📖 - विधि-विवरण ग्रन्थ

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अध्याय 05

1) मूसा ने सारे इस्राएली समुदाय को एकत्रित कर उन से कहा: “इस्राएल! सुनो। यही वे नियम और आदेश हैं, जिन्हें मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हूँ। इन्हें सीखो और इनका सावधानी से पालन करो।

2) प्रभु, हमारे ईश्वर ने होरेब पर्वत पर हमारे लिए एक विधान निर्धारित किया।

3) प्रभु ने हमारे पूर्वजों के लिए यह विधान निर्धारित नहीं किया था, बल्कि हमारे लिए, जो आज यहाँ उपस्थित हैं।

4) उस पर्वत पर प्रभु ने अग्नि में से तुम्हारे सामने तुम से बातें की थीं।

5) उस समय मैं तुम्हें प्रभु की बातें समझाने के लिए प्रभु और तुम्हारे बीच खड़ा था, क्योंकि उस अग्नि के भय से तुम पर्वत पर नहीं चढ़े। उसने यह कहा,

6) मैं प्रभु, तुम्हारा वही ईश्वर हूँ। मैं तुम को मिस्र, गुलामी के देश से निकाल लाया।

7) मेरे सिवा तुम्हारा कोई ईश्वर नहीं होगा।

8) अपने लिए कोई देव मूर्ति मत बनाओ। ऊपर आकाश में या नीचे पृथ्वीतल पर, या पृथ्वी के नीचे के जल में रहने वाले किसी भी प्राणी अथवा वस्तु की मूर्ति मत बनाओ।

9) उन मूर्तियों को दण्डवत् करके उनकी पूजा मत करो; क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर ऐसी बातें सहन नहीं करता। जो मुझ से बैर करते है; मैं तीसरी और चैथी पीढ़ी तक उनकी सन्तति को उनके अपराधों का दण्ड देता हूँ।

10) जो मुझे प्यार करते हैं और मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं, मैं हजार पीढ़ियों तक उन पर दया करता हूँ।

11) प्रभु अपने ईश्वर का नाम व्यर्थ मत लो; क्योंकि जो व्यर्थ ही प्रभु का नाम लेता है, प्रभु उसे अवश्य दण्डित करेगा।

12) विश्राम-दिवस के नियम का पालन करो और उसे पवित्र रखो, जैसा कि तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम्हें आदेश दिया है।

13) तुम छः दिन परिश्रम करते हुए अपना सारा काम-काज करो,

14) किन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के सम्मान का विश्राम-दिवस है। उस दिन न तो तुम कोई काम करो, न तुम्हारा पुत्र या पुत्री, न तुम्हारा दास या दासी, न तुम्हारा बैल, न तुम्हारा गधा या कोई पशु और न तुम्हारे यहाँ रहने वाला परदेशी। इस प्रकार तुम्हारा दास और तुम्हारी दासी तुम्हारी तरह विश्राम कर सकेंगे।

15) याद रखो कि तुम मिस्र देश में दास के रूप में रहते थे और तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हाथ बढ़ा कर, अपने भुजबल से, तुम को वहाँ से निकाल लाया है। यही कारण है कि तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम्हें विश्राम दिवस मनाने का आदेश दिया है।

16) ’अपने माता-पिता का आदर करो, जैसा कि प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने तुम को आदेश दिया है। तब तुम बहुत दिनों तक उस भूमि पर जीते रहोगे, जिसे वह तुम्हें प्रदान करेगा।

17) ’हत्या मत करो’।

18) ’व्यभिचार मत करो’।

19) ’चोरी मत करो’।

20) ’अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही मत दो।’

21) ’अपने पड़ोसी की पत्नी का लालच मत करो। अपने पड़ोसी के घर, उसके खेत, उसके दास, उसके दासी, उसके बैल, उसके गधे और उसकी किसी भी अन्य चीज़ का लालच मत करो’

22) “प्रभु ने यही बातें अग्नि, मेघखण्ड और अन्धकार में से ऊँचे स्वर में तुम्हारे सारे समुदाय से कही। उसने इतना ही कहा। उसने उन्हें पत्थर की दो पाटियों पर अंकित कर मुझे दिया।

23) जब पर्वत धधकती अग्नि में जल रहा था, तुमने अन्धकार में से प्रभु की वाणी सुनी थी और वंशों के मुखिया और नेता मेरे पास आये।

24) तुमने कहा, ’प्रभु हमारे ईश्वर ने हम पर अपनी महिमा प्रकट की और हमने अग्नि में से उसकी वाणी सुनी। आज हमने अनुभव किया कि ईश्वर ने मनुष्य के साथ बातें कीं और फिर भी मनुष्य जीवित रह गया।

25) यदि हम प्रभु, अपने ईश्वर की वाणी फिर सुन लेंगे, तो यह भयावह अग्नि हमें भस्म कर डालेगी और हमारी मृत्यु हो जायेगी। हम क्यों मरें?

26) ऐसा कौन मनुष्य है, जो अग्नि में से बोलते हुए जीवन्त ईश्वर की वाणी सुन कर जीवित बच गया हो?

27) इसलिए आप पास जा कर प्रभु, हमारे ईश्वर की वाणी सुनें। इसके बाद आप सब कुछ बता दें जो प्रभु हमारा ईश्वर आप से कहेगा और हम सुन कर उसका पालन करेंगे।’

28) “जब प्रभु ने मुझ से कही गयी तुम्हारी ये बातें सुनी, तो प्रभु ने मुझ से कहा, ’मैनें इन लोगों की बातें सुनी हैं। इन्होंने जो कुछ तुम से कहा है, वह ठीक है।

29) अच्छा होता, यदि ये लोग सदा मुझ पर श्रद्धा रखते और मेरी आज्ञाओं का पालन करने में तत्पर रहते। तब वे और उनके बाल बच्चे सदैव सकुशल रहते।

30) तुम उनके पास जा कर उन्हें अपने तम्बुओं में लौट जाने को कहो।

31) तुम यहाँ मेरे पास रहो। मैं तुम को सब नियम, आदेश और विधि-निषेध सुनाऊँगा, जिन्हें तुम उन्हें सिखाओगे, जिससे वे उस देश में उनका पालन करें, जिसे मैं उनके अधिकार में दूँगा।’

32) इसलिए तुम सावधानी से प्रभु, अपने ईश्वर की सब आज्ञाओं का पालन करते रहो और अपने कर्त्तव्य-पथ से तनिक भी विचलित नहीं हो जाओ।

33) तुम ठीक उसी मार्ग का अनुसरण करो, जिसके लिए प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हें आज्ञा दी है, जिससे तुम जीवन प्राप्त करो, तुम्हारा कल्याण हो और उस भूमि में तुम दीर्घ काल तक बने रहो, जिस पर तुम अधिकार करोगे।



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