1) फिर भी इस्राएलियों में झूठे नबी भी प्रकट हुए और इसी प्रकार आप लोगों में झूठे आचार्य उठ खड़े होंगे, जो गुप्त रूप से अनर्थकारी भ्रामक धारणाओं का प्रचार करेंगे। वे उन प्रभु को भी अस्वीकार करेंगे, जिन्होंने उनका उद्धार किया और इस प्रकार वे शीघ्र ही अपने विनाश का कारण बनेंगे।
2) बहुत-से लोग उनकी विलासिता का अनुसरण करेंगे और उनके कारण सत्य के मार्ग की निन्दा होगी।
3) वे लोभ के कारण अपनी मनगढ़न्त बातों द्वारा आप से अनुचित लाभ उठायेंगे। उनकी दण्डाज्ञा का निर्णय बहुत पहले हो चुका है और उनका विनाश निकट है।
4) क्योंकि ईश्वर ने पापी स्वर्गदूतों को भी क्षमा नहीं किया, बल्कि उन्हें नरक के अंधेरे गर्तों में डाल कर न्याय के लिए रख छोड़ा।
5) उसने पुरातन संसार को भी नहीं बचाया, बल्कि विधर्मियों के संसार को जलप्रलय द्वारा नष्ट किया, हालांकि उसने सात अन्य व्यक्तियों के साथ धार्मिकता के प्रचारक नूह को सुरक्षित रखा।
6) ईश्वर ने उन लोगों को चेतावनी देने के लिए, जो भविष्य में अर्धम करना चाहेंगे, सोदोम और गोमोरा नामक नगरों को जलाया और उनका सर्वनाश किया;
7) किन्तु उसने धर्मी लोत को बचाया, जो उन दुष्ट लोगों के व्यभिचारपूर्ण आचरण के कारण दुःखी था।
8) वह धर्मात्मा उन लोगों के बीच रह कर दिन पर दिन उनके कुकर्म देखता और सुनता था, इसलिए उसकी धर्मपरायण आत्मा को घोर कष्ट होता था।
9) इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रभु धर्मात्माओं को संकटों से छुड़ाने और विधर्मियों को दण्ड देने के लिए उन्हें न्याय के दिन तक रख छोड़ने में समर्थ है,
10) विशेष रूप से उन लोगों को, जो अशुद्ध वासनाओं के वशीभूत होकर भोग-विलास में जीवन बिताते और प्रभुत्व को तुच्छ समझते हैं। वे उद्धत एवं घमण्डी हैं और स्वर्गीय सत्वों की निन्दा करने से नहीं डरते,
11) जब कि स्वर्गदूत, जो उन लोगों से कहीं अधिक समर्थ और शक्तिशाली हैं, प्रभु के सामने उनके विरुद्ध निन्दात्मक अभियोग नहीं लगाते।
12) किन्तु वे विवेकहीन पशुओं के समान हैं, जो शिकार बनने और मारे जाने के लिए पैदा होते हैं। वे ऐसी बातों की निन्दा करते हैं जिन्हें नहीं समझते। वे पशुओं की तरह नष्ट हो जायेंगे
13) और इस प्रकार अपने अधर्म का दण्ड भोगेंगे। वे दिन-दोपहर भोग-विलास में बिताना पसन्त करते हैं। वे कलंकित एवं दूषित हैं और उन्हें आप लोगों के साथ दावत उड़ाते समय कपटपूर्ण बातें करने में आनन्द आता है।
14) उनकी आंखें व्यभिचार से भरी हैं और उन में सदैव पाप की लालसा बनी हुई है। वे दुर्बल आत्माओं को लुभाते हैं। उनका मन लोभ में प्रशिक्षित हो चुका है। वह अभिशप्त सन्तति
15) सन्मार्ग छोड़ कर बोसोर के पुत्र बलआम के मार्ग पर भटक गयी है। बलआम अधर्म की मज़दूरी चाहता था,
16) किन्तु उसे अपने अपराध की डाँट सुननी पड़ी। एक गूंगा गधा मनुष्य की तरह बोलने लगा और इस प्रकार नबी का पागलपन नियन्त्रित हो गया।
17) वे लोग सूखे जलस्त्रोत और आंधी द्वारा उड़ाये हुए बादल हैं। गहरा अन्धकार उनके लिए रख छोड़ा गया है।
18) जो लोग अभी-अभी भ्रान्ति का जीवन बिताने वालों से अलग हुए हैं, वे उन्हें व्यर्थ शब्दाडम्बर और शरीर की घृणित वासनाओं द्वारा लुभाते हैं।
19) वे उन्हें स्वतन्त्रता का प्रलोभन देते हैं, जब कि वे स्वयं भ्रष्टता के दास हैं; क्योंकि जो जिसके अधीन है, वह उसी का दास है।
20) जो व्यक्ति हमारे प्रभु एवं मुक्तिदाता ईसा मसीह का ज्ञान प्राप्त कर संसार के दूषण से बच गये, वे यदि फिर उसी में फँस कर उसके अधीन हो जाते हैं तो उनकी यह पिछली दशा पहली से भी बुरी होती है।
21) ऐसे लोग अपने को प्रदत्त पवित्र आदेशों का ज्ञान प्राप्त कर उन से मुंह फेर लेते हैं। उनके लिए अच्छा यही होता है कि उन्हें कभी धर्म-मार्ग का ज्ञान प्राप्त ही नहीं होता।
22) उन लोगों में यह कहावत चरितार्थ होती है -कुत्ता अपने ही वमन के पास लौटता है और ’नहलायी हुई सूअरी फिर कीचड़ में लोटती है’।