1) इन बातों का सारांश यह है- हमारा एक ऐसा, प्रधानयाजक है, जो स्वर्ग में महामहिम के सिंहासन की दाहिनी ओर विराजमान हो कर
2) उस वास्तविक मन्दिर तथा तम्बू का सेवक है, जो मनुष्य द्वारा नहीं, बल्कि प्रभु द्वारा संस्थापित है।
3) प्रत्येक प्रधानयाजक भेंट और बलि चढ़ाने के लिए नियुक्त है, इसलिए यह आवश्यक है कि उसके पास चढ़ावे के लिए कुछ हो।
4) यदि ईसा अब तक पृथ्वी पर रहते, तो वे याजक भी नहीं होते; क्योंकि संहिता के अनुसार भेंट चढ़ाने के लिए याजक विद्यमान है,
5) यद्यपि वे एक ऐसे मन्दिर में सेवा करते हैं, जो स्वर्ग की वास्तविकता की प्रतिकृति और छाया मात्र है। यही कारण है कि जब मूसा तम्बू का निर्माण करने वाले थे, तो उन्हें ईश्वर की ओर से यह आदेश मिला-सावधान रहो; जो नमूना तुम्हें पर्वत पर दिखाया गया, उसी के अनुसार तुम सब कुछ बनाओ।
6) अब, जो धर्मसेवा मसीह को मिली है, वह कहीं अधिक ऊँची है; क्योंकि वे एक ऐसे विधान के मध्यस्थ हैं; जो श्रेष्ठतर है और श्रेष्ठतर प्रतिज्ञाओं पर आधारित हैं।
7) यदि पहला विधान परिपूर्ण होता, तो उसके स्थान पर दूसरे की क्या आवश्यकता थी?
8) ईश्वर उन लोगों की निन्दा करते हुए कहता है- प्रभु यह कहता हैः वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल के घराने के लिए और यूदा के घराने के लिए एक नया विधान निर्धारित करूँगा।
9) यह उस विधान की तरह नहीं होगा, जिसे मैंने उनके पूर्वजों के लिए उस समय निर्धारित किया था, जब मैंने उन्हें मिस्र से निकालने के लिए उनके हाथ थामे थे।
10) प्रभु यह कहता है: उन्होंने मेरे विधान का पालन नहीं किया, इसलिए मैंने भी उनकी सुध नहीं ली। प्रभु यह कहता है: वह समय बीत जाने के बाद मैं इस्राएल के लिए यह विधान निर्धारित करूँगा - मैं अपने नियम उनके मन में रख दूँगा, मैं उनके हृदय पर अंकित करूँगा। मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।
11) इसकी ज़रूरत नहीं रहेगी कि वे एक दूसरे को शिक्षा दें और अपने भाइयों से कहें, ’प्रभु का ज्ञान प्राप्त कीजिए’; क्योंकि छोटे और बड़े, सब-के-सब मुझे जानेंगे।
12) मैं उनके अपराध क्षमा कर दूँगा और उनके पापों को याद भी नहीं रखूँगा।
13) ईश्वर इस विधान को ’नया’ कह कर पुकारता है, इसलिए उसने पहला विधान रद्द कर दिया है। जो पुराना और जराग्रस्त हो गया है, वह लुप्त होने को है।