1) भाइयो! अन्त में यह, आप हमारे लिए प्रार्थना करें, जिससे प्रभु का वचन आप लोगों के यहाँ की तरह शीघ्र ही फैल जाये तथा समादृत हो,
2) और यह भी कि टेढ़े तथा दुष्ट लोग हमारे कार्य में बाधा न डालें, क्योंकि सब को विश्वास का वरदान नहीं दिया जाता है।
3) परन्तु प्रभु सत्य-प्रतिज्ञ हैं। वह आप लोगों को सुदृढ़ बनाये रखेंगे और बुराई से आपकी रक्षा करेंगे।
4) हम को, प्रभु में, आप लोगों पर पूरा भरोसा है कि आप हमारी आज्ञाओं का पालन कर रहे हैं और करते रहेंगे।
5) प्रभु आपके हृदयों को ईश्वर के प्रेम तथा मसीह के धैर्य की ओर अभिमुख करें।
6) भाइयों! हम आप को प्रभु ईसा मसीह के नाम पर आदेश देते हैं कि आप उन भाइयों से अलग रहें, जो काम नहीं करते और उस परम्परा के अनुसार नहीं चले, जो आप लोगों को मुझ से प्राप्त हुई।
7) आप लोगों को मेरा अनुकरण करना चाहिए- आप यह स्वयं जानते हैं। आपके बीच रहते समय हम अकर्मण्य नहीं थे।
8) हमने किसी के यहाँ मुफ़्त में रोटी नहीं खायी, बल्कि हम बड़े परिश्रम से दिन-रात काम करते रहे, जिससे आप लोगों में किसी के लिए भी भार न बनें।
9) इमें इसका अधिकार नहीं था- ऐसी बात नहीं, बल्कि हम आपके सामने एक आदर्श रखना चाहते थे, जिसका आप अनुकरण कर सकें।
10) आपके बीच रहते समय हमने आप को यह नियम दिया- ’जो काम करना नहीं चाहता, उसे भोजन नहीं दिया जाये’।
11) अब हमारे सुनने में आता है कि आप में कुछ लोग आलस्य का जीवन बिताते हैं। वे स्वयं काम नहीं करते और दूसरों के काम में बाधा डालते हैं।
12) हम ऐसे लोगों को प्रभु ईसा मसीह के नाम पर यह आदेश देते हैं और उन से अनुरोध करते हैं कि वे चुपचाप काम करते रहें और अपनी कमाई की रोटी खायें।
13) भाइयो! आप लोग भलाई करते हुए हिम्मत न हारें।
14) यदि कोई इस पत्र में दिये हुए हमारे आदेश का पालन नहीं करे, तो उस पर नज़र रखें और उस से सम्बन्ध तोड़ लें, जिससे वह अपने आचरण पर लज्जित हो।
15) आप उनके साथ शत्रु-जैसा व्यवहार नहीं करें, बल्कि उसे भाई की तरह समझायें।
16) शान्ति का प्रभु स्वयं आप लोगों को हर समय और हर प्रकार शान्ति प्रदान करता रहे! प्रभु आप सब के साथ हो!
17) मैं, पौलुस, अपने हाथ से यह नमस्कार लिख देता हूँ। यह मेरे सब पत्रों की पहचान है। यह मेरी लिखावट है।
18) हमारे प्रभु ईसा मसीह की कृपा आप सब पर बनी रहे!