📖 - सन्त मत्ती का सुसमाचार

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 18

1) उस समय शिष्य ईसा के पास आ कर बोले, "स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा कौन है?"

2) ईसा ने एक बालक को बुलाया और उसे उनके बीच खड़ा कर

3) कहा, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - यदि तुम फिर छोटे बालकों-जैसे नहीं बन जाओगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करोगे।

4) इसलिए जो अपने को इस बालक-जैसा छोटा समझता है, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा है।

5) और जो मेरे नाम पर ऐसे बालक का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है।

6) "जो मुझ पर विश्वास करने वाले उन नन्हों में एक के लिए भी पाप का कारण बनता है, उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और वह समुद्र में डुबा दिया जाता।

7) प्रलोभनों के कारण संसार को धिक्कार! प्रलोभन अनिवार्य है, किन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो प्रलोभन का कारण बनता है!

8) "यदि तुम्हारा हाथ अथवा तुम्हारा पैर तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम लूले अथवा लँगडे़ हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों हाथों अथवा दोनों पैरों के रहते न बुझने वाली आग में न डाले जाओ।

9) और यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम काने हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों आँखों के रहते आग के नरक में न डाले जाओ।

10) "सावधान रहो, उन नन्हों में एक को भी तुच्छ न समझो। मैं तुम से कहता हूँ - उनके दूत स्वर्ग में निरन्तर मेरे स्वर्गिक पिता के दर्शन करते हैं।

11) "जो खो गया था उसी को बचाने के लिए मानव पुत्र आया है।

12) तुम्हारा क्या विचार है - यदि किसी के एक सौ भेड़ें हों और उन में से एक भी भटक जाये, तो क्या वह उन निन्यानबे भेड़ों को पहाड़ी पर छोड़ कर उस भटकी हुई को खोजने नहीं जायेगा?

13) और यदि वह उसे पाये, तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि उसे उन निन्यानबे की अपेक्षा, जो भटकी नहीं थी, उस भेड़ के कारण अधिक आनंद होगा।

14) इसी तरह मेरा स्वर्गिक पिता नहीं चाहता कि उन नन्हों में से एक भी खो जाये।

15) "यदि तुम्हारा भाई कोई अपराध करता है, तो जा कर उसे अकेले में समझाओ। यदि वह तुम्हारी बात मान जाता है, तो तुमने अपने भाई को बचा लिया।

16) यदि वह तुम्हारी बात नहीं मानता, तो और दो-एक व्यक्तियों को साथ ले जाओ ताकि दो या तीन गवाहों के सहारे सब कुछ प्रमाणित हो जाये।

17) यदि वह उनकी भी नहीं सुनता, तो कलीसिया को बता दो और यदि वह कलीसिया की भी नहीं सुनता, तो उसे गैर-यहूदी और नाकेदार जैसा समझो।

18) मैं तुम से कहता हूँ - तुम लोग पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।

19) "मैं तुम से यह भी कहता हूँ - यदि पृथ्वी पर तुम लोगों में दो व्यक्ति एकमत हो कर कुछ भी माँगेगे, तो वह उन्हें मेरे स्वर्गिक पिता की और से निश्चय ही मिलेगा;

20) क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम इकट्टे होते हैं, वहाँ में उनके बीच उपस्थित रहता हूँ।"

21) तब पेत्रुस ने पास आ कर ईसा से कहा, "प्रभु! यदि मेरा भाई मेरे विरुद्ध अपराध करता जाये, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? सात बार तक?"

22) ईसा ने उत्तर दिया, "मैं तुम से नहीं कहता ’सात बार तक’, बल्कि सत्तर गुना सात बार तक।

23) "यही कारण है कि स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था।

24) जब वह लेखा लेने लगा, तो उसका लाखों रुपये का एक कर्ज़दार उसके सामने पेश किया गया।

25) अदा करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्नी, उसके बच्चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाये और ऋण अदा कर लिया जाये।

26) इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर कर यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’मुझे समय दीजिए, और मैं आपको सब चुका दूँगा।

27) उस सेवक के स्वामी को तरस हो आया और उसने उसे जाने दिया और उसका कर्ज़ माफ़ कर दिया।

28) जब वह सेवक बाहर निकला, तो वह अपने एक सह- सेवक से मिला, जो उसका लगभग एक सौ दीनार का कर्ज़दार था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला घांेट कर कहा, ’अपना कर्ज़ चुका दो’।

29) सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’मुझे समय दीजिए और मैं आपको चुका दूँगा’।

30) परन्तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिये बन्दीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज़ न चुका दे!

31) यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दुःखी हो गये और उन्होंने स्वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं।

32) तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, ’दृष्ट सेवक! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा वह सारा कर्ज़ माफ़ कर दिया था,

33) तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’

34) और स्वामी ने क्रुद्ध होकर उसे तब तक के लिए जल्लादों के हवाले कर दिया, जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे।

35) यदि तुम में हर एक अपने भाई को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा।"



Copyright © www.jayesu.com