📖 - सुलेमान का सर्वश्रेष्ठ गीत (Song of Songs)

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अध्याय 04

1) मेरी प्रिये! तुम कितनी सुन्दर हो! ओह! कितनी सुन्दर! घूँघट के भीतर से झाँकती तुम्हारी आँखे कपोतियों-जैसी हैं। तुम्हारी अलकें गिलआद पर्वत से उतरती हुई बकरियों के झुण्ड-जैसी हैं।

2) तुम्हारे दाँत अभी-अभी मुँड़ कर धोये हुए रेवड़ के सदृश प्रत्येक दाँत का अपना जोड़ा है, उन में एक भी अकेला नहीं।

3) तुम्हारे अधर लाल फीते के सदृश है, तुम्हारी जीभ सुन्दर है। घूँघट में झलकाता तुम्हारा कपोल दाड़िम की फाँक-जैसा है।

4) तुम्हारी ग्रीवा दाऊद की मीनार के सदृश है जो विजयस्मारकों के लिए निर्मित है। उस पर हजारों ढालें, योद्धाओें की ढालें लटक रही हैं।

5) तुम्हारे उरोज दो मृग-षावकों के सदृश हैं, चिकारे के जुड़वाँ शावकों के सदृश जो सोसनों के खेत में चरते हैं।

6) प्रभात के पहले, अँधेरा मिटने के पूर्व मैं गन्धरस के पर्वत तथा लोबान की पहाड़ी पर जाऊँगा।

7) मेरी प्रेयसी! तुम सर्वांगसुन्दर हो, तुम मैं कहीं कोई दोष नहीं।

8) मेरी वधू! तुम लेबानोन से मेरे साथ चलोगी, तुम मेरे साथ लेबानोन से चलोगी। तुम अमाना के शिखर, सेनीर और हेरनान की चोटी से, सिंहो की माँदों और तेन्दुओें के पर्वतों से उतरोगी।

9) मेरी बहन, मेरी वधू! तुमने मेरा हृदय चुरा लिया है। तुमने एक ही चितवन से, अपनी माला की एक ही मणि से मेरा हृदय चुरा लिया है।

10) तुम्हारा प्रेमालिंगन कितना रोमांचक है! तुम्हारा प्यार अंगूरी से भी आह्लादक है। तुम्हारे इत्र की महक किसी भी अंगराग से अधिक सुखद है।

11) मेरी वधू! तुम्हारे अधरों से अमृत टपकता है; तुम्हारी जिह्वा के नीचे मधु और दुग्ध का निवास है। तुम्हारे वस्त्रों का सौरभ लेबानोन की सुगन्ध-जैसा है।

12) मेरी बहन, मेरी वधू! तुम एक बन्द पुष्पवाटिका हो; तुम एक परिबद्ध निर्झर, एक मुहरबन्द जलस्रोत हो।

13) तुम उत्तम फलों से लदे अनार वृक्षों की फलती-फूलती वाटिका हो, जिसमें मेंहदी और जटामांसी हैं,

14) जटामांसी और केसर मुष्क और दारचीनी, हर जाति के लोबान-वृक्ष, गन्धरस और अगरू तथा सभी सर्वोत्तम मसाले।

15) मैं पुष्पवाटिका की निर्झरिणी, लेबानोन से बहते जलस्रोत का कूप हूँ।

16) उत्तरी पवन! जागो! दक्षिणी पवन! आओ! मेरी पुष्पवाटिका पर बह जाओ, जिससे उसकी सुगन्ध सब ओर फैल जाये। मेरी प्रियतम को अपनी वाटिका में आने और उसके सुमधुर फल चखने दो।



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