1) ईसा ने यह भी कहा, "मैं तुम से यह कहता हूँ - यहाँ कुछ ऐसे लोग विद्यमान हैं, जो तब तक नहीं मरेंगे, जब तक वे ईश्वर का राज्य सामर्थ्य के साथ आया हुआ न देख लें"।
2) छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया।
3) उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता।
4) शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे।
5) उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, "गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।"
6) उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे।
7) तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।"
8) इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।
9) ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे।
10) उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि ’मृतकों में से जी उठने’ का अर्थ क्या हो सकता है।
11) उन्होंने ईसा से पूछा, "शास्त्री यह क्यों कहते हैं कि पहले एलियस को आना है?"
12) ईसा ने उत्तर दिया, "एलियस अवश्य पहले सब ठीक करने आता है। फिर मानव पुत्र के विषय में यह क्यों लिखा है कि वह बहुत दुःख उठायेगा और तिरस्कृत किया जायेगा?
13) मैं तुम से कहता हूँ - एलियस आ चुका है और उसके विषय में जैसे लिखा है, उन्होंने उसके साथ वैसा ही मनमाना व्यवहार किया है।"
14) जब वे शिष्यों के पास लौटे, तो उन्होंने देखा कि बहुत-से लोग उनके चारों ओर इकट्ठे हो गये हैं और कुछ शास्त्री उन स विवाद कर रहे हैं।
15) ईसा को देखते ही लोग अचम्भे में पड़ गये और दौड़ते हुए उन्हें प्रणाम करने आये।
16) ईसा ने उन से पूछा, "तुम लोग इनके साथ क्या विवाद कर रहे हो?"
17) भीड़ में से एक ने उत्तर दिया, "गुरुवर! मैं अपने बेटे को, जो एक गूँगे अपदूत के वश में है, आपके पास ले आया हूँ।
18) वह जहाँ कहीं उसे लगता है, उसे वहीं पटक देता है और लड़का फेन उगलता है, दाँत पीसता है और उसके अंग अकड़ जाते हैं। मैंने आपके शिष्यों से उसे निकालने को कहा, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।"
19) ईसा ने उत्तर दिया, "अविश्वासी पीढ़ी! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हें सहता रहूँ? उस लड़के को मेरे पास ले आओ।"
20) वे उसे ईसा के पास ले आये। ईसा को देखते ही अपदूत ने लड़के को मरोड़ दिया। लड़का गिर गया और फेन उगलता हुआ भूमि पर लोटता रहा।
21) ईसा ने उसके पिता से पूछा, "इसे कब से ऐसा हो जाया करता है?" उसने उत्तर दिया, "बचपन से ही।
22) अपदूत ने इसका विनाश करने के लिए इसे बार-बार आग अथवा पानी में डाल दिया है। यदि आप कुछ कर सकें, तो हम पर तरस खा कर हमारी सहायता कीजिए।"
23) ईसा ने उस से कहा, "यदि आप कुछ कर सकें! विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ सम्भव है।"
24) इस पर लड़के के पिता ने पुकार कर कहा, "मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अल्प विश्वास की कमी पूरी कीजिए"।
25) ईसा ने देखा कि भीड़ बढ़ती जा रही है, इसलिए उन्होंने अशुद्ध आत्मा को यह कहते हुए डाँटा, "बहरे-गूँगे आत्मा! मैं तुझे आदेश देता हूँ- इस से निकल जा और इस में फिर कभी नहीं घुसना"।
26) अपदूत चिल्ला कर और लड़के को मरोड़ कर उस से निकल गया। लड़का मुरदा-सा पड़ा रहा, इसलिए बहुत-से लोग कहते थे, "यह मर गया है"।
27) परन्तु ईसा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया।
28) जब ईसा घर पहुँचे, तो उनके शिष्यों ने एकान्त में उन से पूछा, "हम लोग उसे क्यों नहीं निकाल सके?"
29) उन्होंने उत्तर दिया, "प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से यह जाति नहीं निकाली जा सकती।"
30) वे वहाँ से चल कर गलीलिया पार कर रहे थे। ईसा नहीं चाहते थे कि किसी को इसका पता चले,
31) क्योंकि वे अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। ईसा ने उन से कहा, "मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जायेगा। वे उसे मार डालेंगे और मार डाले जाने के बाद वह तीसरे दिन जी उठेगा।"
32) शिष्य यह बात नहीं समझ पाते थे, किन्तु ईसा से प्रश्न करने में उन्हें संकोच होता था।
33) वे कफ़रनाहूम आये। घर पहुँच कर ईसा ने शिष्यों से पूछा, "तुम लोग रास्ते में किस विषय पर विवाद कर रहे थे?"
34) वे चुप रह गये, क्योंकि उन्होंने रास्ते में इस पर वाद-विवाद किया था कि हम में सब से बड़ा कौन है।
35) ईसा बैठ गये और बारहों को बुला कर उन्होंने उन से कहा, "जो पहला होना चाहता है, वह सब से पिछला और सब का सेवक बने"।
36) उन्होंने एक बालक को शिष्यों के बीच खड़ा कर दिया और उसे गले लगा कर उन से कहा,
37) "जो मेरे नाम पर इन बालकों में किसी एक का भी स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह मेरा नहीं, बल्कि उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है।"
38) योहन ने उन से कहा, "गुरुवर! हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता"।
39) परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, "उसे मत रोको; क्योंकि कोई ऐसा नहीं, जो मेरा नाम ले कर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निन्दा करें।
40) जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है।
41) "जो तुम्हें एक प्याला पानी इसलिए पिलायेगा कि तुम मसीह के शिष्य हो, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।
42) "जो इन विश्वास करने वाले नन्हों में किसी एक के लिए भी पाप का कारण बनता है, उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और वह समुद्र में फेंक दिया जाता।
43 (43-44) और यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लुले हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों हाथों के रहते नरक की न बुझने वाली आग में न डाले जाओ।
45 (45-46) और यदि तुम्हारा पैर तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लँगड़े हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों पैरों के रहते नरक में न डाले जाओ।
47) और यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल दो। अच्छा यही है कि तुम काने हो कर ही ईश्वर के राज्य में प्रवेश करो, किन्तु दोनों आँखों के रहते नरक में न डाले जाओ,
48) जहाँ उन में पड़ा हुआ कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
49) "क्योंकि हर व्यक्ति आग-रूपी नमक द्वारा रक्षित किया जायेगा।
50) "नमक अच्छी चीज़ है; किन्तु यदि वह फीका पड़ जाये, तो तुम उसे किस से छौंकोगे? "अपने में नमक बनाये रखो और आपस में मेल रखो।"