधिकार में करोगे, पहाड़ियों और तराइयों का देश है और वह बादलों के जल से सींचा जाता है।

12) वह एक ऐसा देश है, जिसकी देखरेख प्रभु, तुम्हारा ईश्वर करता है और जिस पर वर्ष के प्रारम्भ से अन्त तक प्रभु का ध्यान रहता है।

13) “यदि तुम मेरी इन सब आज्ञाओं का, जिन्हें मैं आज तुम्हें सुना रहा हूँ, पालन करोगे और प्रभु, अपने ईश्वर को प्यार करोगे तथा सारे हृदय और सारी आत्मा से उसकी सेवा करोगे,

14) तो मैं तुम्हारे देश को शरत् और वसन्त में, ठीक समय पर वर्षा प्रदान करूँगा, जिससे तुम अनाज, अंगूरी और तेल की फ़सल बटोर सकोगे।

15) मैं तुम्हारे खेतों पर तुम्हारे पशुओं के लिए चारा उगाऊँगा। तुम भी खाकर तृप्त हो जाओगे।

16) सावधान रहो, तुम्हारा हृदय बहके नहीं और तुम पथभ्रष्ट हो कर पराये देवताओं की सेवा मत करो और उन्हें दण्ड़वत् मत करो।

17) ऐसा करोगे, तो तुम्हारे विरुद्ध प्रभु का कोप भड़क उठेगा और वह आकाश के द्वार बंद करेगा और तुम्हारे लिए वर्षा नहीं होगी। भूमि फ़सल पैदा नहीं करेगी और इस प्रकार वह रमणीय देश नष्ट हो जायेगा, जिसे प्रभु तुमको देने वाला है।

18) तुम लोग मेरे ये शब्द हृदय और आत्मा में रख लो। इन्हें निशानी के तौर पर अपने हाथ में और शिरोबन्द तरह अपने मस्तक पर बाँधे रखो।

19) इन्हें अपने बाल-बच्चों को सिखाते रहो और तुम चाहे घर में रहो, चाहे यात्रा करो - सोते-जागते समय इनका मनन करते रहो।

20) तुम इन्हें अपने घरों की चैखटों और फाटकों पर लिख दो,

21) जिससे तुम और तुम्हारे वंशज उस देश में रह सकें, जिसके विषय में प्रभु ने तुम्हारे पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया था कि जब तक आकाश और पृथ्वी बने रहेंगे वह तब तक के लिए उसे तुम्हें दे देगा।

22) "यदि तुम इन सब आदेशों का सावधानी से पालन करोगे, जिन्हें मैं आज तुम्हें सुना रहा हूँ, प्रभु, अपने ईश्वर को प्यार करोगे, उसके मार्गों पर चलते रहोगे और उसके अनुगामी बने रहोगे,

23) तो प्रभु उन सब राष्ट्रों को तुम्हारे सामने से भगा देगा और तुम अपने से अधिक महान् और शक्तिशाली राष्ट्रों का देश अपने अधिकार में करोगे।

24) प्रत्येक स्थान, जिस पर तुम पैर रखोगे, तुम्हारा हो जायेगा। तुम्हारे देश का विस्तार उजाड़खण्ड़ से लेबानोन तक और फ़रात नदी से ले कर पश्चिमी समुद्र तक होगा।

25) तुम्हारा सामना कोई भी नहीं कर सकेगा। तुम जिस भूमि पर अपने पाँव रखोगे, उस समस्त देश में प्रभु तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे प्रति भय और आतंक उत्पन्न करेगा, जैसी उसने तुम से प्रतिज्ञा की थी।

26) देखो! आज मैं तुम लोगों के सामने आशीर्वाद तथा अभिशाप, दोनों रख रहा हूँ।

27) प्रभु की जो आज्ञाएँ मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हूँ उनका पालन करोगे, तो तुम्हें आशीर्वाद प्राप्त होगा।

28) यदि तुम अपने प्रभु-ईश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे और जो मार्ग मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ, उसे छोड़ कर उन अन्य देवताओं के अनुयायी बन जाओगे, जिन्हें तुम अब तक नहीं जानते तो तुम्हें अभिशाप दिया जायेगा।

29) यदि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हें उस देश में ले जायेगा, जिस पर तुम अधिकार करने जा रहे हो, तो तुम गरिज़्ज़ीम पर्वत पर आशीर्वाद और एलाब पर्वत पर अभिशाप दोगे।

30) ये दोनों पर्वत यर्दन के उस पार, पश्चिम के मार्ग में अराबा में रहने वाले कनानियों के देश में, गिलआद के सामने, मोरे के बलूत के पास स्थित हैं।

31) अब तुम उस देश में प्रवेश करने के लिए यर्दन पार करने वाले हो, जिसे प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हें दे रहा है। जब उस पर तुम्हारा अधिकार हो जाये और तुम वहाँ बस जाओ,

32) तो मैं जो आदेश और नियम आज तुम्हें दे रहा हूँ उनका सावधानी से पालन करो।



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