📖 - एज़्रा का ग्रन्थ

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अध्याय 09

1) इसके बाद नेताओं ने मेरे पास आ कर मुझ से कहा, "इस्राएली, याजक और लेवी देश के शेष लोगों से, अर्थात् कनानी, हित्ती, परिज़्ज़ी, यबूसी, अम्मोनी, मोआबी, मिस्री और अमोरी लोगों के घृणित रीति-रिवाजों से अलग नहीं रहे।

2) उन्होंने उनकी पुत्रियों के साथ अपना तथा अपने पुत्रों का विवाह किया, जिससे पवित्र जाति का इस देश के लोगों से मिश्रण हो गया है। इस विश्वासघात के कार्य में नेता और प्रतिष्ठित व्यक्ति सबसे आगे रहे हैं।"

3) यह सुन कर मैंने अपने वस्त्र और अपनी चादर फाड़ डाली, अपने सिर और दाढ़ी के बाल नोच डाले और अवाक् हो कर बैठ गया।

4) इसके बाद वे सब, जो निर्वासितों के विश्वासघात के कारण ईश्वर के कोप से डरते थे, मेरे पास आये और मैं सन्ध्याकाल से यज्ञ तक अवाक् बैठा था।

5) सन्ध्याकालीन यज्ञ के समय मैं अपने विषाद की अवस्था से जागा। मेरा कुरता और मेरी चादर फटी हुई थी। मैं घुटनों के बल गिर कर और अपने प्रभु-ईश्वर की ओर हाथ फैला कर

6) इस प्रकार प्रार्थना करने लगाः "मेरे ईश्वर! मैं इतना लज्जित हूँ कि तेरी ओर दृष्टि लगाने का साहस नहीं हो रहा है, क्योंकि हम अपने पापों में डूब गये हैं और हमारा दोष आकाश छूने लगा है।

7) अपने पूर्वजों के समय से आज तक हम भारी अपराध करते आ रहे हैं। अपने पापों के कारण हम, हमारे राजा और हमारे याजक विदेशी राजाओं के हाथ, तलवार, निर्वासन, लूट और अपमान के हवाले कर दिये गये, जैसी कि आज हमारी दुर्गति है।

8) अब हमारे प्रभु-ईश्वर ने हम पर थोड़े समय के लिए दया प्रदर्शित की। उसने कुछ लोगों को निर्वासन से वापस बुलाया और हमें अपने पवित्र स्थान में शरण दी है। उसने हमारी आँखों को फिर ज्योति प्रदान की और हमें हमारी दासता में विश्राम दिया है;

9) क्योंकि हम दास ही हैं, किन्तु हमारे ईश्वर ने हमें हमारी दासता में नहीं त्यागा और हमें फ़ारस के राजाओं का कृपापात्र बनाया है। उन्होंने हमें हमारे ईश्वर का मन्दिर फिर बनाने और उसका पुनरुद्धार करने की अनुमति दी और यूदा तथा येरूसालेम में सुरक्षित स्थान दिलाया हैं।

10) "हमारे ईश्वर! इसके बाद हम अब क्या कहें? हमने तेरी उन आज्ञाओं का तिरस्कार किया,

11) जिन्हें तूने अपने सेवकों, नबियों द्वारा हमें दिया था, ’वह देश एक दूषित देश है, जिस पर तुम अधिकार करने जा रहे हो। उस देश के निवासियों ने उसे अपने घृणित कार्यों से दूषित किया और एक छोर से दूसरे छोर तक अपने अधर्म से भर दिया है।

12) इसलिए तुम न तो अपनी पुत्रियों का विवाह उनके पुत्रों के साथ करोगे और न अपने पुत्रों का उनकी पुत्रियों के साथ। तुम न तो कभी उनके साथ सन्धि करोगे और न समृद्धि में उनकी सहायता करोगे। ऐसा करने से तुम शक्तिशाली बनोगे, उस देश की अच्छी फ़सलें खाओगे और उसे अपनी सन्तानों को चिरस्थायी विरासत के रूप में दे सकोगे।’

13) "हमारे ईश्वर! इन सब विपत्तियों के बाद, जो हमारे कुकर्मों और बड़े-बड़े अपराधों के कारण हम पर बीती हैं, हम अपने अपराधों को देखते हुए समझते हैं कि तूने हमें हलका दण्ड दिया है और हमारे राष्ट्र के कुछ लोगों को विनाश से बचा लिया है।

14) अब क्या हम फिर तेरी आज्ञाएँ भंग करें और उन लोगों से विवाह करें, जो ऐसे घृणित कार्य करते हैं? और यदि हम ऐसा करेंगे, तो क्या तेरा क्रोध हम पर इस प्रकार नहीं भड़केगा कि हम में कोई नहीं बचेगा?

15) प्रभु! इस्राएल के ईश्वर! तू दयामय है, इसीलिए आज भी हम में कुछ लोग जीवित रह गये हैं। हम अपराधी हो कर तेरे सामने उपस्थित हैं, हालांँकि हम में कोई अपने अपराध के कारण तेरे समाने खड़ा होने योग्य नहीं है।"



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