1) फ़रीसी और सदूकी ईसा के पास आये और उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्होंने स्वर्ग की और का कोई चिह्न माँगा।
2) ईसा ने उत्तर दिया, "शाम को तुम लोग कहते हो- मौसम अच्छा रहेगा क्योंकि आकाश लाल है।
3) सुबह कहते हो- आज आँधी-पानी होगा, क्योंकि आकाश लाल और बादलों से घिरा हुआ है। यदि तुम लोग आकाश की सूरत पहचान सकते हो, तो समय के लक्षण क्यों नहीं पहचानते?
4) यह दुष्ट और विधर्मी पीढ़ी एक चिह्न माँगती है, परन्तु नबी योनस के चिह्न को छोड़ कर इसे और कोई चिह्न नहीं दिया जायेगा।" इस पर ईसा उन्हें छोड़ कर चले गये।
5) समुद्र के उस पार जाते समय शिष्य अपने साथ रोटियाँ लेना भूल गये थे।
6) इसलिए जब ईसा ने उन से कहा, "सावधान रहो। फ़रीसियों और सदूकियों के ख़मीर से बचते रहो",
7) तो वे आपस में कहने लगे, "हम रोटियाँ नहीं लाये, इसलिए यह ऐसा कहते हैं"।
8) यह जान कर ईसा ने उन से कहा, अल्पविश्वासियों! तुम लोग यह क्यों सोचते हो कि हमारे पास रोटियाँ नहीं हैं, इसलिए यह ऐसा कहते हैं?
9) क्या तुम अब तक नहीं समझते? क्या उन पाँच हजार लोगों के लिए पाँच रोटियाँ तुम्हें याद नहीं हैं? और तुमने कितने टोकरे भरे थे?
10) और उन चार हजार लोगों के लिए सात रोटियाँ, और तुमने कितने टोकरे भरे थे?
11) तुम लोग क्यों नहीं समझते कि मैंने रोटियों के बारे में यह नहीं कहा कि फ़रीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहो?
12) तब शिष्य समझ गये कि ईसा ने रोटी के ख़मीर से नहीं, बल्कि फ़रीसियों और सदूकियों की शिक्षा से सावधान रहने को कहा था।
13) ईसा ने कैसरिया फि़लिपी प्रदेश पहुँच कर अपने शिष्यों से पूछा, "मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?"
14) उन्होंने उत्तर दिया, "कुछ लोग कहते हैं- योहन बपतिस्ता; कुछ कहते हैं- एलियस; और कुछ लोग कहते हैं- येरेमियस अथवा नबियों में से कोई"।
15) इस पर ईसा ने कहा, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?
16) सिमोन पेत्रुस ने उत्तर दिया, "आप मसीह हैं, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र हैं"।
17) इस पर ईसा ने उस से कहा, "सिमोन, योनस के पुत्र, तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।
18) मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक इसके सामने टिक नहीं पायेंगे।
19) मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुंजियाँ प्रदान करूँगा। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।"
20) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग किसी को भी यह नहीं बताओ कि मैं मसीह हूँ।
21) उस समय से ईसा अपने शिष्यों को यह समझाने लगे कि मुझे येरूसालेम जाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों की ओर से बहुत दुःख उठाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा।
22) पेत्रुस ईसा को अलग ले गया और उन्हें यह कहते हुए फटकारने लगा, "ईश्वर ऐसा न करे। प्रभु! यह आप पर कभी नहीं बीतेगी।"
23) इस पर ईसा ने मुड़ कर, पेत्रुस से कहा "हट जाओ, शैतान! तुम मेरे रास्ते में बाधा बन रहो हो। तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।"
24) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, "जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले;
25) क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।
26) मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन गँवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?
27) क्योंकि मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा-सहित आयेगा और वह प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्म का फल देगा।
28) मैं तुम से कहता हूँ - यहाँ कुछ ऐसे लोग विद्यमान हैं, जो तब तक नहीं मरेंगे, जब तक वे मानव पुत्र को राजकीय प्रताप के साथ आता हुआ न देख लें।"