📖 - सन्त मारकुस का सुसमाचार

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अध्याय 01

योहन बपतिस्ता का उपदेश

1) ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह के सुसमाचार का प्रारम्भ।

2) नबी इसायस के ग्रन्थों में लिखा है- मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेजता हूँ। वह तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा।

3) निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज़- प्रभु का मार्ग तैयार करो; उसके पथ सीधे कर दो।

4) इसी के अनुसार योहन बपतिस्ता निर्जन प्रदेश में प्रकट हुआ, जो पापक्षमा के लिए पश्चाताप के बपतिस्मा का उपदेश देता था।

5) सारी यहूदिया और येरूसालेम के लोग योहन के पास आते और अपने पाप स्वीकार करते हुए यर्दन नदी में उस से बपतिस्मा ग्रहण करते थे।

6) योहन ऊँट के रोओं का कपड़ा पहने और कमर में चमड़े का पट्टा बाँधे रहता था। उसका भोजन टिड्डियाँ और वन का मधु था।

7) वह अपने उपदेश में कहा करता था, "जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से अधिक शक्तिशाली हैं। मैं तो झुक कर उनके जूते का फ़ीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ।

8) मैंने तुम लोगों को जल से बपतिस्मा दिया है। वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।"

प्रभु ईसा का बपतिस्मा

9) उन दिनों ईसा गलीलिया के नाज़रेत से आये। उन्होंने यर्दन नदी में योहन से बपतिस्मा ग्रहण किया।

10) वे पानी से निकल ही रहे थे कि उन्होंने स्वर्ग को खुलते और आत्मा को कपोत के रूप में अपने ऊपर आते देखा।

11) और स्वर्ग से यह वाणी सुनाई दी, "तू मेरा प्रिय पुत्र है। मैं तुझ पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।"

प्रभु ईसा की परीक्षा

12) इसके बाद आत्मा ईसा को निर्जन प्रदेश ले चला।

13) वे चालीस दिन वहाँ रहे और शैतान ने उनकी परीक्षा ली। वे बनैले पशुओं के साथ रहते थे और स्वर्गदूत उनकी सेवा-परिचर्या करते थे।

उपदेशों का प्रारंभ

14) योहन के गिरफ़्तार हो जाने के बाद ईसा गलीलिया आये और यह कहते हुए ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते रहे,

15) "समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।"

चार मछुओं का बुलावा

16) गलीलिया के समुद्र के किनारे से हो कर जाते हुए ईसा ने सिमोन और उसके भाई अन्द्रेयस को देखा। वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।

17) ईसा ने उन से कहा, "मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।"

18) और वे तुरन्त अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

19) कुछ आगे बढ़ने पर ईसा ने ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को देखा। वे भी नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।

20) ईसा ने उन्हें उसी समय बुलाया। वे अपने पिता ज़ेबेदी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

कफ़रनाहूम का अपदूतग्रस्त

21) वे कफ़नाहूम आये। जब विश्राम दिवस आया, तो ईसा सभागृह गये और शिक्षा देते रहे।

22) लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे; क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।

23) सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया,

24) "ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।"

25) ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, "चुप रह! इस मनुष्य से बाहर निकल जा"।

26) अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए उस से निकल गया।

27) सब चकित रह गये और आपस में कहते रहे, "यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वे अधिकार के साथ बोलते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।"

28) ईसा की चर्चा शीघ्र ही गलीलिया प्रान्त के कोने-कोने में फैल गयी।

पेत्रुस की सास

29) वे सभागृह से निकल कर याकूब और योहन के साथ सीधे सिमोन और अन्द्रेयस के घर गये।

30) सिमोन की सास बुख़ार में पड़ी हुई थी। लोगों ने तुरन्त उसके विषय में उन्हें बताया।

31) ईसा उसके पास आये और उन्होंने हाथ पकड़ कर उसे उठाया। उसका बुख़ार जाता रहा और वह उन लोगों के सेवा-सत्कार में लग गयी।

बहुतों को स्वास्थ्यलाभ

32) सन्ध्या समय, सूरज डूबने के बाद, लोग सभी रोगियों और अपदूतग्रस्तों को उनके पास ले आये।

33) सारा नगर द्वार पर एकत्र हो गया।

34) ईसा ने नाना प्रकार की बीमारियों से पीड़ित बहुत-से रोगियों को चंगा किया और बहुत-से अपदूतों को निकाला। वे अपदूतों को बोलने से रोकते थे, क्योंकि वे जानते थे कि वह कौन हैं।

गलीलिया का दौरा

35) दूसरे दिन ईसा बहुत सबेरे उठ कर घर से निकले और किसी एकान्त स्थान जा कर प्रार्थना करते रहे।

36) सिमोन और उसके साथी उनकी खोज में निकले

37) और उन्हें पाते ही यह बोले, "सब लोग आप को खोज रहे हैं"।

38) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "हम आसपास के कस्बों में चलें। मुझे वहाँ भी उपदेश देना है- इसीलिए तो आया हूँ।"

39) और वे उनके सभागृहों में उपदेश देते और अपदूतों को निकलाते हुए सारी गलीलिया में घूमते रहते थे।

कोढ़ी को स्वास्थ्य

40) एक कोढ़ी ईसा के पास आया और घुटने टेक कर उन से अनुनय-विनय करते हुए बोला, "आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं"।

41) ईसा को तरस हो आया। उन्होंने हाथ बढ़ाकर यह कहते हुए उसका स्पर्श किया, "मैं यही चाहता हूँ- शुद्ध हो जाओ"।

42) उसी क्षण उसका कोढ़ दूर हुआ और वह शुद्ध हो गया।

43) ईसा ने उसे यह कड़ी चेतावनी देते हुए तुरन्त विदा किया,

44) "सावधान! किसी से कुछ न कहो। जा कर अपने को याजकों को दिखाओ और अपने शुद्धीकरण के लिए मूसा द्वारा निर्धारित भेंट चढ़ाओ, जिससे तुम्हारा स्वास्थ्यलाभ प्रमाणित हो जाये"।

45) परन्तु वह वहाँ से विदा हो कर चारों ओर खुल कर इसकी चर्चा करने लगा। इस से ईसा के लिए प्रकट रूप से नगरों में जाना असम्भव हो गया; इसलिए वह निर्जन स्थानों में रहते थे फिर भी लोग चारों ओर से उनके पास आते थे।



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