1) भाइयो! आप पवित्र हैं, एक स्वर्गीय बुलावे के सहभागी हैं! इसलिए आप हमारे विश्वास के प्रवर्तक और प्रधानयाजक ईसा पर विचार करें।
2) जिस तरह मूसा ईश्वर के घराने के सब कार्यों में ईमानदार रहे, उसी तरह ईसा भी ईश्वर के प्रति ईमानदार रहे, जिसने उन्हें नियुक्त किया।
3) घर की अपेक्षा घर का निर्माता अधिक सम्मान के योग्य समझा जाता है। इसी तरह मूसा की अपेक्षा ईसा अधिक सम्मान के योग्य समझे गये हैं;
4) क्योंकि हर घर किसी के द्वारा निर्मित किया जाता है, किन्तु ईश्वर सभी वस्तुओं का निर्माता है।
5) मूसा तो ईश्वर के घराने के सब कार्यों में ईमानदार रहें, किन्तु सेवक के रूप- भविष्य में ईश्वर के प्रकट होने वाले सन्देश के विषय में साक्ष्य देने के लिए,
6) जब कि मसीह, ईश्वर के घराने का अध्यक्ष बन कर, पुत्र के रूप में ईमानदार रहे। ईश्वर का घराना हम हैं, बशर्ते हम अन्त तक वह भरोसा और आशा अक्षुण्ण बनाये रखें, जिस पर हम गौरव करते हैं।
7) इसलिए आप पवित्र आत्मा के इस कथन पर ध्यान दें- ओह! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो,
8) अपना हृदय कठोर न कर लो, जैसा कि पहले, विद्रोह के समय, हुआ था।
9) उस दिन तुम्हारे पूर्वजों ने मरूभूमि में मुझे चुनौती दी और मेरी परीक्षा ली, यद्यपि उन्होंने चालीस वर्षों तक मेरे कार्य देखे थे।
10) इसलिए मैं उस पीढ़ी पर अप्रसन्न हो गया और मैंने कहा, "उनका हृदय भटकता रहा है। वे मेरे मार्ग जानना नहीं चाहते।"
11) मैंने क्रुद्ध होकर यह शपथ खायी: "वे मेरे विश्रामस्थान में प्रवेश नहीं करेंगे।"
12) भाइयो! आप सावधान रहें। आप लोगों में किसी के मन में इतनी बुराई और अविश्वास न हो कि वह जीवन्त ईश्वर से विमुख हो जाये।
13) जब तक वह ’आज’ बना रहता है, आप लोग प्रतिदिन एक दूसरे को प्रोत्साहन देते जायें, जिससे कोई भी पाप के फन्दे में पड़कर कठोर न बने।
14) हम तो मसीह के भागीदार बन गये हैं, बशर्ते हम अपना प्रारम्भिक विश्वास अन्त तक अक्षुण्ण बनाये रखें।
15) धर्मग्रन्थ कहता है- ओह! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो, अपना हृदय कठोर न कर लो, जैसा कि पहले, विद्रोह के समय हुआ था।
16) जिन लोगों ने वाणी सुन कर विद्रोह किया, वे कौन थे? निश्चय ही वे सब लोग, जो मूसा के नेतृत्व में मिस्र देश से निकल आये थे।
17) ईश्वर चालीस वर्षों तक किन लोगों पर अप्रसन्न रहा? निश्चय ही उन लोगों पर, जिन्होंने पाप किया था और जो मरूभूमि में ढेर हो गये थे।
18) उसने किन लोगों के विषय में शपथ खा कर कहा कि वे मेरे विश्रामस्थान में प्रवेश नहीं करेंगे? निश्चय ही उनके विषय में, जिन्होंने विश्वास करना अस्वीकार किया।
19) इस प्रकार हम देखते है कि वे अपने अविश्वास के कारण प्रवेश नहीं कर पाये।