📖 - नहूम का ग्रन्थ (Nahum)

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अध्याय 01

1) निनीवे-सम्बन्धी दिव्यवाणी। एलकीश के नहूम के दर्शन का ग्रंथ।

2) प्रभु-ईश्वर ईर्यालु और प्रतिशोधी है, प्रभु-ईश्वर बदला लेता और बात-बात में क्रुद्ध हो जाता है। प्रभु-ईश्वर अपने शत्रुओं के विरुद्ध प्रतिशोध करता है। और बैरियों से आगबबूला हो उठता है।

3) प्रभु-ईश्वर देर से क्रोध करता है, किन्तु शक्तिपुंज है। निस्सन्देह प्रभु-ईश्वर दोषियों को दण्ड दिये बिना नहीं छोडेगा। वह बवण्डर और आँधी से घिरे हुए आगे बढता है, मेघ-दल उसके चरणों की धूल है।

4) वह समुद्र को डाँट कर सुखा देता है और उसके आदेश से नदियाँ सूखती है। उसकी नज़र से बाशान का कछार और करमेल की हरियाली मुरझा जाते हैं, एवं लेबानोन के फूल कुम्हला जाते हैं।

5) उसके सामने पर्वत काँप उठते हैं, और पहाडियाँ हिलने लगती हैं। उसके सम्मुख पृथ्वी पर ही नहीं, सारी सृष्टि में हलचल मच जाती है।

6) उसके कोप के सामने कौन टिक सकता है? कौन उसकी क्रोधग्नि सह सकता है? उसका रोष आग की तरह प्रज्वलित होता है, जिससे चट्टानें भी फट जाती हैं।

7) प्रभु कलयाणकारी है, संकट काल में वही आश्रय है; वह अपने शरणागत का ध्यान रखता है और डूबते का सहारा बनता है।

8) वह अपने विरोधियों का काम तमाम कर देता है और शत्रुओं को अधोलोक में ढकेल देता है।

9) प्रभु के विरुद्ध क्या षडयंत्र रचते हो? वह उसे पूरी तरह कुचल देगा, जिससे उसे अपने शत्रुओं से दुबारा निपटने का आवश्यकता न पडे।

10) जिस तरह आग में झाड़-झंखाड या भूसा जल कर भस्म होते हैं, उसी तरह शत्रु सर्वथा नष्ट हो जायेंगे।

11) तुम में से एक ऐसा कुटिल मन का धूर्त उत्पन्न हुआ था, जिसने प्रभु-ईश्वर के विरुद्ध कुचक्र रचा था।

12) प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः वे कितने भी शक्तिशाली और सुसंघठित क्यों न हों, प्रभु के कुठाराघात से उनका सर्वनाश हो जायेगा। मैं तुझे सता चुका हूँ, आगे को नहीं सताऊँगा।

13) अब मैं तेरी गरदन पर रखे जूए को तोडूँगा और तेरी बेडियाँ खोल दूँगा।

14) तेरे लिए प्रभु-ईश्वर की आज्ञाः तेरा नामोनिशान भी नहीं रहेगा; मैं तेरे मन्दिरों को खुदी और ढली मूतियाँ हर लूँगा और तेरी कब्र शापित कर दूँगा।



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