1) प्रभु! यह स्मरण कर कि हम पर क्या बीती है। देख, हमारे अपमान पर ध्यान देने की कृपा कर।
2) हमारा दायभाग अपरिचितों के हाथ चला गया है, हमारे घर विदेशियों के हाथ।
3) हम अनाथ और पितृहीन हो गये हैं; हमारी माताएँ विधवाओं-जैसी हैं।
4) हमें अपने पीने के पानी का मूल्य देना पड़ता है; अपनी लकडी का भी दाम चुकाना पड़ता है।
5) हमारी गर्दनों पर जूआ रख कर हमें निर्दयता से हाँका जाता है। हम थक गये हैं, हमें विश्राम करने नहीं दिया जाता।
6) हमने भरपूर रोटी पाने के लिए अपने को मिस्र और अस्सूर के हवाले कर दिया है।
7) हमारे पूर्वजों ने पाप किया और वे मर चुके हैं और उनके अपराधों का फल हम भोग रहे हैं।
8) दास हम पर शासन करते हैं। ऐसा कोई नहीं, जो हमें उनके हाथ से छुड़ाता है।
9) उजाड़खण्ड की तलवार की आशंका के बावजूद हम अपने जीवन का संकट झेल कर रोटी ले आते हैं।
10) अकाल के जलते ताप से हमारी चमड़ी भट्टी की तरह गर्म हो गयी है।
11) सियोन में स्त्रियों का शीलभंग किया जाता है, यूदा के नगरों में कुमारी कन्याओं का।
12) राज्याधिकारी उनके हाथ से फाँसी पर लटका दिये गये है; वृद्धजनों को कोई आदर नहीं दिया जाता।
13) नवयुवकों को चक्की चलाने को बाध्य किया गया है और लकड़ी के गट्ठरों के भार से लड़के लड़खड़ाते हैं।
14) वृद्ध लोगों ने नगर का द्वार, युवा लोगों ने अपना गाना-बजाना छोड़ दिया है।
15) हमारे हृदय का उल्लास समाप्त हो गया है; हमारा नृत्य शोक में बदल गया है।
16) हमारे मस्तक से मुकुट गिर गया है। हम को धिक्कार, क्योंकि हमने पाप किया है!
17) इसलिए हमारा हृदय दुःखी हो गया है; इसलिए हमारी आँखें धुँधली हो गयी है;
18) क्योंकि सियोन पर्वत वीरान हो गया है; उस पर सियार विचरण करते हैं।
19) किन्तु प्रभु! तू सदा राज्य करता है। तेरा सिंहासन पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता हैं।
20) तू हमें सदा के लिए क्यों भूल जायेगा, क्या तू हमारा परित्याग इतने लंबे समय तक करेगा?
21) प्रभु! तू हमें अपनी ओर अभिमुख कर और हम लौट आयेंगे। हमारे पहले-जैसे दिन हमें फिर प्रदान कर।
22) क्या तूने हमें सदा के लिए त्याग दिया है? क्या तू हम पर इतना अधिक क्रुद्ध है?