1) याजको! मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ
2) यदि तुम नहीं सुनोगे, यदि तुम मेरे नाम का आदर करने का ध्यान नहीं रखोगे, तो - विश्वमण्डल का प्रभु यह कहाता है - मैं तुम्हें और तुम्हारी धन-सम्पत्ति को अभिशाप दूँगा। सच पूछो, तो मैं उन को अभिशप्त कर ही चुका हूँ, क्योंकि तुम मेरे नाम का आदर करने का ध्यान नहीं रख्ते हो।
3) देखो मैं तुम्हारी सन्तान को डाँटूँगा और तुम्हारे मुँह पर तुम्हारे बलि-पशुओं की अँतड़ियाँ फेंकूँगा। मैं तुम को अपने से दूर कर दूँगा।
4) विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है: तुम तब समझोगे कि मैंने ही लेवी के साथ व्यवस्थान बनाये रखने का अपना निश्चय व्यक्त किया है।
5) मेरा व्यवस्थान उसी के साथ था: जीवन और शान्ति का व्यवस्थान, और मैंने उसे ये वरदान दिये भी, जिससे वह मेरे प्रति श्रद्धाभक्ति रखे; उसने अपना कर्तव्य पूरा भी किया और मेरे नाम का आदर भी रखा।
6) वह सच्ची शिक्षा देता था और कुटिल बातें कभी नहीं करता था; वह शान्ति और धर्मनिष्ठा से मेरे पथ पर चलता रहा और बहुत लोगों को अधर्म से लौटा लाया।
7) याजक का मुँह सच्चाई का गढ़ है, जहाँ से मनुष्य शिक्षा की अपेक्षा करें, क्योंकि वह विश्वमण्डल के प्रभु का सन्देशवाहक है।
8) तुम लोग भटक गये हो और अपनी शिक्षा द्वारा तुमने बहुत-से लोगों को विचलित कर दिया। विश्वमण्डल के प्रभु कहता है कि तुम लोगों ने लेवी का विधान भंग किया है।
9) तुमने मेरा मार्ग छोड़ दिया और अपनी शिक्षा में भेदभाव रखा है, इसलिए मैंने सारी जनता की दृष्टि में तुम्हें घृणित और तुच्छ बना दिया है।“
10) क्या हम सबों का एक ही पिता नहीं? क्या एक ही ईश्वर ने हमारी सृष्टि नहीं की? तो, अपने पूर्वजों का विधान अपवित्र करते हुए हम एक दूसरे के साथ विश्वासघात क्यों करते हैं?
11) यूदा ने विश्वासघात किया है: येरूसलेम और इस्राएल में घृणास्पद कार्य किये गये हैं। हाँ, यूदा ने प्रभु-ईश्वर के प्रिय मन्दिर को अपवित्र किया है, उसने पराये देवता की पुत्रियों से विवाह किया है।
12) जो कोई ऐसा करे, वह चाहे कोई भी हो, प्रभु-ईश्वर उसे याकूब के खेमे से निष्कासित करे और विश्वमण्डल के प्रभु को भेटें चढ़ाने वालों की संगति से बहिष्कृत करे।
13) तुम एक दूसरी बात भी करते हो। तुम रोते हुए विलाप करते हुए प्रभु की वेदी पर आँसू बहाते हो, क्योंकि वह तुम्हारे हाथों से चढ़ायी हुई भेंटें अस्वीकार कर ग्रहण नहीं करता।
14) तुम पूछोगे, “ऐसा क्यों?“ कारण यह है कि प्रभु-ईश्वर तुम्हारे और तुम्हारी युवावस्था में ब्याही पत्नी के बीच विवाह का साक्षी है; तुमने तो उस धर्मपत्नी के साथ विश्वासघात किया है, जिस को अर्धांगिनी बनाने के लिए तुमने उसका पाणिग्रहण किया था।
15) क्या उसने उन्हें एक नहीं बनाया, एक तन, एक प्राण? और उस एक प्राणी से वह क्या चाहता? धर्मी सन्तति। अतः तुम अपने ही जीवन की रक्षा किया करो और युवावस्था में ब्याही पत्नी के प्रति विश्वासी बने रहो।
16) प्रभु इस्राएल को ईश्वर यह कहता है, “मैं तलाक़ से घृणा करता हूँ। विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है: मुझे उस से घृणा है, जो एक पत्नी से अन्याय करके दूसरी के साथ गाँठ जोड़ता है। अतः अपने ही जीवन की सुरक्षा करने के लिए इस तरह विश्वासघात न करो।“
17) तुमने बकवाद से प्रभु-ईश्वर को उकता दिया है। तुम पूछोगे, “हम उसे कैसे उकता देते हैं?“ तब न, जब तुम यह कहते हो, “प्रभु-ईश्वर की दृष्टि में अधर्मी अच्छे हैं; वह तो उन को अधिक पसन्द करता है“; अथवा जब तुम यह कहते हो, “अब तो न्यायी ईश्वर कहाँ है?“